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कैसे बनी आधी आबादी के लिए मिसाल एएनएम सीमा जानने के लिए क्लिक करें

  • घूंघट ओढ़कर किया आशा से लेकर एएनएम तक का सफर तय
  • लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं अपनाने के लिए किया प्रेरित

मथुरा। (डीवीएनए)एएनएम सीमा देवी ने तमाम समाजिक बेड़ियों को तोड़ते हुए स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में मिसाल कायम की है ।कभी बतौर आशा कार्यकर्ता स्वास्थ्य क्षेत्र में कदम रखने वाली सीमा ने जीवन में कई प्रकार की पाबंदियों का सामना करते हुए एएनएम तक का सफर तय करके अपनी अलग पहचान बनाई है।

जनपद के कोल्हार उप केंद्र में तैनात एएनएम सीमा देवी ने बताया कि वर्ष 2007 में जनपद के नावली गांव में बतौर आशा के रूप में काम कर रही हूं। शुरू में लोग ताना भी मारते थे। इसके बावजूद मैं अपने लक्ष्य से डिगी नहीं और लगातार महिलाओं और लोगों के स्वास्थ्य के लिए काम करती रही। गांव की बहू होने के नाते मैंने सदा मर्यादाओं का पालन किया। सुबह से ही मैं घूंघट ओढ़कर घर से बाहर निकल जाती थी। कई बार तो सर्वेक्षण के दौरान लोग अपना गेट बंद करके कहते थे, तुम हमारी बहु को भी बिगाड़ दोगी।

सीमा ने बताया कि वे बचपन से ही पढ़-लिखकर समाज सेवा करना चाहती थीं, लेकिन बड़ा परिवार होने और विपरीत परिस्थितियों के कारण आठवीं तक पढ़ाई कर सकीं। इसके बाद उनकी शादी कर दी गई। विवाह के बाद भी चुनौतियां कम नहीं हुईं और ससुराल में भी बड़े परिवार की जिम्मेदारी थी। एक वक्त ऐसा आया जब आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, उसी दौरान पल्स पोलियो की टीम घर बच्चों को पोलियो खुराक पिलाने आई तो मैंने उनसे आशा पद पर कार्य करने के लिए जानकारी प्राप्त की और फार्म भर दिया।

सीमा ने बताया कि नौकरी करने के बारे में जब परिवार के सदस्यों को बताया तो परिवार के सदस्यों ने कहा कि घर से बाहर निकलोगी तो परिवार की बदनामी होगी। लेकिन पति ने मेरी बात समझी और नौकरी करने में मेरा साथ दिया। सीमा बताते हैं कि जब उन्होंने काम करना शुरु किया तो गांव में चिकित्सा सुविधाओं के बारे में लोग कम जागरुक थे। उस वक्त लोग टीके लगवाने, परिवार नियोजन के साधन अपनाने और संस्थागत प्रसव कराने से मना करते थे। लेकिन धीरे-धीरे मैंने विभाग द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में बताया और समझाया तो लोगों ने इन सेवाओं को लेना शुरु कर दिया। सीमा ने बताया कि 2007 से 2014 तक घूंघट में रह कर ही काम किया।

बचाई जच्चा-बच्चा की जान
सीमा ने बताया कि नौकरी के शुरुआती दिनों में एक बार गांव से पड़ोस की अंगूरी माताजी मेरे पास आईं और बोलीं- चलो हमारी बहू की बहुत तबीयत खराब है उसे अस्पताल ले चलो। मैं तुरंत उनकी बहूं को गंभीर हालत में अस्पताल ले गई और उन्हें भर्ती करवाया। गर्भावस्था में लापरवाही के कारण बहू में हीमोग्लोबिन सात था, जोकि काफी कम है। ऐसे में डॉक्टर ने उनकी जान बचा ली। लेकिन बच्चे की हालत नाजुक थी, वहां से सीमा बच्चे को मुंह से सांस देती हुई जिला अस्पताल ले गईं और वहां पर बच्चे की भी जान बच गई। तब जाकर गांव में मेरे और स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति जागरुक हुए।

सीमा बताती हैं कि जब उन्होंने 2014 में जब उन्होंने आशा की नौकरी छोड़ी तो गांव की स्थिति ये थी कि गांव में 95 प्रतिशत संस्थागत प्रसव होने लगे थे, 90 प्रतिशत नियमित टीकाकरण, प्रतिवर्ष 70 नसबंदी होने लगी थीं। इसके लिए उन्हें कई बार आशा सम्मेलन में पुरुस्कार भी मिला। अच्छा कार्य करने पर उन्हें आशा संगिनी बना दिया गया। इसके बाद उन्हें डॉ. सीमा अग्रवाल ने एएनएम की पढ़ाई करने की सलाह दी। फिर उन्होंने एएनएम की पढ़ाई की। अब वे विभाग में एएनएम के रूप में कार्य कर रही हैं। सीमा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और उनके साथ के कर्मचारियों ने उनकी मानसिक और आर्थिक तौर पर खूब मदद की, जिसके कारण वे यहां तक पहुंच पाई हैं।


डॉ. संगीता अग्रवाल ने बताया कि सीमा की कड़ी मेहनत और लगन को देखते हुए हमने उन्हें एएनएम की पढ़ाई करने की सलाह दीं। इसे सीमा ने बखूबी करके दिखाया और अब वे विभाग की एक जिम्मेदार कार्यकर्ता हैं जो स्वास्थ्य सेवाओं को जन-जन तक पहुंचा रही हैं। सीमा ने बताया कि 2018 में वे एएनएम बनीं। उन्होंने 16 सितंबर 2018 से 26 मार्च 2019 64 संस्थागत प्रसव कराएं। एक अप्रैल 2019 से 26 मार्च 2020 तक 204 संस्थागत प्रसव कराए। एक अप्रैल 2020 से 21 मार्च 2021 तक 328 संस्थागत प्रसव कराए। एक अप्रैल 2021 से 27 मार्च 2022 तक 311 संस्थागत प्रसव हैं। इसके साथ ही उन्होंने नियमित टीकाकरण के साथ ही कोविड टीकाकरण भी किया।

संवाद:- दानिश उमरी