गोवा-कर्नाटक व मध्यप्रदेश सरकार गिरने के बावजूद अपनी सरकार को बचाने मे कामयाब रहना माना जायेगा
मुख्यमंत्री ने तीन साल के अपनी सरकार के कार्यकाल मे दोस्त कम दुश्मन अधिक बनाये।
जयपुर।
हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने के जश्न काफी बढचढकर मना रहे है। लेकिन तीन साल मे मुख्यमंत्री गहलोत की बडी उपलब्धि अपनी सरकार को बचाये रखने से अधिक नही मानी जा सकती। अपने चहते सेवानिवृत्त ब्यूरोक्रेट्स को तो अधीकांश संवैधानिक पदो पर नामित करके उनको सत्ता का सूख भोगने की खुलकर छूट दी पर कांग्रेस को सत्ता मे लाने मे दिन रात एक करने वाले कांग्रेस कार्यकर्ताओं व नेताओं को राजनीतिक नियुक्तियों से दूर रखकर उन्हें सत्ता आने का अहसास तक नही होने दिया है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने सत्ता मे आने के बाद राजनैतिक तौर पर दोस्त कम व दुश्मन अधिक बनाये है। उनकी सरकार को समर्थन देने वाले वामपंथी नेता व माकपा सचिव कामरेड अमरा राम ने पेट्रोल-डीजल पर स्टेट का वेट कम नही करने के साथ साथ देश मे बिजली सबसे महंगी राजस्थान मे होने को लेकर जल्द सरकार के खिलाफ बडा आंदोलन खड़ा करने का ऐहलान कर दिया है। समर्थन दे रही भारतीय ट्राईबल पार्टी के नेता छोटू सिंह बसावा अब एआईएमआईएम नेता सांसद ओवैसी से मिलने लगे है। किसान आंदोलन को लेकर रालोपा के नेता सांसद हनुमान बेनीवाल के एनडीए से समर्थन वापस लेने के बावजूद उसकी तरफ दोस्ती का हाथ नही बढाने के चलते अगले कुछ दिनो मे बेनीवाल फिर एनडीए मे शामिल हो सकते है।
गोवा-कर्नाटक व मध्यप्रदेश मे बनी कांग्रेस सरकार को गिराकर भाजपा वहां सरकार बनाने मे कामयाब रही। पर राजस्थान मे भाजपा को इस मुद्दे पर मुंह की खानी पड़ी। पहले की तरह मुख्यमंत्री गहलोत ने इस दफा भी विधायकों की डिजायर प्रथा को परवान चढाते हुये चपरासी से लेकर उच्च अधिकारियों को उनके क्षेत्र मे पदस्थापित करने व विकास के काम विधायकों की मंशा अनुसार स्वीकार करने के अलावा स्थानीय निकाय -पंचायत चुनाव मे उम्मीदवार चयन भी केवल उनकी इच्छानुसार बनाने से संगठन को पंगू व कार्यकर्ताओं की इच्छाओं पर कठोरागात करने मे कोई कमी नही रखी।
कहने को गहलोत चुनाव के समय जारी कांग्रेस मेनीफेस्टो के अनुसार अधीकांश वायदे पूरा करने का दावा करते है लेकिन उन्होंने वो महत्वपूर्ण वायदे पूरे नही किये जिनके बल पर वो सत्ता मे आये है। गहलोत सरकार मे केवल विधायकों को छोड़ दे तो बाकी अधीकांश लोकसभा उम्मीदवार व प्रमुख नेताओं की सत्ता मे कोई वोईस नही है। विधायकों को क्षेत्र का एक तरह से एसएचओ-तहसीलदार बनाने से लेकर राजतंत्र का राजा बनाने के कारण कांग्रेस विधायकों से क्षेत्र का मतदाता खासा नाराज है। अगर इसी वर्तमान हालत मे या फिर गहलोत की इसी कार्यशैली के चलते उनके नेतृत्व मे 2023 के विधानसभा चुनाव होते है तो दो अंको मे कांग्रेस की सीट आना मुश्किल हो सकता है।
कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत सरकार के तीन साल की प्रमुख उपलब्धि मात्र अपनी सरकार को बचाये रखना मानी जा सकती है। उपचुनावों मे कांग्रेस के अच्छे प्रदशर्न को वो बडी उपलब्धि व सरकार की लोकप्रियता से जोड़कर बता रहे है। जबकि पर्दे के पीछे भाजपा नेता वसुंधरा राजे समर्थकों का कांग्रेस उम्मीदवारों को जीताने व बचे समय सरकार के साथ रहकर हित साधने की परिपाटी बडा कारण माना जा रहा है।
संवाद। अशफाक कायमखानी