नई दिल्ली, : पारंपरिक चिकित्सा और एलोपैथिक चिकित्सा पर आधारित एकीकृत स्वास्थ्य सेवा दृष्टिकोण उभरती स्वास्थ्य चुनौतियों की रोकथाम और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, यह बात प्रो. आसिम अली ख़ान, महानिदेशक, केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद (के.यू.चि.अ.प.), आयुष मंत्रालय, भारत सरकार ने एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा, उत्तर प्रदेश द्वारा आयोजित ‘सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य देखभाल हेतु पारंपरिक चिकित्सा-आधुनिक दृष्टिकोण’ पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दूसरे दिन अपने मुख्य भाषण में कही। प्रो. ख़ान ने आगे कहा कि एकीकृत दृष्टिकोण कोविड-19 महामारी से निपटने और इस विषय पर शोध गतिविधियों को अंजाम देने में बहुत मददगार साबित हुआ है। विषय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. ख़ान ने कहा कि स्वास्थ्य देखभाल वितरण प्रणाली में हमारी पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली की ताकत के एकीकरण के आधार पर एक समावेशी दृष्टिकोण स्वास्थ्य चुनौतियों के समाधान के लिए संभावित विकल्प है।
‘यूनानी,सिद्ध और होम्योपैथी:भारतीय बुनयादों का पुनरुद्धार’ पर पैनल चर्चा सत्र में बोलते हुए प्रो. ख़ान ने कहा कि यूनानी चिकित्सा ने भारत में प्रमुख प्रगति की है और भारतीय भू-मानव पर्यावरण में अपने सिद्धांतों को सफलतापूर्वक लागू किया है जिस से यह प्रणाली एक प्रभावी और लोकप्रचलित चिकित्सा पद्धति के रूप में उभर सकी और राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा वितरण का एक एकीकृत हिस्सा बन सकी। उन्होंने आगे कहा कि शैक्षिक, स्वास्थ्य देखभाल और अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के सबसे बड़े नेटवर्क के कारण भारत यूनानी चिकित्सा में विश्व अग्रणी है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित ‘सरकारी क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों के प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम’ के तहत यह ऑनलाइन प्रशिक्षण कार्यक्रम 21 फरवरी को शुरू हुआ और 25 फरवरी 2022 को समाप्त होगा।