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भरगैन के वन में इस बार नहीं खिले पलाश के फूल

मार्च के अंतिम सप्ताह में भी वीरान दिख रहा है भरगैन का 989 बीघा का वन

कासगंज: होली बीत गई, मगर भरगैन के वन में इस बार पलाश (टेसू) के फूल नहीं खिले। यह पहला मौका है जब पलाश के पेड़ सूने रह गए, जो सामान्य तौर पर मार्च के महीने में होली से कुछ दिन पहले ही सूर्ख लाल और केसरिया रंग के पलाश के फूलों से लद जाते थे।
कासगंज जिले के कस्बा भरगैन का वन इस साल ऋतुराज वसंत के स्वागत की तैयारी में नहीं दिखा। जो वन होली के समय फूलों से लदा होता था, सूना पड़ा है। वन में खिलने वाले पलाश के फूल कहीं नजर नहीं आ रहे। बदले मौसम का सबसे अधिक असर पलाश के फूलों पर हुआ है। भरगैन में राजकीय पुष्प पलाश अमूमन होली के समय अपने शबाब पर होता था, लेकिन इस बार 989 बीघा का वन अभी तक सूना दिख रहा है। विशेषज्ञ और प्रकृति प्रेमी इसकी वजह असामान्य मौसम को मान रहे हैं और इसे गंभीर जलवायु परिवर्तन का संकेत भी बता रहे हैं। प्रकृति प्रेमी व समाजसेवी रिहान खान और बुजुर्गों के मुताबिक इसकी दो वजह हो सकती है, पहली असामान्य मौसम की घटना और दूसरी जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम का असामान्य होना। ऐसा सुनने में आ रहा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण पूरे प्रदेश में पलाश के फूलों पर असर पड़ा है।

अमूमन फरवरी के अंत तक आते हैं फूल
भरगैन: पलाश के फूल अमूमन फरवरी के अंत तक खिल जाते हैं और जून तक इसके बीज तैयार हो जाते हैं। होली के समय इन फूलों को चुनकर इससे प्राकृतिक रंग बनाया जाता है। पलाश के फूलों को बाजारों में भी बेचा जाता रहा है। इसके अलावा फूलों की डाल पर लाह नामक पदार्थ भी इकट्ठा होता है, जिसकी बाजार में कीमत 300 से 400 रुपए किलो होती है। इसका उपयोग गहने बनाने और दवा उद्योग में होता है।

डाक टिकट पर भी है राज्य पुष्प पलाश
भरगैन: विभिन्न रासायनिक गुण होने के कारण यह आयुर्वेद के लिए विशेष उपयोगी है। इसके गोंद, पत्ता, जड़, पुष्प सभी औषधीय गुणों से ओतप्रोत हैं। इसका पुष्प उत्तर प्रदेश सरकार का ‘राज्य-पुष्प’ भी कहलाता है। यह पुष्प डाक टिकट पर भी शोभायमान हो चुका है।

संवाद। नूरुल इस्लाम