अन्य

आपात्काल आज़ादी की दूसरी लड़ाई के 47 साल ( 26 जून 1975 लागू तथा 21 मार्च 1977 समापन )

कासगंज -1971-72 लोकसभा के आम चुनाव में श्रीमती इन्दिरा गॉधी ने राय बरेली से अपना चुनाव नामांकन-पत्र दाखिल किया उनसे दो-दो हाथ करने हेतु लोकबन्धु श्री राजनारायण जी भी चुनाव समर में कूद पड़े। पूरा सरकारी तंत्र श्रीमती इन्दिरा गाँधी को दोबारा प्रधानमंत्री बनबाने के उद्देश्य से कटिबद्ध हो गया । जनता का रूझान कुछ और ही कह रहा था। श्री राजनारायण जी चुनाव जीत ही चुके थे कि सत्ता तन्त्रों ने येन-केन-प्रकारेण श्रीमती इन्दिरा गाँधी को विजयी घोषित कर दिया। लोक बन्धु राज नारायण जी इस धांधली से गुस्सा हो गये और इंसाफ के मंदिर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण में चले गये। दोनों और से काले कोटों की लड़ाई थी, केवल इस बात के लिये कि उक्त चुनाव में कितना काला धन लगा है और कितने कानूनों का मुँह काला हुआ है। आखिर कार 12 जून 1975 को उच्च न्यायालय इलाहाबाद के माननीय न्यायधीश श्री जग मोहन लाल सिन्हा ने अपने ऐतिहासिक फैसले में श्रीमति इन्दिरा गाँधी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया तथा इन्दिरा गाँधी को 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने के लिये अयोग करार दिया। भारत के लोक तात्रिक इतिहास की यह अभूतपूर्व घटना थी। बस यही निर्णय भारत के स्वर्णिम इतिहास में एक काला प्रष्ठ जोड़ गया और जुल्म, दमन, तानाशाही का दौर शुरू हो गया। और जन तंत्र के ताबूत में कील ठोक दी गयी। 24 जून 1975 को प्रसिद्ध सैनानी एवं लोकतंत्र के प्रेरणा श्रोत
लोकनायक श्री जय प्रकाश नारायण जी ने दिल्ली में विशाल रेली कर प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गाँधी से स्तीफे की माँग की और जनता से आव्हान किया कि उठो और अपनी सत्ता खुद सभालो । “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” के गगन वेदी नारों से गूँज उठी और अंधी राज सत्ता का दिल दहल उठा लोकतंत्र में जनता नहीं आयेगी तो फिर कौन आयेगा? लोक नायक जय प्रकाश नारायण जी द्वारा आम जनता का आव्हान करना श्रीमती इन्दिरा गाँधी को अखर गया। इतिहास में सभी तानाशाहों को पीछे धकेलते हुये 25-26 जून 1975 की मध्य रात्रि में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद खाँ के बिना उनकी इच्छा के जबरन हस्ताक्षर कराकर सम्पूर्ण भारत में आपातकाल लागू कर दिया। लोक नायक जय प्रकाश नारायण जी को रात में ही गिरफ्तार करके अज्ञात स्थान ले जाया गया। जन तंत्र में जन्ता की बात करने वालों की गिरफ्तारियाँ होने लगी। कोई भी हो प्रसिद्ध गाँधी वादी विचारक श्री भीमसेन सच्चर हो, समाजवादी श्री मधु निमय, श्री जॉर्ज फरनाणडीज, श्री मुलायम सिंह यादव, किसानों के मसीहा चौ० चरण सिंह, लोक बन्धु श्री राज नारायण, श्री अटल विहारी वाजपेयी लाखों जन प्रतिनिधियों को रात ही रात में जेलों में ठूस दिया गया।
प्रान्तानुसार- गिरफ्तारियों की संख्या- पंजाब – 7000, उ०प्र०- 18000, | विहार – 15000, केरल | गुजरात 10000 8000, कर्नाटक-17000, महाराष्ट्र-65000,
हमारे देश में उस समय न तो कही बाढ़ आयी थी और न ही भूकम्भ, और न ही ग्रह युद्ध, न ही अपना देश आर्थिक रूप से दिवालिया घोषित किया गया था। जो कि एक विगड़ेल तानाशाह जो प्रधानमंत्री थी। उनके हाथ से सत्ता खिसक रही थी। उन्होने सत्ता पर बने रहने के लिये आपातकाल की घोषणा कर दी थी जिससे पूरा भारत वर्ष जेल खाना बना दिया गया था। जेलो में जगह नहीं थी वर्षात का मौसम था फिर भी सरकारी डाक बंगलों
को ही जेल खाने में तब्दील कर दिया गया था। लोकतंत्र की पूरी तरह हत्या कर पूरे देश में पुलिस राज व तानाशाही का नंगा नाच हो रहा था। 07 / जुलाई 1975 को मुझे ” पंक्तियों के लेखक को सहावर थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर एटा जिला जेल में भेज दिया आरोप था कि मैं एक भीड़ को अपने सम्बोधन में कह रहा था कि वेलगाम तानाशाह प्रधानमंत्री का तखता पलट दो और लोकतंत्र बचा लो 30/05/1976 को एटा की अदालत में मुझे छः माह के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। इन आपातकाल राज नैतिक बंदियों के महा संग्राम से देश में लोकतंत्र की बहाली हुयी तथा भारत वर्ष की राजनीति को कांग्रेस मुक्त करने में इन सेनानियों “आपतकाल वंदी राजनेताओं का ” बहुत बड़ा योगदान रहा है। आखिर थक हार कर इन्दिरा कांग्रेस सरकार ने 18 जनवरी 1977 को आम चुनावों की घोषणा कर दी 16 मार्च को मतदान हुआ 20 मार्च को परिणाम आये कांग्रेस बुरी तरह हारी जनता पार्टी जीत गयी 19 मार्च 1977 को प्रधानमंत्री पद से स्तीफा देने से पहले श्रीमति इन्दिरा गाँधी ने आपातकाल हटाने की घोषणा कर दी थी।
लखनऊ के विधायक रविदास महरोत्रा के अनुरोध पर 26 जून 2006 में रविन्द्रालय सभागार चार बाग लखनऊ में 29 वर्षों के बाद उ०प्र० के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मुलायम सिंह यादव ने ऐसा कदम उठाने का साहस किया कि बिना किसी पार्टी भेदभाव के सभी राजनैतिक दलों के आपातकाल वंदियों को लोकतंत्र सैनानी सम्मान देकर प्रतीक स्वरूप 500 रू० प्रतिमाह भत्ता ( मानदेय ) उ०प्र० परिवहन निगम की सारी बसों में एक सहवर्ती के साथ निशुल्क यात्रा प्रदेश के राष्ट्रीय अस्पतालों में स्वास्थ्य लाभ, तथा उनका अन्तिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ एवं उनके स्वर्गवास के बाद उनके पति अथवा पत्नी को उपरोक्त यथावत मिलेगा।
सन् 2007 में सुश्री मायावती ने यह सब सुविधांयें बन्द कर दी जबकि इसी लोकतंत्र की वहाली के कारण ही एक दलित की बेटी मुख्यमंत्री बनी थी सन् 2012 में पुनः समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह के पुत्र श्री अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद वैधानिक तौर पर रू० 15000 मानदेय तथा अन्य सुविधायें लोकतंत्र सैनानी सम्मान विधेयक, 2016 अधिनियम बन गया।
आज केन्द्रीय सत्ता के जन प्रतिनिधियों को स्वतंत्रता इतिहास की अनुभूति तथा ज्ञान है, न हीं नैतिकता । ये नेता यह नहीं जानते कि उन राज नैतिक योद्धाओं तथा क्रांतिकारियों से कैसे व्यवहार करना चाहिये जो कि राष्ट्र के प्रकाश-स्तम्भ होते हैं। आपातकालीन राजनैतिक लोकतंत्र सैनानी जो कि केवल 10 प्रतिशत ही जीवित बचे है यह रणवॉकरे बूढ़े शेर देश का अभिमान है। जो कि वे मुरव्वत भ्रष्टतम्भ सरकारों का भांडा फोड़ना खूब जानते हैं। आइये हम लोकतंत्र का सम्मान करें अभिमान करें, हम हैं तो राष्ट्र है, राष्ट्र है तो हम हैं। लोकतंत्र भारत की आत्मा है लोकतंत्र सैनानी इसके प्राण है। लोकतंत्र सैनानियों का सम्मान समय की आवश्यकता है। इनको सम्मानित करके स्वयं लोकतंत्र ही सम्मानित होगा। केन्द्रीय सरकार द्वारा लोकतंत्र सैनानियों को सम्मानित करने से देश में लोकतंत्र की जड़ें और अधिक मजबूत होगी और कभी कोई कूर जालिम शासक देश में लोकतंत्र को समाप्त कर तानाशाही या राजतंत्र लाने का सपना नहीं देख पायेगा। सैनानियों का सम्मान जो “केन्द्र का कर्तव्य है” जिससे आने वाली पीढ़ियों संघर्ष के लिये उत्प्रेरित होंगी।

लेखक।डा० इस्लाम अहमद फारूकी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लोकतंत्र सैनानी कल्याण परिषद
निवास मोहल्ला काजी सहावर जनपद कासगंज