गोरखपुर-DVNA। नौज़वानाने अहले सुन्नत की ओर से सूर्य विहार कॉलोनी तकिया कवलदह में तहफ्फुजे नामूसे रिसालत व पैग़ामे ग़ौसे आज़म सेमिनार का आयोजन किया गया। युवा उलमा-ए-किराम कारी मोहम्मद अनस रज़वी, हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी, हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने विभिन्न विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। मुसलमानों के शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक व सियासी हालात पर शहर के मशहूर मुफ़्तियों ने मंथन किया। अवाम में दीनी किताबें मुफ्त बांटी गईं। सेमिनार स्थल नारा-ए-तकबीर, नारा-ए-रिसालत व श्लब्बैक या रसूलल्लाहश् के नारों से गूंज उठा। अवाम के सवालों का जवाब दिया गया।
अध्यक्षता करते हुए मुफ़्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी (मुफ़्ती-ए-शहर) ने कहा कि दुनिया में जो बेअमनी है वह सिर्फ इस बुनियाद पर है कि हमने पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रास्ता छोड़ दिया है। जरूरत इस बात की है कि हम दुनिया में अमन चाहते हैं तो पैग़ंबर-ए-आज़म का रास्ता अपनाना होगा। अमन के लिए भाईचारा और एक को दूसरों के हक़ को पहचानना बहुत जरूरी है। दुनियाभर में मचा खूनखराबा सिर्फ मोहब्बत से रोका जा सकता है और इसका रास्ता पैग़ंबर-ए-आज़म की सुन्नतों पर अमल करने में है। हमारे औलिया किराम जिस रास्ते से गुजरे उन रास्तों में तौहीद व सुन्नत-ए-रसूल का नूर व ख़ुशबू फैल गई। हिन्दुस्तान में ईमान व दीन-ए-इस्लाम इन्हीं बुजुर्गों, औलिया व सूफिया के जरिए आया। ऐसे लोग जिनके चेहरों को देखकर और उनसे मुलाकात करके लोग ईमान लाने पर मजबूूर हो जाते थे। हमें भी इनकी तालीमात पर मुकम्मल अमल करना चाहिए।
मुख्य वक्ता मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पाक ज़िंदगी इंसानियत के लिए एक बेहतरीन मिसाल है, जिससे पूरी दुनिया एक अच्छी और मिसाली ज़िदंगी गुजारने का सबक हासिल करती रही है। दुनिया मोमिन के लिए कैदखाना है। दुनिया जी लगाने की नहीं, इबरत की जगह है। मुसलमानों को दीन-ए-इस्लाम के वसूलों पर चलने का हुक्म अल्लाह ने दिया है। दीन-ए-इस्लाम के वसूल मतलब क़ुरआन और पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बताए गए रास्ते हैं।
विशिष्ट वक्ता मुफ़्ती खुश मोहम्मद मिस्बाही ने कहा कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की राह पर चलकर ही ज़िदंगी व आख़िरत को कामयाब बनाया जा सकता है। मुसलमानों को हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां के नक्शेक़दम पर चलना चाहिए। नमाज़, रोजा, हज, ज़कात के साथ मां-बाप, भाई-बहन, रिश्तेदारों, पड़ोसियों और आम इंसानों का हक़ अदा करें। किसी का दिल न दुखाएं। ।
विशिष्ट वक्ता मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम इंसान के लिए नेमत है। दीन-ए-इस्लाम के रास्ते पर चलने वाला इंसान किसी का हक़ नहीं मारता है। इल्म के बिना किसी मसले की गहराई और उसका हल नहीं तलाशा जा सकता है। अगर हमें अपनी कौम को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है तो इसके लिए जरूरी है कि नई नस्ल को पैग़ंबर-ए-आज़म, सहाबा, अहले बैत व औलिया किराम की पाक ज़िंदगी से अवगत कराया जाए।
क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफ़िज़ आरिफ ने की। नात-ए-पाक मोहम्मद अफरोज क़ादरी, तलहा, कासिद रज़ा इस्माइली, शादाब अहमद रज़वी ने पेश की। संचालन हाफ़िज़ रहमत ने किया। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो सलामती की दुआ मांगी गई। लंगर-ए-ग़ौसिया बांटा गया। सेमिनार में महताब आलम, मो. अफ़जल खान, मो. शमसुल, अब्दुल यासीन खान, हबीब खान, शादाब अहमद, सैयद हुसैन अहमद, सैयद नदीम अहमद, सैयद मतीन अहमद, मो. अमान अत्तारी, मो. अयान, सेराज अहमद, हाजी इरफानुल हक़ अंसारी, मुनीर अहमद, आज़म खान, हाफ़िज़ अलकमा, मौलाना इसहाक, हाफ़िज़ असलम, मौलवी सफ़र, वलीउल्लाह, समीर अली, फैज़, जैद, एड. तौहीद अहमद, एड. शुएब अंसारी, नवेद आलम, मो. आज़म, सलमान, हाजी सेराज अहमद, सैफ, एड. सैयद फ़रहान अहमद क़ादरी सहित बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की।
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