गोरखपुर-DVNA।तालीमात-ए-उम्मत फाउंडेशन की ओर से सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार में शहीद-ए-आज़म हज़रत इमाम हुसैन की याद में यादे हुसैन जलसा हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत कारी सरफुद्दीन ने की। नात-ए-पाक हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी, मो. ज़ैद व हाफ़िज़ अज़मत अली ने पढ़ी। संचालन मौलाना नूरुद्दीन ने किया।
अध्यक्षता करते हुए मुफ़्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी (मुफ़्ती-ए-शहर) ने कहा कि कर्बला की जंग यही बताती है कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन हक के लिए शहीद हुए। मुहर्रम सच के लिए शहीद हो गए हज़रत इमाम हुसैन को याद कर उनके बताये रास्ते पर चलने के वादा करने का दिन है। हज़रत सैयदना इमाम हुसैन और उनके साथियों की तादाद सौ से भी कम थी, जबकि यजीद के फौजी हजारों के तादाद में थे फिर भी उन लोगों ने हार नहीं मानी और पूरी बहादुरी के साथ लड़े उनकी बहादुरी से एक बारगी तो यजीद के फौजियां के दिल भी दहल गये। सबसे आखिर में लड़ते-लड़ते इमाम हुसैन ने सज्दे में अपना सर कटा दिया। इससे पहले अपने तमाम साथियों को अपनी आंखों से उन्होंने शहीद होते देखा। वह तारीख़ थी 10वीं मुहर्रम। मुहर्रम में उस अज़ीम क़ुर्बानी को याद करके इमाम हुसैन की बारगाह में खिराज-ए-अकीदत पेश किया जाता है
मुख्य वक्ता मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि हज़रत इमाम हुसैन ने नाना की उम्मत की खातिर शहादत कबूल की। कर्बला की जंग में हज़रत इमाम हुसैन ने संदेश दिया कि हक कभी बातिल से नहीं डरता। हर मोर्चे पर जुल्म व सितम ढ़ाने वाले बातिल की शिकस्त तय है। हज़रत इमाम हसन हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम व सच्चाई की हिफाजत के लिए खुद व अपने परिवार को क़ुर्बान कर दिया, जो शहीद-ए-कर्बला की दास्तान में मौजूद है। हम सबको भी उनके बताये रास्ते पर चलने की जरूरत है। कर्बला की शहादत को देखकर शायर कहने को मजबूर हुआ, ष्जन्नत का चांद, अर्श का तारा हुसैन है। डूबे न कभी जो वो सितारा हुसैन है। शहादत तो देखिए ज़हरा के लाल की। हर कौम कह रही है हमारा हुसैन है।ष्
अंत में सलातो-सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों में लंगर-ए-हुसैनी बांटा गया। जलसे में हाफ़िज़ आसिफ रज़ा, तनवीर आलम, हाजी सलीम, आरिफ समानी, परवेज आलम, सैयद तारिक़, सैयद अली, सैयद अहमद अली, सैयद नौशाद अली, सैयद जव्वाद अली, एहतेशाम क़ादरी, हाफ़िज़ आमिर हुसैन निज़ामी, हाफ़िज़ सद्दाम हुसैन, हाफ़िज़ मुजम्मिल रज़ा, मो. फजल आदि मौजूद रहे।
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