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मदरसा दारुल उलूम देवबंद पहुँचे प्रदेश अल्पसंख्यक अध्यक्ष अशफ़ाक़ सैफ़ी

लखनऊ। (डीवीएनए) मदरसा दारुल उलूम देवबंद में शुक्रवार को प्रदेश अध्यक्ष अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अशफ़ाक़ सैफ़ी पहुँचे। जहां उन्होंने कुलपति मोहतमिम हज़रत मौलाना मुफ़्ती अबुल कासिम साहब, उप कुलपति नायब मोहतमिम मौलाना अब्दुल ख़ालिक़ मद्रासी साहब से यादगार मुलाक़ात की मौलाना असजद अली साहब और मौलाना ए क्यू  नोमानी साहब के साथ मदरसे की व्यवस्थाओं जायज़ा लिया। साथ ही अपने इस सफर को यादगार भी बताते हुए दारुल उलूम की बारीखियों को भी जाना।

मौलाना असजद अली साहब और मौलाना ए क्यू नोमानी साहब ने बताया दारुल उलूम देवबन्द भारत के स्वतंत्रता संग्राम में केंद्र बिन्दु जैसा था, जिसकी शाखायें दिल्ली , दीनापुर , अमरोत , कराची , खेड़ा और चकवाल में स्थापित थी। भारत के बाहर उत्तर पशिमी सीमा पर छोटी सी स्वतंत्र रियासत ”यागि़स्तान “ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का केंद्र था, यह आंदोलन केवल मुसलमानों का न था बल्कि पंजाब के सिक्खों व बंगाल की इंकलाबी पार्टी के सदस्यों को भी इसमें शामिल किया था। बंटवारे का दारुल उलूम ने डट कर विरोध किया और इंडियन नेशनल कांग्रेस के संविधान में ही अपना विश्वास व्यक्त कर पाकिस्तान का विरोध किया। आज भी दारुल उलूम अपने देशप्रेम की विचार धारा के लिए सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।

दारुल उलूम देवबन्द में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मुफ्त शिक्षा, भोजन, आवास व पुस्तकों की सुविधा दी जाती है। दारुल उलूम देवबन्द ने अपनी स्थापना से आज (हिजरी 1283 से 1424) सन 2002 तक लगभग 95 हजार महान विद्वान, लेखक आदि पैदा किये हैं। दारुल उलूम में इस्लामी दर्शन, अरबी, फारसी, उर्दू की शिक्षा के साथ साथ किताबत (हाथ से लिखने की कला) दर्जी का कार्य व किताबों पर जिल्दबन्दी, उर्दू, अरबी, अंग्रेजी, हिन्दी में कम्प्यूटर तथा उर्दू पत्रकारिता का कोर्स भी कराया जाता है। दारुल उलूम में प्रवेश के लिए लिखित परीक्षा व साक्षात्कार से गुज़रना पड़ता है। प्रवेश के बाद शिक्षा मुफ्त दी जाती है। दारुल उलूम देवबन्द ने अपने दार्शन व विचारधारा से मुसलमानों में एक नई चेतना पैदा की है जिस कारण देवबन्द मदरसे का प्रभाव भारतीय महादीप पर गहरा है।

संवाद:- दानिश उमरी