गोरखपुर (DVNA) । चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह बिन उमर फारूक रदियल्लाहु अन्हु, हज़रत सैयदना अबू ज़र जुन्दब अल ग़फ़्फारी रदियल्लाहु अन्हु व अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अदबो एहतराम के साथ मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी की गई।
मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने कहा कि हज़रत सैयदना अब्दुल्लाह के वालिद का नाम हज़रत सैयदना उमर फारूक व वालिदा का नाम ज़ैनब है। आपको बचपन से इस्लाम की तालीम मिली। आप आलिमे बाअमल, आबिदो जाहिद और मुजतहिद थे। आपकी इबादत, इल्म, हुस्नों अख़लाक और शख्सियत मशहूर है। आप नमाज़े तहज्जुद के पाबंद थे। हर वक्त क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत करते रहते थे। आप अक्सर रोजा रखते थे।
आपने कई मर्तबा हज अदा किए थे। आप हमेशा यतीमों, गरीबों और मोहताजों की मदद किया करते थे। आप हमेशा सुन्नतों पर अमल करके और ताज़ीम व तौकीर-ए-रसूलल्लाह करके अपने इश्क़े रसूल का सबूत देते। जंगे खंदक में आपने अपनी बहादुरी दिखाई। इसके बाद सीरिया, इराक, ईरान और मिस्र के खिलाफ जंग में भी आप शामिल हुए। आपसे करीब 2630 हदीस से रवायत मिलती है। आप फिक्ह के माहिर थे। आपका विसाल (निधन) 1 ज़िल हिज्जा 73 हिजरी में हुआ। मजार मक्का शरीफ में है।
उन्होंने कहा कि हज़रत सैयदना अबू ज़र ग़फ़्फारी ईमान लाने वाले सबसे पहले दस सहाबा में शामिल हैं। आपने जंगे तबूक में शिरकत की। आप हमेशा अल्लाह और उसके रसूल की इताअत करते थे।
आपकी इस फरमाबरदारी, मोहब्बत और खिदमत व क़ुर्बानी के ज़ज़्बे से खुश होकर रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने आपको ‘मसीहे इस्लाम’ लक़ब अता फरमाया। आपने पूरी ज़िन्दगी इबादत, तकवा, सब्र, कनाअत और सादगी के साथ गुजारी। आप हक बात कहने में किसी से भी नहीं डरते थे। आपसे बहुत सी हदीसें मरवी हैं। आपका विसाल 3 ज़िल हिज्जा 31 हिजरी में हुआ। मजार सऊदी अरब में है।
उन्होंने आगे कहा कि अल्लामा ज़ियाउद्दीन मदनी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां के मुरीद व खलीफा हैं। आप पैकरो इल्मो अमल थे। आपको रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से जुनून की हद तक इश्क़ था बल्कि यह कहना बेजा न होगा कि आप फना फिर रसूल के आला मनसब पर फ़ाइज़ थे। ज़िक्रे रसूल ही आपका मशगला था। आप सखी और बहुत अता फरमाने वाले थे। आप मदीना शरीफ में हर रोज महफिल-ए-मिलादुन्नबी सजाते थे। जिसमें तमाम देशों के मुसलमान शिरकत करते थे। आपका विसाल 3 ज़िल हिज्जा 1401 हिजरी को हुआ। मजार जन्नतुल बक़ी मदीना शरीफ में है।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान व तमाम बीमारियों से शिफा की दुआ मांगी गई। उर्स-ए-पाक में शारिक अली, सैफ अली, फुजैल अली, फैज़ान, सज्जाद अहमद, मुख्तार अहमद, शाहिद अली, तारिक अली, असलम खान, आरिफ खान आदि ने शिरकत की।
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