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श्रीनगर में प्रदर्शन कर रहे हिन्दुओ को मीडिया से शिकायत

श्रीनगर में प्रदर्शन कर रहे हिंदुओं का कहना है कि मीडिया इस मामले को मुखरता से नहीं उठा रही है, सरकार से सवाल नहीं पूछ रही है, सरकार की नाकामी पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगा रही है।

दरअसल मीडिया, कश्मीर में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार को सीधे तौर पर हिंदू-मुस्लिम करार देती है जबकि वास्तविकता में ये लड़ाई पाक समर्थित मुसलमानों की निर्दोष हिन्दुओ से है। वे कश्मीर को भारत से आजाद कराकर स्वतन्त्र होना चाहते है ताकि उसे आसानी से पाकिस्तान में मिलाया जा सके। पीओके उनके कब्जे में पहले से ही है।

चूंकि भेड़ों की भीड़ में भेड़ बनकर घुसते हुए अपने मनसूबों को अंजाम देना सरल और अपेक्षाकृतअधिक सुरक्षित होता है, इस कारण प्रायः वे वहां के आम मुसलमानों को परेशान नही करते हैं, परिणामतः देशी मीडिया को यहां हिन्दू मुसलमान करने का सुअवसर मिल जाता है।

इतिहास साक्षी है धर्म के नाम पर, वेशभूषा के नाम पर, खानपान के नाम पर, रंग के नाम पर, जात पात के नाम पर कौमी लोगो द्वारा कौम के आदमी को मिलाकर अपने मंसूबे अंजाम देना सरल होता है, इस कारण इनके द्वारा आरोप लगाया जाता रहा है कि प्रायः लोग इन्हें संदेह की दृष्टि से देखते हैं। वास्तविकता में ये स्वतः भी नहीं जान पाते कि इनके बीच का कौन सा व्यक्ति राष्ट्रवादी है और कौन सा राष्ट्रद्रोही लेकिन परिस्थितियों का शिकार होना स्वाभाविक ही है।

यह कभी चिन्हित ही नहीं हो सकता है कि इस भीड़ में कौन भारतीय मुसलमान है, और कौन पाक समर्थित मुसलमान है, कौन नमक हलाल है और और कौन नमक हराम या गद्दार। इसे जांचने परखने का ना तो कोई मानक होता है, ना कोई पैमाना होता है, ना इसकी कोई परिभाषा होती है, ना इसकी कोई पहचान होती है और ना कोई सूक्ति।

इसलिए भारत जैसे सेकुलर राज्य के लिए वर्गभेद और साम्प्रदायिकता आज एक लाइलाज बीमारी बन चुकी है जिसे राजनैतिक पोषण भी प्राप्त होता रहा है। इस समस्या का उपचार अत्यंत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए, तभी इससे निजात मिल सकती है अन्यथा यह बीमारी भारत को उसी तरह खोखला कर सकती है जैसे एक दीमक लकड़ी को अंदर ही अंदर खा जाता है।

देश मे पहली बार 1857 के बाद पनपी यह बीमारी आज अपना विकराल रूप धारण कर चुकी है। पाकिस्तान के सारे आतंकी ठिकाने और बेस कैंप तो पीओके में ही है, ये आतंकी पीओके के रास्ते ही भारत में प्रवेश करते हैं।

तालिबानियों को ट्रेनिंग यहीं दी गयी थी, 90 के दशक के आतंकियों को ट्रेनिंग भी यहीं दी गयी थी। पीओके का इस्तेमाल केवल भारत के खिलाफ किया जाता है, इसके लिए यह पाकिस्तान का रिजर्व क्षेत्र है। आर्थिक गलियारे ने इस क्षेत्र को चीन के लिए भी सोने पर सुहागा बना दिया है।

पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया था। इन सबके बीच कश्मीर से पंडित रातों रात अपना सबकुछ छोड़ने के मजबूर हो गए थे। डोडा नरसंहार अगस्त 14, 1993 को हुआ जिसमें बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।

कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था, जिसने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। उसने नारा दिया था हम सब एक, तुम भागो या मरो। इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने घाटी छोड़ दी। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए।