राजनीति

बंगाल में विधान परिषद के गठन के फैसले पर उठे सवाल

कोलकाता। देश के कई राज्य अपने यहां विधानमंडल को खत्म करने पर चर्चा कर रहे हैं। ऐसे में ममता बनर्जी ने राज्य में विधानमंडल गठन करने के प्रस्ताव को सहमति दी है। इस प्रस्ताव के बाद राज्य में एक नई बहस ने जन्म ले लिया है। कई राजनीतिक विश्लेषकों ने सरकार के इस कदम पर सवाल भी खड़े किए हैं।
राज्य में विधान परिषद के गठन को लेकर आरोप प्रत्यारोप और इससे राज्य को लाभ-हानि को लेकर राजनीतिक विश्लेषक ने कई सवाल खड़े किये हैं। मंगलवार को हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में राजनीति विश्लेषक विश्वनाथ चक्रवर्ती ने कहा कि फिलहाल देशभर में कोविड-19 का संकट है और हर एक सरकार को अपने वित्तीय क्षमता का अधिकतम इस्तेमाल महामारी से बचाव संबंधी उपाय पर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जिस सेंट्रल विस्टा परियोजना पर काम कर रही है, उस पर खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी ने सवाल उठाए थे। ऐसे में ममता सरकार ने राज्य में विधान परिषद गठन का फैसला क्यों लिया, यह अपने आप में सवालों के घेरे में है। इस पर एक बड़ी धनराशि खर्च होगी और लोगों को कोई लाभ मिलने वाला नहीं है। उन्होंने बताया कि विधान परिषद को कोई वित्तीय अधिकार नहीं होता है लेकिन विधानसभा के हर एक फैसले को परिषद में भेजा जाता है। यह अनावश्यक तौर पर किसी भी फैसले को लंबित करने का एक गैर जरूरी जरिया है। उन्होंने यह भी बताया कि बंगाल विधानसभा में ममता बनर्जी की सरकार पूर्ण बहुमत में है, ऐसे में विधान परिषद का कोई औचित्य नहीं है।
विश्वनाथ ने बताया कि केवल राजनीतिक तौर पर जो लोग चुनाव का सामना नहीं कर सके, उन्हें सरकार का हिस्सा बनाने का गैरजरूरी जरिया है। इसमें बड़े पैमाने पर धनराशि खर्च होगी है। यह जनता के पैसे का दुरुपयोग ही होगा। ऐसे में ममता सरकार के इस फैसले पर सवाल उठना लाजमी है। उन्होंने कहा कि ममता सरकार का यह फैसला संकीर्ण राजनीतिक लाभ के अलावा और कुछ नहीं।
उल्लेखनीय है कि सोमवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य में विधान परिषद का गठन करने का निर्णय लिया है। चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री ने घोषणा भी की थी कि जिन पार्टी नेताओं को वह टिकट नहीं दे सकी हैं, उन्हें विधान परिषद में भेजा जाएगा।
बंगाल की विधान परिषद में 98 सदस्य होंगे
ममता बनर्जी खुद अपने प्रतिद्वंदी भाजपा उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी से नंदीग्राम में 1956 वोट से हार चुकी हैं लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री की शपथ ले ली। इसके अलावा उनके कैबिनेट में अमित मित्रा को भी जगह दी गई है, जिन्होंने चुनाव नहीं लड़ा है। विधान परिषद का गठन होने के बाद इन दोनों को सदस्य के तौर पर निर्वाचित होना तय है। विधान परिषद के सदस्यों के चुनाव के लिए विधायक, स्थानीय निकायों के चुने प्रतिनिधि आदि ही मतदान करते हैं। नियमानुसार विधानसभा में मौजूद विधायकों की कुल संख्या के एक तिहाई सदस्य विधान परिषद में शामिल हो सकते हैं। फिलहाल राज्य विधानसभा सदस्यों की संख्या के मुताबिक 98 सदस्यों को विधान परिषद में चुना जा सकता है। दरअसल, बंगाल में पहले भी विधान परिषद था लेकिन 1969 में तत्कालीन सरकार ने इसे खत्म कर दिया था। हिन्दुस्थान समाचार