मुसलमान समझ लें कि जातिवादी पार्टियां भाजपा से नहीं लड़ सकतीं
सिर्फ़ कांग्रेस ही लड़ सकती है भाजपा से
लखनऊ। सपा गठबंधन निजी स्वार्थ पर टिका था। उसका भाजपा से कोई वैचारिक मतभेद नहीं था। वहाँ सब झगड़ा सत्ता में शामिल होने का था। मुसलमानों को सपा की विचारहीन राजनीति को नकारना होगा तभी धर्मनिरपेक्षता और उनका वजूद बचेगा। ये बातें अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने स्पीक अप कार्यक्रम की 55 वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुसलमानों को जातिवादी राजनीति की सीमाओं को समझना चाहिए। ओम प्रकाश राजभर ने राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा की प्रत्याशी को यह कह कर वोट दिया कि वो आदिवासी समाज से आती हैं। यानी उन्हें संघ और भाजपा की विचारधारा से आने वालों से दिक्कत नहीं है। जाति की राजनीति करने वालों को सिर्फ़ जाति दिखती है। उस प्रत्याशी का सेकुलरिज्म और संविधान के मूल्यों के प्रति क्या विचार है ये मायने नहीं रखता। इसीतरह 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा के जातिगत वोटरों ने मोदी को ओबीसी तबके का बता कर वोट दिया था। यानी उन्हें मोदी के सांप्रदायिक और संविधान विरोधी विचारधारा से कोई दिक्कत नहीं है। उन्हें सिर्फ़ अपनी जाति या वर्ग का नेता पसंद है चाहे वो मुसलमानों का हत्यारा ही क्यों न हो। ऐसे में मुसलमानों को समझना होगा कि जाति की राजनीति करने वाले भाजपा की सांप्रदायिक राजनीति को चुनौती नहीं दे सकते।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुसलमानों को इस तथ्य को भी समझना चाहिए कि जिसतरह 20 प्रतिशत मुसलमान भाजपा को हराने के लिए न चाहते हुए भी किसी को वोट दे सकते हैं वैसे ही 35 से 40 प्रतिशत सवर्ण, अतिपिछड़े और दलित सपा के जातिगत आतंक वाले शासन को रोकने के लिए न चाहते हुए भी सांप्रदायिक और महंगाई वाली पार्टी को वोट दे देते हैं। इसलिए अगर भाजपा को हराना है तो सबसे पहले मुसलमानों को कांग्रेस में आना होगा उसके बाद भाजपा विरोधी बाकी जातियाँ भी आ जायेंगी।
संवाद। अज़हर उमरी