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अब सर्दरातों  में खुले आसमान के नीचे रात नहीं गुज़ारेगे बेघर बच्चे

महफूज़ संस्था की पहल पर
बाल आयोग ने  जारी किए निर्देश
आगरा, महफूज़ संस्था की पहल एक बार फिर कामयाब साबित हुईं है। संस्था के अध्यक्ष व आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस की कोशिश अब बेघर बच्चों को सर्द रातों में सड़कों पर ठिठुरना नहीं पड़ेगा। उनकी पहल पर  संज्ञान लेते हुए बाल आयोग ने सभी जिलों के रात्रि आश्रय गृहों की सूची सहित व्यवस्थाओं का विवरण किया तलब सर्द रातों में अब उत्तर प्रदेश के बच्चे नही ठिठुरेंगे। कोई भी बच्चा खुले आसमान के नीचे नहीं सोयेगा। इसलिए लिए यूपी बाल आयोग ने सभी जिलों के डीएम को पत्र जारी कर जिलों के रात्रि आश्रय गृहों की सूची और प्रशासन द्वारा किए जा रहे इंतजामों की विवरण पांच दिन में तलब किया है। यह आदेश महफूज संस्था की पहल पर दिया गया है। सैकड़ों बच्चे अपने बेघर माता-पिता के साथ फुटपाथों पर खुले आसमान के नीचे सोते हैं। कुछ बेघर बच्चे रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, ओवर ब्रिज तथा स्मारकों के आसपास खुले में सोते हैं। वह बहुत ही असुरक्षित हैं। कोविड-19 का अभी भी प्रभाव है। विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि सर्दियों में कोरोना अधिक प्रभावी होगा। इसके चलते सर्दियों के दौरान खुले आसमान के नीचे रहने वाले बच्चों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। उनको कोरोना संक्रमित होने का भी खतरा हो सकता है। बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था महफूज सुरक्षित बचपन के समन्वयक नरेश पारस ने इस ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग को पत्र लिखा। जिसका संज्ञान लेते हुए आयोग की सदस्य जया सिंह ने सभी जिलों के डीएम को पत्र जारी कर निर्देश दिए हैं कि खुले आसमान के नीचे सोने वाले बच्चों का चिन्हांकन कर उनकी सुरक्षा हेतु उचित प्रबंध किए जाएं। आयोग को जिले के सभी रात्रि आश्रय गृहों की सूची भेजें तथा आने वाले ठंड के महीनों में क्या नए प्रबंध किए जा रहे हैं। उनके बारे में विस्तार से बताएं। यह रिपोर्ट आयोग ने पांच दिन में तलब की है। महफूज़ के समन्वयक नरेश पारस ने अपने पत्र में कहा था कि उ0प्र0 के सभी जनपदों में एक अभियान के तहत ऐसे बच्चों को चिन्हित किया जाए जो खुले आसमान के नीचे सो रहे हैं। स्थानीय प्रशासन, जिला बाल संरक्षण इकाई, राज्य शहरी विकास ऐजेंसी (सूडा), गैर सरकारी संगठन, स्वैच्छिक सामाजिक कार्यकर्ता आदि के समन्वय से अभियान चलाया जाए। सभी बच्चों तथा उनके अभिभावकों के नाम, पते दर्ज किए जाएं। इन बच्चों को अस्थाई आश्रय देने के लिए जिला स्तर पर एक हेल्पलाइन नंबर तथा व्हाट्एप नंबर जारी किया जाए। जिसके माध्यम से लोगों से अपील की जाए कि कहीं भी कोई बच्चा खुले आसामन के नीचे सोता मिले तो इस नंबर पर सूचित करे। इसकी सतत माॅनीटरिंग भी कराई जाए।  इन बच्चों चाइल्ड फ्रेडली माहौल वाले स्थान पर रखा जाए। यहां तैनात कर्मचारियों को भी चाइल्ड फे्रेंडली व्यवहार के लिए प्रेरित किया जाए। सभी की मासिक समीक्षा की जाए तथा प्रगति रिपोर्ट आयोग तथा शासन को भेजी जाए। जिससे प्रदेश में खुले आसमान के नीचे रहने वाले बच्चे सर्दियों में न ठिठुरें तथा कोरोना की चपेट में न आएं।