देश विदेशहिंदी

दीन-ए-इस्लाम में औरतों का सम्मान ही सम्मान: मुफ़्ती-ए-शहर

गोरखपुर-DVNA। गाज़ी मस्जिद गाज़ी रौज़ा में हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की याद में महफिल-ए-ग़ौसुलवरा का आयोजन हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफ़िज़ आमिर हुसैन निज़ामी ने की। नात व मनकबत पेश की गई।
मुख्य अतिथि मुफ़्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी (मुफ़्ती-ए-शहर) ने हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की शान बयान करने के बाद कहा कि दीन-ए-इस्लाम में औरतों का बहुत ऊंचा मर्तबा है। दीन-ए-इस्लाम ने औरतों को अपने जीवन के हर भाग में महत्व प्रदान किया है। माँ के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, बीवी के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, बेटी के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, बहन के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, विधवा के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, खाला के रूप में उसे सम्मान प्रदान किया है, तात्पर्य यह कि दीन-ए-इस्लाम ने हर परिस्थितियों में औरतों को सम्मान प्रदान किया है।
विशिष्ट अतिथि मौलाना रियाजुद्दीन क़ादरी ने हदीसों के हवाले से कहा कि दीन का इल्म हासिल करना इबादत से अफ़ज़ल है। दीन-ए-इस्लाम का एक आलिमे रब्बानी हजारों आबिदों से अफ़ज़ल, आला और बेहतर है। आबिदों पर उलमा की फज़ीलत ऐसे है जिस तरह सितारों के झुरमुट में चौंदहवीं का चांद चमक रहा हो। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म है कि मेरे उम्मती इस हाल में सुबह कर कि तू आलिम हो, अगर तेरे बस में आलिम होना न हो तो फिर मैं तुझे ताकीद करता हूं कि तू तालिबे इल्म जरूर हो और तू आलिम व तालिबे इल्म न हो तो फिर इन दोनों में से किसी एक की बात सुनने वाला जरूर बन। अगर तू इनका सुनने वाला भी न हो तो इनसे मोहब्बत करने वाला जरूर हो जा।
अंत में दरूदो सलाम का नज़राना पेश किया गया। खुर्मा बांटा गया। महफिल में हाफ़िज़ रेयाज अहमद, ताबिश सिद्दीक़ी, फहीम, कासिफ, सोनू, सेराज, मुमताज, कारी इसराक, शिराज सिद्दीक़ी, शहबाज शिद्दीक़ी, हाफ़िज़ शहीद आदि ने शिरकत की।

Auto Fetched by DVNA Services

Comment here