आगरा (डीवीएनए ) माफ़ी दरगाह क़दम रसूल बोदला आगरा में गौर ए आज़म हज़रत अब्दुल कादिर जिलानी की ग्यारहवीं शरीफ पर फ़ातिहा ख़्वानी का अहतमाम किया गया, इस मौके पर लंगर गौस पाक के व नातो मनक़त का नज़राना पेश किया गया,
दरगाह के ख़ादिम पीरज़ादा आमिर शेख़ क़ादरी शफ़ीकी अशरफ़ी ने तमाम लोगों को 11वी शरीफ़ मुबारकबाद पेश करते हुए कहा की हुज़ूर सैय्यदना गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैहि ने फ़रमाया मेरे नज़दीक भूखों को खाना खिलाना और अच्छे अखलाक ज्यादा फ़ज़ीलत वाले काम है फिर फ़रमाया मेरे हाथ मे पैसा नही ठहरता अगर सुबह को मेरे पास 1000 दीनार आऐ तो शाम तक उनमें से एक पैसा भी ना बच सकेगा जितना भी हो सब ज़रूरमंदो व गरीबों में बॉट दूँ,
सैय्यद रमज़ान बेकानेवी ने कहा कि अब्दुल कादिर जिलानी सारे वलियों के सरदार है तमाम वलियों के कंधों पर आपका कदम है मुबारक है आपकी तारीफ में जितने भी अल्फाज कह जाए वह कम है जब हुजूर सल्लल्लाहो ताला अलेही वसल्लम मेराज पर गए थे,तब एक नौजवान ने अपने कांधे पर उसूर सल्ला वाले वसल्लम का पाव मुबारक रखकर आगे बढ़ाया था यानी अर्शी आज़म तक पहुंचाया था जब अल्लाह ताला से हुजूर सल्ला वाले वसल्लम ने पूछा था?यह नौजवान कौन है अल्लाह तबारक व ताला ने इरशाद फरमाया था कि यह अब्दुल कादिर है और यह तुम्हारी उम्मत में होगा और तमाम जहान के वलियों का सरदार होगा आपका यह मर्तबा अर्शी आज़म के ऊपर था,
सूफ़ी दिलक़श जलौनवी ने कहा कि शेख अब्दुल कादिर जिलानी से मांगी गई कोई भी दुआ खाली नहीं जाती अगर किसी को भी अपनी दुआ कुबूल करवानी हो तो, वह गौसे आजम का वसीला देकर यानी शेख अब्दुल कादिर जिलानी का वसीला देकर अल्लाह से मांगे तो वह दुआ इंशाल्लाह जरूर कबूल होती है, अब्दुल कादिर जिलानी का गुस्सा बेहद तेज था, उनका जलाल बहुत ज्यादा था,अगर कोई परिंदा भी उनके मजार के ऊपर से गुजर जाता तो वह जलकर राख हो जाता एक मर्तबा दो अब्दाल आसमान में शेयर कर रहे थे अचानक गौसे आजम की मजार के पास आए तो उन्होंने सोचा कि मजार से बचकर निकले अचानक शैतान ने उन्हें उलझा दिया और उनके मन में ख्याल आया कि हम भी तो अब दाल हैं, हमारा भी बहुत बड़ा मर्तबा है यह सोचकर वह मजार के ऊपर से गुजर गए और उसके बाद वह दोनों जमीन पर आकर ऐसे गिरे के हाथ पांव सभी कुछ टूट गया और वह जिंदगी भर के लिए लाचार होकर एक कोने में पड़े रहे.अगर कोई कभी भी किसी भी मुसीबत में हो और सच्चे दिल से कह दे या गौस अल मदद तो उसे गौस की मदद जरूर मिलती है अब्दुल कादर जीलानी को और से आजम के नाम से भी जाना जाता है और या गौस अल मदद कहने पर अकेले रास्ते में भी मदद मिल जाती है बशर्ते इंसान सच्चे दिल से गौस अल मदद पुकारे.
इस मौके पर मौजूद रहे मौलाना कमरुद्दीन , कारी ज़ीशान ,सूफी नूर मुहम्मद साबरी, सानू खान मदारी, सूफ़ी शकीर क़ादरी, बबुआ क़ादरी शफ़ीकी, सरदार कुरैशी, जीतू कुसबाह, पंकज साहित्य, छोटू क़ादरी शफ़ीकी, हाजी आरिफ, आदि