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कोरोना ने समझाई फेफड़ों की अहमियत : डॉ. सूर्यकान्त

फ़िरोज़ाबाद, ( डीवीएनए)। क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी.) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस भी कहते हैं। इस कोरोना काल ने हमें हमारे एक जोड़ी फेफड़ों की अहमियत बता दी है। वायु प्रदूषण से भी फेफड़ों को बचाने की जरूरत है।
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त का कहना है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार सी.ओ.पी.डी. दुनिया भर में होने वाली बीमारियों से मौत का तीसरा प्रमुख कारण है। वर्ष 2019 में विश्व में 32 लाख लोगों की मृत्यु इस बीमारी की वजह से हो गयी थी वही भारत में लगभग पांच लाख लोगों की मृत्यु हुयी थी। अगर हम विश्व की दस प्रमुख बीमारी की बात करें तो सन् 1990 में यह छठवीं मुख्य बीमारी थीं वही अब यह तीसरे नम्बर पर आ गयी है।
धूम्रपान सी.ओ.पी.डी. का प्रमुख जोखिम कारक है, किन्तु आज विश्व में बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण, इसके मुख्य कारणों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा भोजन बनाने में उपयोग होने वाले उपले, लकड़ी, अंगीठी, मिट्टी के चूल्हे के द्वारा निकलने वाले धुएं से भी यह बीमारी हो सकती है। सर्दी का मौसम शुरू को चुका है। इस समय वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है। इसके साथ ही सांस की बीमारियां, निमोनिया एवं क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस का प्रकोप बढ़ने लगा है।
लक्षणः
सी.ओ.पी.डी. की बीमारी में प्रारम्भ में सुबह के वक्त खांसी आती है, धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलने लगता है। सर्दी के मौसम में खासतौर पर यह तकलीफ बढ़ जाती है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, धोना, चलना-फिरना, बाथरूम जाना आदि में भी अपने को असमर्थ पाता है।
परीक्षणः
सामान्यतः प्रारंभिक अवस्था में एक्स-रे में फेफड़े में कोई खराबी नजर नहीं आती, लेकिन बाद में फेफड़े का आकार बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप दबाव बढ़ने से दिल लम्बा और पतले ट्यूब की तरह (ट्यूबलर हार्ट) हो जाता है। इस रोग की सर्वश्रेष्ठ जांच स्पाइरोमेटरी (कम्प्यूटर के जरिये फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच) या पी.एफ.टी. ही है। लकिन वर्तमान कोविड काल में ये जांचें बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही की जाती हैं क्योंकि इनसे संक्रमण फैलने का खतरा रहता है। गंभीर रोगियों में ए.बी.जी. के जरिये रक्त में आक्सीजन और कार्बन डाईआक्साइड की जांच की जाती है। कुछ रोगियों में सी.टी. स्कैन की भी आवश्यकता पड़ती है।
उपचारः
सी.ओ.पी.डी. के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है जिसे चिकित्सक की सलाह से नियमानुसार लिया जाना चाहिए। सर्दियों में दिक्कत बढ़ जाती है, इसलिये चिकित्सक की सलाह से दवा की डोज में परिवर्तन किया जा सकता हैं। खांसी व अन्य लक्षणों के होने पर चिकित्सक के सलाहनुसार संबधित दवाइयां ली जा सकती है। खांसी के साथ गाढ़ा या पीला बलगम आने पर चिकित्सक की सलाह से एन्टीबायोटिक्स ली जा सकती है। गम्भीर रोगियों में नेबुलाइजर, ऑक्सीजन व नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एन.आई.वी.) का उपयोग भी किया जाता है।
बचावः
सीओपीडी का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को रोकना है, जो रोगी प्रारम्भ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं उनको अधिक लाभ होता है। इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल, धुआं या गर्दा के वातावरण में रहता है या कार्य करता है उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे कोम छोड़ देने चाहिए। ग्रामीण महिलाओ को लकड़ी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए।
क्या करें :
सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहनें। मास्क लगायें, सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें। सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़े, यह कवायद आपको जुकाम, फ्लू तथा कोरोना की बीमारी से बचाकर रखती है। गुनगुने पानी से नहाएं। सांस के रोगी न सिर्फ सर्दी से बचाव रखें वरन नियमित रूप से चिकित्सक के सम्पर्क में रहें व उनकी सलाह से अपने इन्हेलर की डोज भी दुरूस्त कर लें।
क्या न करें :
सर्दी में सांस के मरीजों को मार्निंग वॉक नहीं करनी चाहिए। सुबह-सुबह ठन्डे पानी से न नहायें। सांस के रोगी अलाव के धुयें से बचें अन्यथा इससे उन्हें सांस का दौरा पड़ सकता है। खाने से पहले साबुन से अच्छी तरह हाथ धुलें, आंख, नाक या मुंह को छूने से बचें। हाथ मिलाने से बचें।

संवाद। नूरुल इस्लाम