आगरा। (डीवीएनए)डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान संस्थान एवं आई. क्यू. ए. सी. के संयुक्त प्रयास से दिनांक 3 फरवरी, 2022 को “कोविड-19 महामारी के समय में लैंगिक समानता” विषय पर एक राष्ट्रीय बेबिनार का आयोजन कुलपति महोदय ‘प्रो. विनय कुमार पाठक’ की अध्यक्षता में किया गया। कुलपति महोदय ने अपने वक्तव्य में कहा कि पिछले कुछ समय में लैंगिक असमानता अत्यधिक देखने में आई है और शिक्षा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा लैंगिक समानता के अंतर को खत्म किया जा सकता है।
उन्होंने गरीब लड़कियों की सफलता कहानियों को महिलाओं एवं कन्याओं के सामने प्रस्तुत करने पर जोर दिया जिससे कि वे भी प्रेरित हो सकें तथा समाज विज्ञान से जुड़े छात्र-छात्राओं को इस संदर्भ में कार्य करने के लिए भी प्रेरित किया एवं अपना आशीर्वाद वचन दिया। इसके बाद गृह विज्ञान संस्थान की निर्देशिका ‘प्रो. अचला गक्खड़’ ने कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य दिया। उन्होंने लैंगिक समानता विषय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि समाज में स्त्री पुरुष दोनों का समान रूप से योगदान किसी भी समाज की उन्नति के लिए बहुत आवश्यक है।
समाज में आज भी लैंगिक भेदभाव व्याप्त है और कोविड-19 की स्थिति ने नई चुनौतियां प्रस्तुत की हैं जिनके संदर्भ में आवश्यक कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। स्कूल ऑफ जेंडर स्टडीज, इग्नू, दिल्ली की पूर्व डायरेक्टर ‘प्रोफेसर नीलिमा श्रीवास्तव’ ने अपने वक्तव्य में कहा कि लैंगिक भेदभाव समाज में व्याप्त है और इस समस्या से महिलाएं विशेषता गरीब समाज की महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित होती हैं। यूनाइटेड नेशंस के अनुसार भले ही कोविड-19 का कारण पथोजेनिक है पर इसके प्रभाव हर स्तर पर देखने में आ रहे हैं।
महिलाओं की आधी आबादी होने के बाद भी समाज के क्षेत्रों में उनकी भागीदारी कम पाई गई है। सर्वेक्षणों में पाया गया है कि हर 20 आईएएस पर केवल एक महिला आईएएस है। राजनीतिक क्षेत्र में 680 सीट पर 103 महिला पाई गईं एवं 78 मंत्री पदों में 11 पदों पर महिलाएं पाई गई। इसके अलावा महिलाओं की श्रम बल सहभागिता की दर 24% से 35% के बीच पाई गई। पुरुष प्रधान समाज में पूंजीवादीता और पितृसत्तात्मक व्यवस्था के जुड़ने के कारण दो अलग क्षेत्र बन गए । महिलाओं की भागीदारी निजी क्षेत्र में अधिक बढ़ गई जबकि पुरुषों की भागीदारी कार्य क्षेत्र में अधिक हो गई । कोविड-19 के समय में महिलाओं के घरेलू काम की जिम्मेदारी 10 गुना से बढ़कर 30 गुना हो गई ।
पूरे एशिया में महिलाएं पुरुषों की तुलना में घरेलू कार्य में चार गुना समय अधिक दे रहींं हैं । विश्व में पुरुष घरेलू कार्यों में एक घंटा प्रतिदिन दे रहे थे जबकि भारत में यह केवल आधा घंटा प्रतिदिन ही पाई गई। विशेषकर कोविड-19 में नौकरों की सुविधा भी बंद होने के महिलाओं पर अतिरिक्त घरेलू जिम्मेदारी जुड़ी है। हालांकि पुरुष अपना सहयोग दे रहे हैं, लेकिन यह सहयोग स्वैच्छिक है, जबकि महिलाओं के लिए यह एक निश्चित जिम्मेदारी है ।
स्वास्थ्य के स्तर पर कोविड-19 के दौरान पुरुषों की तुलना में एक करोड़ महिलाओं ने कम टीकाकरण करवाया है। कम सहभागिता का कारण इंटरनेट की सुविधा का अभाव, पुरुषों पर निर्भरता, यातायात सुविधाओं का अभाव एवं अपने स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता है। कार्यक्षेत्र में भी महिलाओं को बहुत भेदभाव का सामना करना पड़ता है जैसे कार्य में अंतर, आय में असमानता, नौकरी में स्थायित्व का अभाव। एक सर्वे के अनुसार 2020 में 47% महिलाओं की नौकरी चली गई जबकि यह प्रतिशत पुरुषों के लिए 7% था।
ऐसे समय में विशेषकर लड़कियों की शिक्षा पर जोर देने की आवश्यकता है जिससे कि भविष्य में इसका सकारात्मक प्रभाव हो । कोविड-19 में घरेलू हिंसा की दर ढाई गुना बढ़ गई इसके लिए भी निश्चित तौर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही महिला एवं कन्याओं के लिए खाद्य गुणवत्ता भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। कोविड-19 के समय में परिवार नियोजन साधनों के अभाव में अवांछित गर्भ की समस्या से भी महिलाओं को जूझना पड़ा है। महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे पाए गए, इस विषय में भी परामर्श देने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के अंत में आइक्यूएसी सेल के डायरेक्टर ‘प्रो. अजय तनेजा’ के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन दिया गया।
संवाद:- दानिश उमरी