गोरखपुर-DVNA। आला हज़रत इमाम अहमद रजा खां अलैहिर्रहमां के छोटे साहिबजादे मुफ़्ती-ए-आज़म हिंद हज़रत मुफ़्ती मो. मुस्तफा रज़ा खां नूरी अलैहिर्रहमां का 41वां श्उर्स-ए-नूरीश् सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाजार व चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में अदबो एहतराम के साथ मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी व फातिहा ख़्वानी की गई।
सब्जपोश हाउस मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने मुफ्ती-ए-आज़म हिंद की ज़िन्दगी व योगदान पर रोशनी डालते हुए कहा कि आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां के छोटे बेटे मुफ़्ती-ए-आज़म हिंद हज़रत मो. मुस्तफा रज़ा ने पूरी जिंदगी मजहब, मसलक और कौम की खिदमत की। आपकी पैदाइश 22 ज़िल हिज्जा 1310 हिज़री बमुताबिक 18 जुलाई 1892 को बरेली शरीफ के मोहल्ला सौदागरान में हुई। आप कु़रआन, हदीस, तफ़्सीर, फ़िक़्ह, सर्फ, अकाइद, तारीख, रियाज़ी, तौकीत, इल्मे ज़फर जैसे बहुत सारे विषयों के माहिर थे। आपने अपनी 92 साल की ज़िन्दगी मे करीब एक लाख फतवा लिखा। पहला फतवा 13 साल की उम्र में लिखा। आपने तीन बार हज अदा किया। पहला हज 1905, दूसरा हज 1945 और तीसरा हज 1971 में किया। आपने बगैर फोटो के हज अदा किया। मुल्क विभाजन के समय मुरीदीन ने पाकिस्तान चलने पर बहुत मजबूर किया, लेकिन आपने पाकिस्तान जाने से साफ इंकार कर दिया। आपका कहना था कि मैं इस सरज़मीन पर हमेशा रहूंगा, जहां मेरे बुजुर्गों ने ज़िन्दगी गुजारी है, जहां मस्जिदें, खानकाहें बनाईं हैं। इस मुल्क से मुझे मोहब्बत है। हिन्दुस्तान ही मेरा मुल्क है। उन्होंने बताया कि मुफ़्ती-ए-आज़म हिन्द ने करीब 1978 को गोरखपुर में नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर व मदरसा मजहरुल उलूम घोसीपुरवा की संगे बुनियाद रखी थी।
चिश्तिया मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने कहा कि मुफ़्ती-ए-आज़म हिंद ने तकरीबन 40 किताबें लिखीं। हिज़री 1312 में आपको हज़रत शैख़ सैयद शाह अबुल हसन अहमद नूरी ने अपने सिलसिले में दाखिल फरमाया। आपने 18 साल की उम्र में तालीम मुकम्मल की। 1910 में सबसे पहला फतवा दिया। करीब 72 साल तक लगातार फतवा देने का काम अंजाम देते रहे। शेरो शायरी में भी आपको महारत हासिल थी। आपका दीवान श्सामाने बख्शिशश् बहुत मशहूर है। आपकी श्फतावा मुस्तफवियाश् बहुत उम्दा किताब है। आपने 92 साल की उम्र में 14 मुहर्रम 1402 हिज़री मुताबिक 12 नवम्बर 1981 जुमेरात की रात 1 बजकर 40 मिनट पर इस दुनिया को अलविदा कहा। हमें मुफ़्ती-ए-आज़म की सादगी व पाकीजगी से प्रेरणा लेते हुए उनके नक्शेक़दम पर चलना चाहिए।
महफिल में नात व मनकबत पेश की गई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमन व भाईचारगी की दुआ मांगी गई। उर्स-ए-नूरी में मुख्तार अहमद, सैयद तहसीन, शारिक अली, इमाम हसन, अब्दुल कय्यूम, फैजान अली, ब्बलू, मोहम्मद ज़ैद, मोहम्मद अरहाम, मोहम्मद अरसलान, हाफ़िज़ सद्दाम, हाफ़िज़ मुज़म्मिल रज़ा, हाफ़िज़ अनस रज़ा, हाफ़िज़ आमिर हुसैन निज़ामी सहित तमाम अकीदतमंद मौजूद रहे।
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