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तीन कुंतल के शाहरुख-सलमान बने आकर्षण का केंद्र

गोरखपुर-DVNA। ईद-उल-अजहा (बकरीद) पर्व 21 जुलाई को है, कुर्बानी के लिए बकरों की खरीदारी शुरु हो चुकी है। गली मोहल्लों में कुर्बानी के बकरे बिक रहे हैं। उम्मीद है कि जल्द चिन्हित स्थानों पर बकरा और भैंस का बाजार भी सजेगा।
इस वक्त मोहल्ला रहमतनगर में डेढ़ लाख रुपये के शाहरुख-सलमान नाम के दो बकरे आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। एक बकरा तोतापरी तो दूसरा सिरोही नस्ल का है। दोनों बकरों की खूब आवभगत हो रही है।
रहमतनगर के सूफीयान के घर दोनों बकरे अकबरपुर से लाये गये हैं। यही नहीं बकरों के खानपान व ख्याल रखने के लिए जियाउल नाम के लड़के को भी लाया गया है। जो कुर्बानी होने तक दोनों बकरों के साथ रहेगा। बकरों के खानपान पर ठीक-ठाक खर्चा किया जा रहा है।
आकर्षक कद काठी के सलमान का वजन करीब 158 किलो तो वहीं शाहरुख का वजन करीब 152 किलो है। दोनों बकरे देखने में भी बहुत आकर्षित लग रहे हैं। दोनों बकरों के गले में छोटी से घंटी बंधी हुई है। कान लंबे-लंबे हैं। रंग रूप भी देखने के लायक है।
सूफीयान के घर कुर्बानी के बकरे के लिए सालभर से पैसा जमा किया जाता है। जब कुर्बानी करीब आती है तो बकरा खरीदा जाता है। तकरीबन हर साल सूफीयान का बकरा इसी रेंज में खरीदा जाता है। रहमतनगर के शाहरुख-सलमान बकरे इस वक्त शहर के सबसे महंगे बकरे हैं। कद, काठी, रंग, रूप की वजह से हर आने जाने वालों को यह बकरे अपनी ओर खींच रहे हैं।
अली गजनफर शाह ने बताया कि सूफीयान का बकरा वाकई बहुत खूबसूरत है। सबकी नजर बकरों पर बरबस ही पड़ जा रही है। कुर्बानी के लिए बाजार में अनेक नस्लों के बकरे आ रहे हैं। अब बाजार में तेजी आयेगी। हर बार बाजार में देसी, तोतापरी, बरबरी, सिरोही, जमुनापरी, राजस्थानी नस्ल के बकरे बिकने के लिए आते हैं। यहां के बाजारों में देसी बकरे करीब पांच हजार से 30 हजार रुपये तक में बिकते हैं। इस बार भाव में थोड़ी तेजी है। इटावा, कानपुर, फतेहपुर, सीतापुर, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, बलिया, भभुआ आदि जिलों से बकरे बिकने के लिए गोरखपुर के बाजार में दिखेंगे।
सैयद हुसैन अहमद कादरी ने बताया कि ईद-उल-अजहा के मौके पर मुसलमान बड़ी संख्या में जानवरों की कुर्बानी करते हैं। दीन-ए-इस्लाम में कुर्बानी देना वाजिब है। वहीं कुर्बानी रोजगार का बहुत बड़ा जरिया भी है। तीन दिन तक होने वाली कुर्बानी से जहां गरीब तबके को मुफ्त में गोश्त खाने को मिलता है वहीं मदरसों, पशुपालकों, बूचड़ों-कसाईयों, पशुओं व चमड़े को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने वाले गाड़ी वालों, चारा व पत्ते बेचने वालों, रोटियां बनाने वाले होटलों एवं चमड़ा फैक्ट्रियों को काफी लाभ होता है। लाखों लोगों का रोजगार कुर्बानी से जुड़ा हुआ है। बकरों की बिक्री शुरू हो गई है। आने वाले वक्त में कुर्बानी के जानवरों की बिक्री में तेजी आएगी।
हाजी सेराज अहमद नक्शबंदी ने बताया कि ईद-उल-अजहा के लिए शहर में बकरा का बाजार सजता है। सेवई, खोवा व ड्राई फ्रूटर्स की खूब बिक्री होती है। घरों में विभिन्न पकवानों के लिए तमाम तरह के मसाले, प्याज, अदरख, लहसुन आदि की बिक्री होती है। मुसलमान कुर्बानी करवाने के साथ नये कपड़े पहनकर ईदगाह व मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की नमाज अदा करते हैं। ईद-उल-अजहा में लजीज व्यंजनों का जायका लेने के लिए बाकरखानी, शीरमाल, बटर नान मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में स्थित मुस्लिम होटलों में तैयार की जाती है। गाजी रौजा, रहमतनगर, तुर्कमानपुर, अस्करगंज, घोषीपुरवा, बक्शीपुर, रसूलपुर, सिधारीपुर, बड़े काजीपुर, चिलमापुर, खोखर टोला, इलाहीबाग, निजामपुर, सिधारीपुर सहित तीन दर्जन से अधिक स्थानों पर भैंस व पड़वा की सामूहिक कुर्बानी भी होती है। पर्व के लिए तैयारी जोर पकड़ने लगी है। मैंने तो कुर्बानी के लिए सालभर से बकरा पाला हुआ है।

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