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समाजसेवी मोहनलाल मित्तल का किया गया भावपूर्ण स्मरण

आगरा।(डीवीएनए)घेवर, फैनी, झूले, मेले और सावन की तीज। स्वादहीन हो गई तुम्हारे बिन बाबुल हर चीज। मैके में जब तक पापा थे, तब तक ठसक रही। लाड़-प्यार तो अब भी लेकिन उनकी कसक रही। बिना बाप के नहीं लगे है अपनी सी दहलीज..”
        इस गीत द्वारा सुपरिचित कवयित्री श्रीमती नूतन अग्रवाल ‘ज्योति’ ने जब अपने पिता का भावपूर्ण स्मरण किया तो पूरा सभागार भाव विभोर हो उठा।
        अवसर था संस्कार भारती आगरा द्वारा शनिवार को सीताराम कॉलोनी फेस-2, बल्केश्वर स्थित गिर्राज किशोर बाँके बिहारी सदन में स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव की कड़ी में आयोजित नूतन अग्रवाल ‘ज्योति’ के पिता और समाजसेवी-उद्यमी स्वर्गीय श्री मोहनलाल मित्तल की स्मृति को समर्पित राष्ट्रीय चेतना के स्वर कवि सम्मेलन का।
        समारोह-अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती शांति नागर, मुख्य अतिथि स्वतंत्रता सेनानी रानी सरोज गौरिहार, विशिष्ट अतिथि पद्मश्री प्रोफेसर उषा यादव, श्रीमती प्रभा गुप्ता, संस्कार भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बांकेलाल गौड़ और आरएसएस से जुड़े श्याम जी गुप्त ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्ज्वलन और माल्यार्पण कर समारोह का शुभारंभ किया।
       संस्कार भारती के अखिल भारतीय साहित्य प्रमुख राज बहादुर सिंह ‘राज’ ने सरस्वती वंदना की और अमृत महोत्सव पर प्रकाश डाला।
सीताराम कॉलोनी फेस-2 के अध्यक्ष अजय अग्रवाल, संजय अग्रवाल, आशा अग्रवाल, विनोद अग्रवाल और चंचल अग्रवाल ने सभी का स्वागत किया। नूतन अग्रवाल ‘ज्योति’ ने संचालन किया।
          इस अवसर पर  डॉ. मधु भारद्वाज, डॉ. गिरधर शर्मा, महेश चंद शर्मा, आदर्श नंदन गुप्त, डॉ. सुषमा सिंह, रमा वर्मा, अनिल उपाध्याय, पूर्व पार्षद डॉ. अशोक अग्रवाल, वीके अग्रवाल, डॉ. राज किशोर सिंह, यशोधरा यादव ‘यशो”,  अशोक अश्रु, हरीश अग्रवाल ढपोरशंख, पूनम जाकिर, रमन अग्रवाल, यतेंद्र सोलंकी और विकास गर्ग प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
काव्य-धारा ने छुआ मर्म..
*रीता शर्मा* ने टूटते रिश्तों की चुभन को व्यक्त किया- ” तन जब उसका छूटा होगा। मन से कितना टूटा होगा। आँगन थक गए दीवारों से। घायल हैं खुद के वारों से।अनसुलझा रिश्ता स्वार्थ का। जाने किससे रूठा होगा..”
        *शायर भरतदीप माथुर* ने कथनी- करनी में अंतर पर चोट की- ” अनुसरण तो कर रहे हैं, काम से अनभिज्ञ हैं। भज रहे हैं  राम लेकिन राम  से अनभिज्ञ हैं।लोग जिनका राम के विपरीत है हर आचरण। वह सभी लंकेश के अंजाम से अनभिज्ञ हैं..”
        *पूजा आहूजा कालरा* ने घुँघरू के प्रतीक से हर जिंदगी की नियति को रेखांकित किया- ” शोर तो है हर एक घुँघरू का। दर्द है अपनी-अपनी किस्मत का। मिलावट है एक-एक दाने में। किसी का हुनर निखरने की। किसी को पहनाकर बिकने की..”
      *युवा शायर वैभव असद अकबराबादी* की यह गजल दिल छू गई- ” बहुत सा वक़्त है और पास ही सिरहाना है। सो देखते हैं कि इस बार क्या बहाना है। कि बेड़ई का कड़कपन, जलेबियों की मिठास। ये मेरे शहर का खाना नहीं, ख़ज़ाना है। न याद रखना न एहसान मानना कोई। ये मेरा दोष नहीं आज का ज़माना है..”
      *रितु गोयल* ने आज के इंसान पर व्यंग कसा- ” ना दीन, धरम, ईमान यहाँ। जाने वो कैसे जीते हैं? इंसान नहीं, इंसान नहीं।खुदगर्जी के सँग रहते हैं।
संवाद:- दानिश उमरी