बांदा। “एक कहावत हैं की न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी”। यह फार्मूला जिले में आंगनबाड़ी केंद्रों पर चरितार्थ बखूबी चरितार्थ सा हो रहा हैं। हालांकि जिला कार्यक्रम अधिकारी की माने तो “नौ मन तेल” की व्यवस्था हो गई हैं और “राधा का नाच” अब प्रधान करायेगे!आपको बता दूँ की जिले में करीब साढ़े 17 सौ आंगनबाड़ी केंद्र संचालित हैं। इनमें अधिकांश के पास खुद के भवन नहीं हैं। इस वर्ष जिले में 16 आंगनबाड़ी भवन मनरेगा व पंचायती राज विभाग के कन्वर्जेंस से करीब सात लाख में बनाने का लक्ष्य है। वित्तीय वर्ष के छह माह बीत गए, अभी तक नींव तक नहीं भरी। कार्यदायी संस्था लागत कम होने की बात कह रही है। इससे आंगनबाड़ी भवनों के निर्माण में पेंच फंस गया है।
जनपद में संचालित 1750 आंगनबाड़ी केंद्रों में करीब एक हजार केंद्र किराये के भवनों में या तो फिर प्राथमिक विद्यालय में संचालित हैं। शासन की मंशा है कि आंगनबाड़ी केंद्रों कें खुद भवन हों। इस वर्ष से केंद्रों में प्री-कक्षाएं भी शुरू करा दी गई हैं। इससे सरकार इन सेंटरों में सुविधाएं बढ़ाना चाहती है। भवनों के निर्माण के लिए विभागीय प्राक्लन के आधार पर प्रति केंद्र दो लाख रुपये जिला कार्यक्रम विभाग, पांच लाख रुपये मनरेगा और एक लाख छह हजार रुपये पंचायतीराज विभाग की ओर से खर्च करने का निर्देश है। जिले में इस वित्तीय वर्ष में 16 भवन तैयार कराने का लक्ष्य निर्धारित है, लेकिन वित्तीय वर्ष के छह माह से ज्यादा बीत गए, अभी तक भवनों के नाम पर एक ईंट तक नहीं रखी गई। कार्यदायी संस्था ग्रामीण अभियंत्रण विभाग को बनाया गया है। विभाग ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिए हैं कि भवन की निर्धारित की गई लागत कम है। जबकि भवन बनाने में इससे ज्यादा खर्च होंगे।इस कारण यह कहावत की स्थिति उत्पन्न हो गई की नौ मन तेल रूपी धनराशि की कमी हैं तो राधा रूपी आंगन बाड़ी केंद्र कें निर्माण का नाच कैसे करें?
प्रभारी जिला कार्यक्रम अधिकारी एसडीएम सुधीर कुमार कहतें हैं की कार्यदायी संस्था आरईडी को आंगनबाड़ी भवनों की धनराशि निर्गत कर दी गई है। लागत अधिक होने के कारण संस्थान ने असमर्थता जाहिर की है। अब ग्राम पंचायतों को कार्यदायी संस्था बनाया गया है, ताकि समय रहते भवनों का निर्माण कार्य पूरा हो जाए।
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