नई दिल्ली,: भारत में यूनानी चिकित्सा अच्छी तरह फल-फूल रही है और यह संतोषजनक है कि हम इस चिकित्सा प्रणाली के विकास में भागीदार हैं, ये बात प्रो. मोहम्मद अफशार आलम, कुलपति, जामिया हमदर्द, नई दिल्ली ने केंद्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान परिषद (के.यू.चि.अ.प.), आयुष मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा क्षेत्रीय यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (क्षे.यू.चि.अ.सं.), चेन्नई में बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही। उन्होंने आगे कहा कि यूनानी चिकित्सा में अनुसंधान और विकास के लिए के.यू.चि.अ.प. सर्वोच्च निकाय है और हमने इस क्षेत्र में अपना योगदान देने के लिए के.यू.चि.अ.प. के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। आईपीआर के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि विज्ञान की प्रगति और आर्थिक समृद्धि के लिए आईपीआर का निर्माण बहुत महत्वपूर्ण है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. आसिम अली ख़ान, महानिदेशक, के.यू.चि.अ.प., आयुष मंत्रालय, भारत सरकार ने कहा कि भारत सरकार माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के सक्रिय नेतृत्व में यूनानी चिकित्सा तथा अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धतियों के बहुआयामी विकास के लिए लगातार संरक्षण और निधि प्रदान कर रही है। प्रो. ख़ान ने बताया कि के.यू.चि.अ.प. यूनानी चिकित्सा के अनुसंधान, प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए मानक स्थापित करने के लिए ठोस प्रयास कर रही है और राष्ट्रीय त्वचा रोग यूनानी चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद और क्षे.यू.चि.अ.सं., श्रीनगर के लिए एनएबीएच मान्यता प्राप्त कर ली है। जबकि के.यू.चि.अ.प. के अंतर्गत अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं की मान्यता के लिए प्रयास जारी हैं। उन्होंने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने आयुष मंत्रालय के सहयोग से यूनानी चिकित्सा में प्रशिक्षण और अभ्यास के लिए हाल ही में डब्ल्यूएचओ बेंचमार्क प्रकाशित किये हैं।
संगोष्ठी के बारे में बोलते हुए प्रो. ख़ान ने कहा कि यह बौद्धिक संपदा अधिकारों के बारे में शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों और अन्य हितधारकों को प्रशिक्षित करने के हमारे प्रयासों की एक कड़ी है। उन्होंने बताया कि के.यू.चि.अ.प. ने पहले ही अपने बौद्धिक संपदा अधिकारों पर 17 पेटेंट प्राप्त कर लिए हैं और अधिक प्राप्ती की कोशिश जारी है।
श्री एस थंगापांडियन, उप नियंत्रक, पेटेंट और डिजाइन, भारतीय पेटेंट कार्यालय, चेन्नई और प्रो. अब्दुल वदूद, निदेशक, राष्ट्रीय यूनानी चिकित्सा संस्थान, बैंगलोर ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया।
इससे पहले डॉ. एन. ज़हीर अहमद, उप निदेशक, क्षे.यू.चि.अ.सं., चेन्नई ने स्वागत भाषण दिया और संगोष्ठी की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी में पैनल चर्चा सहित तीन तकनीकी सत्र थे, जिनमें प्रख्यात वक्ताओं ने हर्बल दवाओं और उत्पादों पर ध्यान देने के साथ बौद्धिक संपदा अधिकारों को व्यक्त किया।
देश के विभिन्न भागों से वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं, छात्रों और प्रतिनिधियों के साथ-साथ क्षे.यू.चि.अ.सं., चेन्नई और के.यू.चि.अ.प. मुख्यालय के शोधकर्ताओं ने संगोष्ठी में भाग लिया।