गोरखपुर-DVNA। शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह मस्जिद में कुर्बानी पर चल रहे दर्स (व्याख्यान) के अंतिम दिन हाफ़िज़ आफताब ने कहा कि ईद-उल-अज़हा पर्व सादगी, शांति व उल्लास के साथ मनाया जाए। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जाए। क़ुर्बानीगाह के चारों तरफ पर्दा लगाकर क़ुर्बानी करें। अपशिष्ट पदार्थ, खून व हड्डी वगैरा इधर-उधर न फेंके, उन्हें गड्ढ़े में दफ़न करें। मुसलमानों को चाहिए कि ईद-उल-अज़हा के दिन गुस्ल करें। साफ सुथरे या नये कपड़े पहनें। खुशबू लगाएं। ईद-उल-अज़हा की नमाज़ से पहले कुछ न खाएं तो बेहतर है। ईदगाह या मस्जिद जाते वक्त तकबीरे तशरीक बुलंद आवाज़ से कहते हुए एक रास्ते से जाएं और दूसरे रास्ते से वापस आएं।
ईद-उल-अज़हा की नमाज़ का तरीका बताते हुए कहा कि पहले नियत कर लें कि नियत की मैंने दो रकात नमाज़ ईद-उल-अज़हा वाजिब म जायद छह तकबीरों के वास्ते अल्लाह तआला के इस इमाम के पीछे मुंह मेरा काबा शरीफ की तरफ। फिर कानों तक हाथ ले जाएं और तकबीरे तहरीमा यानी श्अल्लाहु अकबरश् कहकर हाथ नाफ के नीचे बांध लें और सना पढ़ें। दूसरी और तीसरी मर्तबा श्अल्लाहु अकबरश् कहते हुए हाथ कानों तक ले जाएं फिर छोड़ दें। चौथी मर्तबा तकबीर कहकर हाथ कानों तक ले जाएं फिर नाफ के नीचे बांध लें। इमाम जब किरात करे तो मुक्तदी खामोशी से सुनें। अब इमाम के साथ पहली रकात पूरी करें। दूसरी रकात में किरात के बाद तीन मर्तबा तकबीर कहते हुए हाथ को कानों तक ले जाएं और हाथ छोड़ दें, चौथी मर्तबा बगैर हाथ उठाए तकबीर कहते हुए रुकू में जाएं और नमाज़ पूरी कर लें, बाद नमाज़ इमाम खुतबा पढ़े और तमाम हाजिरीन खामोशी के साथ खुतबा सुनें। खुतबा सुनना वाजिब है। जिन मुक्तदियों तक आवाज़ न पहुंचती हो उन्हें भी चुप रहना वाजिब है। इसके बाद दुआ मांगें। सोशल मीडिया पर न ही क़ुर्बानी की फोटो डालें और न ही वीडियो। इस खुशी के मौके पर गरीब मुसलमानों को जरूर याद रखें ताकि गोश्त हासिल करके वह भी वह भी इस खुशी के पर्व में शामिल हो सकें। मदरसों को क़ुर्बानी के जानवर की खाल के साथ बेहतर रकम दें। खाल ले जाने वाले के साथ अच्छा व्यवहार करें।
तंजीम दावत-उस-सुन्नाह के सदर कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने बताया कि जिन लोगों के परिवार का कोई सदस्य विदेश में रह रहा हो और परिवार वाले भारत में उस सदस्य की तरफ से क़ुर्बानी करवाना चाहते हैं तो भारत में और जिस देश में परिवार का सदस्य रह रहा हो यानी दोनों देशों में क़ुर्बानी का दिन होना जरुरी है तभी क़ुर्बानी होगी।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान व भाईचारे की दुआ मांगी गई। दर्स में हाफ़िज़ अब्दुर्रहमान, हाफ़िज़ आरिफ, मो. कासिद, बशीर खान, मो. इरफ़ान, मो. फरीद, हाजी मो. यूनुस, मो. अफ़ज़ल, इकराम अली, मो. अरमान, जलालुद्दीन, अली हसन आदि ने शिरकत की।
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