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ख़्वाजा साहब की दरगाह में राजस्थान के लोक कलाकार गाजी खान स्टेबर ने चूमी चौखट

अज़मेर । विश्व प्रसिद्ध महान सूफ़ी संत हज़रत ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में राजस्थान के लोक कलाकार गाजी खान स्टेबर ने मखमली चादर व अक़ीदत के फूल पेश किए ।उन्हें दरगाह शरीफ के ख़ादिम सैयद कुतबुद्दीन सखी ने ज़ियारत कराई औऱ दरगाह शरीफ का तबरूक दिया ।
ज़ियारत के बाद राजस्थान के लोक कलाकार गाजी खान स्टेबर ने पायेती दरवाजे के पास कव्वालों के साथ ख़्वाजा साहब की शान में सूफ़ियाना कलाम भर दो झोली में या मोहम्मद लौटकर में ना जाऊँगा ख़ाली ।
दूसरा कलाम ख्वाजा मेरे ख़्वाजा दिल में समा जा शाहों का शाह तू अली का दुलारा तेरे दरबार में ख़्वाजा सर झुकाते औलिया तू है हिन्दवली ख़्वाजा गाकर अपनी अक़ीदत का इज़हार पेश किया ।
मीडिया से बातचीत में लोक कलाकार गाजी खान ने बताया कि मांगणियार लोक कलाकारों की, जो राजस्थान की शान हैं।
देश-विदेश के कई मंचों पर राजस्थान की इस लोक कला को पहुंचाने का श्रेय इन्हीं को जाता है,भारत में पीढी दर पीढ़ी चली आ रही पारंपरिक कलाओं को लोक कला कहा जाता है। इन्हीं में से एक है मांगणियार लोक कला। यह वंशानुगत पेशेवर संगीतकारों का एक समूह हैं।
राजस्थान के कण-कण में लोकगीत रचे बसे हैं। माटी की सोंधी महक इन लोकगीतों के स्वर को नई ऊंचाइयां प्रदान करती है। फागोत्सव के दौरान फाग गाने की अनूठी परम्परा, बालकों के जन्म के अवसर पर हालरिया, विरह गीत, मोरूबाई, दमा-दम मस्त कलन्दर, निम्बुड़ा-निम्बुड़ा, बींटी महारी, सुवटिया, इंजन री सीटी में मारो मन डोले, बन्ना गीत, अम्मादे गाड़ी रो भाड़ो, कोका को बन्नी फुलका पो सहित सैंकडों लोकगीत राजस्थान की समृद्धशाली परम्पराओं का निर्वाह कर रहे हैं।
राजस्थान के मांगणियार वर्ग के कलाकारों ने कई बॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी आवाज़ दी है। आजकल ममे खान, स्वरूप खान, मोती खान जैसे युवा कलाकार अपनी धमक और चमक जमाए हुए हैं तो पद्मश्री उस्ताद अनवर खान, उस्ताद गाज़ी खान, कुटले खान, भूंगर खान जैसिंधर आदी जैसे कलाकार राजस्थान का नाम रौशन कर रहे है

संवाद। मोहम्मद नज़ीर क़ादरी