राजनीति

संविधान की अवमानना करने वाले जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश को तत्काल पद से हटाया जाए- शाहनवाज़ आलम

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जसटिस लें स्वतः संज्ञान

भाजपा सरकार संविधान बदलने का माहौल बना रही है, नहीं होने देंगे उसे सफल

लखनऊ, । जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश पंकज मित्तल द्वारा एक कार्यक्रम में भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दर्ज समाजवाद और पंथनिरपेक्ष शब्द पर आपत्ति उठाने को अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश चेयरमैन शाहनवाज़ आलम ने संविधान विरोधी आचरण बताते हुए उन्हें पद से हटाने की मांग की है।

शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा कि एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना संविधान को सर्वोपरि बताते हैं वहीं उनके अधीनस्थ एक राज्य के मुख्य न्यायाधीश संविधान की खुले आम अवमानना करते हुए संविधान के मूल तत्वों की ही आलोचना कर रहे हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को स्वतः संज्ञान लेते हुए जम्मू कश्मीर के मुख्य न्यायाधीश को पद से हटा कर संविधान के मूल तत्वों पर किये जा रहे हमलों को विफल करने की नज़ीर पेश करनी चाहिए।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि केशवानन्द भारती और एस आर बोम्मई मामलों में सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा निर्देश हैं कि संविधान की प्रस्तावना में कोई भी संशोधन नहीं किया जा सकता। बावजूद इसके अगर किसी राज्य का मुख्य न्यायाधीश ही उन मूल्यों की सारवजनिक आलोचना करते हुए भी अपने पद पर बना रहता है तो यह संविधान को चुनौती देना है। जिस पर मुख्य न्यायधीश को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 20 जून 2020 को राज्य सभा के भाजपा सांसद राकेश सिन्हा द्वारा एक प्राइवेट मेंबर बिल ला कर संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद शब्द हटाने की मांग करना, पिछले दिनों 3 दिसंबर को भाजपा के ही एक अन्य सांसद के जे अल्फोंस द्वारा संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करने के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाना और ध्वनि मत में इस के खिलाफ़ संख्या बल होने के बावजूद राज्यसभा के स्पीकर हरिवंश द्वारा उसे रिज़र्व में स्वीकार कर लिया जाना बताता है कि भाजपा सरकार संविधान को बदलने के लिए भूमिका तैयार कर रही है। उन्होंने कहा कि कमज़ोर तबक़ों को मिलने वाली सरकारी सुविधाओं, दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को मिलने वाले आरक्षण और अल्पसंख्यक समुदायों को मिलने वाले अधिकारों को खत्म करने के लिए संघ संविधान को बदलना चाहता है। पिछली अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने भी संविधान समीक्षा के नाम पर ऐसी ही कोशिश की थी।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने लोकतंत्र को पूंजीपतियों और सांप्रदायिक शक्तिओं से बचाने के लिए 1976 में 42 वें संविधान संशोधन के ज़रिये ये शब्द जोड़े थे जो 3 जनवरी 1977 से अमल में आया था। उन्होंने कहा कि 3 जनवरी को अल्पसंख्यक कांग्रेस हर ज़िले में कार्यक्रम आयोजित कर लोगों को इस दिन के महत्व के बारे में जागरूक कर इन मूल्यों की रक्षा के लिए शपथ दिलवायेगी।

द्वारा जारी
शाहनवाज़ आलम
चेयरमैन अल्पसंख्यक विभाग
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी