लखनऊ, अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने के मामले का फैसला सुनाने वाले सी बी आई की विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव फैसला सुनाने के बाद सेवानिवृत्त (रिटायर) हो गए। इसी मामले की सुनवाई के लिए उन्हें सेवा विस्तार मिला हुआ था। जज साहब का ये आख़री फैसला था, गौरतलब हो कि सुरेंद्र कुमार यादव पूर्वी उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले से संबंध रखते हैं। उनका जन्म पखानपुर गांव में हुआ। 31 वर्ष की उम्र में वह राज्य न्यायिक सेवा के लिए चयनित हुए थे। उनकी पहली पोस्टिंग फैजाबाद में एडिशनल मुंसिफ के पद पर हुई। इसके बाद हरदोई, सुल्तानपुर, गाजीपुर, इटावा, गोरखपुर में बतौर जज सेवा दी। अपने रिटायरमेंट के समय राजधानी लखनऊ के जिला जज तक पहुंचे। सुरेंद्र कुमार यादव लखनऊ जनपद न्यायाधीश के पद से 30 सितम्बर, 2019 को ही सेवानिवृत्त हो गये थे। उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मामले की सुनवाई और उस पर फैसला सुनाने तक का उन्हें सेवा विस्तार दिया था। इस तरह विवादित ढांचा पर दिया गया आज का फैसला विशेष न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव के कार्यकाल का अंतिम फैसला माना जाएगा।
पिछले साल लखनऊ जिला जज के पद से जब वे सेवामुक्त हुए थे तो बार एसोसिएशन ने उनका फेयरवेल किया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले ही उनकी रिटायरमेंट की मियाद बढ़ा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें विशेष न्यायालय (अयोध्या प्रकरण) के पीठासीन अधिकारी के पद पर बने रहकर विध्वंस केस की सुनवाई पूरी करने के लिए कहा। यानी वो जिला जज के रूप में रिटायर हो गए मगर विशेष न्यायाधीश बने रहे।रिटायर होने जा रहे किसी न्यायाधीश का किसी एक ही मामले के लिए कार्यकाल का बढ़ाया जाना अपने आप में ऐतिहासिक था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल किया था। इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट को ये अधिकार है कि ‘मुकम्मल इंसाफ’ के लिए अपने सामने लंबित किसी भी मामले में वो कोई भी जरूरी फैसला ले सकता है।
छह दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया गया था। इसके बाद इस मामले में उसी दिन दो एफआईआर अयोध्या के रामजन्मभूमि थाने में दर्ज हुई थी। मामले में 49 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। इन 49 आरोपितों में इस समय 32 ही जीवित हैं, बाकी 17 की मौत हो चुकी है। इस मामले में करीब 28 साल बाद सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश सुरेंद्र कुमार यादव ने आज अपना फैसला सुना दिया। फैसला पढ़ते हुए विशेष न्यायाधीश ने कहा कि यह विध्वंस पूर्व नियोजित नहीं था बल्कि आकस्मिक घटना थी। घटना के प्रबल साक्ष्य नही हैं। सिर्फ तस्वीरों से किसी को दोषी नहीं कहा जा सकता है।
कोर्ट ने इस केस में पेश किए गए सबूतों को पर्याप्त नहीं माना है। 2300 पन्नों के फैसले में कोर्ट ने कहा है कि जिन लोगों को आरोपी बनाया गया, उन्होंने बाबरी के ढांचे को बचाने की कोशिश की थी क्योंकि भीड़ वहां पर अचानक से आई और भीड़ ने ही ढांचे को गिरा दिया। सीबीआई ने इस केस में 351 गवाह पेश किए थे, जबकि सबूत के तौर पर 600 दस्तावेज भी कोर्ट में रखे गए थे। कोर्ट ने कहा है कि आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं पाए गए हैं।
विशेष अदालत ने इस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, उमा भारती और महंत नृत्य गोपाल दास समेत सभी 32 आरोपितों को बरी कर दिया।