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रमज़ान अल मुबारक का ग्यारहवां रोज़ा

दुनिया की पहली मुस्लिम की वफ़ात का दिन है

रमजान अल मुबारक के ग्याहवे रोज़े को हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. की बीवी हजरत खदीजा की वफ़ात (निधन ) हुई थी। वो उम्मुल मोमनीन हैं और उन्होंने रसूल अकरम का साथ हर कदम पर दिया था। उनके पास काफी माल-दौलत थी। वो अरब की एक बड़ी व्यवसायी थीं। रसूल अल्लाह स. की हिमायत में मक्का के गरीब खड़े हुए। मालदार तबका रसूल अल्लाह के मिशन का सख्त मुखालिफ था। इन हालात में पैगंबर-ए-अकरम को वफादार साथियों के साथ ही माल व दौलत की भी जरूरत पड़ी। इस वक्त अल्लाह तआला ने अपने नबी स. मदद हजरत खदीजा की दौलत से की। जनाब खदीजा सारे अरब में सबसे ज्यादा दौलतमंद थीं। आपका लकब मलीकतुल अरब था। हजरत खदीजा की दौलत इतनी थी कि उनके कारवान-ए-तिजारत सारे कुरैश के कारवान से भी ज्यादा हुआ करते थे (किताब तबकात-ए-इब्ने साद जिल्द आठ)। कुरआन करीम में एक आयत है। इस आयत की तफसीर में इब्ने अब्बास से रवायत है कि उन्होंने इस आयत के बारे में अल्लाह के रसूल से सवाल किया तो उनका जवाब था- आपके पास दौलत नहीं होने की वजह से कौम आपको गरीब समझती थी। इसलिए अल्लाह ने खदीजा की दौलत आपको अता कर मालदार कर दिया। सिर्फ दौलत ही नहीं हजरत खदीजा हर महाज पर अल्लाह के रसूल के साथ पेश पेश रहीं।
हजरत खदीजा ने पैगंबर-ए-अकरम स. तब साथ दिया जब कोई उनका हामी और पुरसाने हाल नहीं था। खुद रसूल अल्लाह का बयान सही मुस्लिम में इस तरह लिखा गया है- खदीजा ने उस वक्त मुझे कुबूल किया जब सब ने ठुकरा दिया था। खदीजा का उस वक्त मेरी रेसालत पर ईमान था।
कुरआन में सूरह बकरा में है- जो भी अल्लाह को कर्ज-ए-हसना देता है तो अल्लाह उसमें काफी इजाफा कर देता है। साफ है कि अगर अल्लाह खुद को किसी की दौलत का मकरूज कहता है तो यकीनन वो खुलूस और पाक दौलत हजरत खदीजा की है। उम्मुल मोमनीन जनाब खदीजा वो खातून हैं जिन्होंने राह-ए-खुदा में सब कुछ खर्च कर दिया। यहां तक की वक्त आखिर उनके पास कफन तक का इंतजाम नहीं था। यकीनन खुदा का दीन और उसके मानने वाले हजरत खदीजा के कर्जदार हैं।