गोरखपुर-DVNA। ईद-उल-अजहा में कुछ दिन बाकी हैं। तैयारियां जारी हैं। इलाहीबाग, रसूलपुर, जाहिदाबाद, खूनीपुर में कुर्बानी के बकरों का बाजार सज रहा है। लोग अपनी हैसियत के हिसाब से बकरा खरीद रहे हैं। बाजार में कई नस्ल, रंग, कद काठी के बकरे बिक रहे हैं। बड़े जानवर में हिस्सा लेने की प्रक्रिया भी शुरु हो चुकी है।
शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में कुर्बानी पर चल रहे दर्स (व्याख्यान) के तीसरे दिन हाफिज आफताब ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में जानवरों की कुर्बानी देने के पीछे एक अहम मकसद है। अल्लाह दिलों के हाल से वाकफि है। ऐसे में अल्लाह हर शख्स की नीयत को समझता है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करता है तो उसे अल्लाह की रजा हासिल होती है। बावजूद इसके अगर कोई शख्स कुर्बानी महज दिखावे के तौर पर करता है तो अल्लाह उसकी कुर्बानी कुबूल नहीं करता। कुर्बानी का जानवर कयामत के दिन अपने सींग, बाल और खुरों के साथ आयेगा और कुर्बानी कराने वाले को फायदा पहुंचायेगा। कुर्बानी का खून जमीन पर गिरने से पहले अल्लाह के नजदीक वह मकाम-ए-कुबूलियत में पहुंच जाता है। लिहाजा कुर्बानी अच्छी नीयत के साथ अल्लाह की रजा पाने की गर्ज से करें।
तंजीम दावत-उस-सुन्नाह के सदर कारी मोहम्मद अनस रजवी ने अपील किया है कि चमड़े का दाम कम होने की वजह से मदरसे वालों को चमड़े के साथ अच्छी रकम भी दी जाए, ताकि मदरसे का निजाम बेहतरीन तरीके से सालभर चलता रहे। चमड़े को दफनाना या किसी अन्य तरीके से बर्बाद करना माल की बर्बादी है। जो शरीअत की नजर से जायज नहीं है। कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से कर लें। एक हिस्सा गरीब के लिए, एक हिस्सा दोस्त अहबाब और एक अपने घर वालों के लिए रख छोड़ें। कुर्बानी के गोश्त पर गरीबों का भी हक है। अगर घर के लोग ज्यादा हों तो सब गोश्त रख भी सकते हैं और गरीबों को दे भी सकते हैं। लेकिन गरीबों में बांटना ही बेहतर है। अगर जानवर में कई लोग शरीक हों तो सारा गोश्त तौल कर बांटा जाए, अंदाजे से नहीं। अगर किसी को ज्यादा गोश्त चला गया तो गुनाहगार होंगे। कुर्बानी की खाल सदका कर दें या किसी दीनी मदरसें को दे दें।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। दर्स में बशीर खान, मो. इरफान, मो. फरीद, हाजी मो. यूनुस, मो. अफजल, इकराम अली आदि मौजूद रहे।
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