राजनीति

संघ के सहयोगियों में विपक्ष ढूँढने का खामियाज़ा भुगत रहे हैं मुसलमान- शाहनवाज़ आलम

जिस दिन मुसलमान सपा को छोड़ देंगे भाजपा के बुरे दिन शुरू हो जाएंगे

लखनऊ, । संघ और भाजपा से वैचारिक सहमति रखने वाली पार्टियों को विपक्ष मान कर वोट देने का खामियाज़ा आज मुस्लिम समुदाय भुगत रहा है। सपा, बसपा, आम आदमी पार्टी सभी एक सीमा के बाद मुसलमानों को मझधार में छोड़ कर भाजपा के साथ खड़ी हो जाती हैं।

ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने हर रविवार को फेसबुक लाइव के ज़रिये होने वाले स्पीक अप कार्यक्रम की 43 वीं कड़ी में कही।

दिल्ली के मुस्लिम विरोधी हिंसा का हवाला देते हुए शाहनवाज़ आलम ने कहा कि केजरीवाल को मुसलमानों ने ही वोट दे कर सत्ता दिलाई थी लेकिन न तो वो न उनकी पार्टी का कोई मंत्री जहाँगीरपुरी के मुसलमनों के साथ खड़ा हुआ। 2020 के मुस्लिम विरोधी हिंसा तो ख़ुद केजरीवाल सरकार ने संघ से मिल कर करवाया था। उन्होंने कहा कि दिल्ली के मुसलमानों ने वही गलती की जो उत्तर प्रदेश के मुसलमनों ने 30 साल पहले कांग्रेस से दूरी बना कर की थी। आज उत्तर प्रदेश का मुसलमान सपा और बसपा को वोट देने का ही खामियाज़ा भुगत रहा है। न तो अखिलेश यादव उनके लिए खड़ा हो रहे हैं न मायावती। जबकि इन दोनों पार्टियों को मुसलमानों ने ही वोट और नोट दे कर खड़ा किया था।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि भाजपा की रणनीति रही है कि जहाँ भी उसे कांग्रेस से सीधी चुनौती मिले वहाँ पिछड़ों, दलितों के हिस्सेदारी के नाम पर तो कहीं सस्ते बिजली पानी के नाम पर कोई पार्टी खड़ा करवा दी जाए। मुसलमान ग़ैर सियासी और दूरअंदेश न होने के कारण इसमें आसानी से फंस जाते हैं और कांग्रेस से दूरी बना कर उसे कमज़ोर कर देते हैं। दिल्ली के मुसलमानों को सोचना चाहिए कि जो मध्यवर्ग विधान सभा चुनावों में आप को वोट करता है वही लोकसभा चुनाव में भाजपा को क्यों वोट करता है। उसी तरह उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को भी सोचना चाहिए कि अखिलेश यादव के सजातीय लोग विधान सभा चुनाव में तो कहीं-कहीं सपा को वोट कर भी देते हैं लेकिन 2014 और 2019 के लोक सभा चुनाव में वो भाजपा को क्यों वोट देते हैं। शाहनवाज़ आलम ने कहा कि आज भाजपा के ताक़तवर होने की एक मात्र वजह मुसलमानों का कांग्रेस से दूर हो जाना है। जिस दिन उत्तर प्रदेश में मुसलमान सपा को छोड़ दे उसी दिन से भाजपा के बुरे दिन शुरू हो जाएंगे।

संवाद। अज़हर उमरी