ये विवाद बहुत पुराना है। शायद संविधान निर्माताओं ने उस वक्त शायद यह कल्पना ही नहीं की होगी कि कोई महिला भी कभी इस पद पर आसीन होगी।प्रतिभा पाटिल जब पहली महिला राष्ट्रपति बनी तब भी इसी तरह की बातें आई थीं पर यदि उस समय ऐसा हंगामा हुआ होता तो इस पद के लिए कोई नया शब्द गढ़ लिया गया होता। आज जब सदन के एक सदस्य अधीर रंजन चौधरी जो कि कांग्रेस के नेता हैं ने राष्ट्रपति कहने के बाद जिस तरह ज़ोर देकर राष्ट्रपत्नि कहा। उन्हें पत्रकार ने टोका भी किंतु चूंकि वे बंगाल से हैं उन्होंने राष्ट्रपति शब्द को स्त्रीलिंग में कन्वर्ट किया जो एकदम सही था किन्तु ग़लत नज़रिए वाली भाजपा ने खासतौर से स्मृति ईरानी को यह अपशब्द लगा। वे सीधे लगभग चीखने वाली स्तिथि में आ गई और सारा दोष सोनिया गांधी पर मढ़ा दीं और उनसे माफ़ी मांगने की दरकार करने लगीं। सदन पति-पत्नी जैसे विवाद में निरस्त हो गया।
सवाल इस बात का है स्मृति जी कि जब राष्ट्रपति शब्द उल्लेखित होता है तो आपने या भारत की किसी स्त्री ने यह विरोध क्यों नहीं जताया। क्या राष्ट्रपति देश की सम्पूर्ण महिलाओं का पति है? जब उसमें कोई दोष नज़र नहीं आया तो मुर्मु जी को राष्ट्रपत्नि कहने में इतना वितंडावाद क्यों जबकि अधीर रंजन जी जिस बंगाल से आते हैं वहां विपरीत तरीके से लिंग को सम्बोधित किया जाता है, मसलन ममता कहां गया था। खोखा कहां गए थी। इसी तरह चाय पानी खाबेन बोला जाता है।भाषा की जिस दक्षता का परिचय अधीर रंजन चौधरी ने दिया वो कहीं से भी ग़लत नहीं है।
जबकि कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने अशोभनीय टिप्पणी के बाद कहा कि मेरी जुबान फिसल गई थी. इस मामले को भाजपा बेवजह तूल दे रही है और जबरन विवाद खड़ा किया जा रहा है. बीजेपी मसाला ढूंढ रही है क्योंकि उनके पास कोई मुद्दा नहीं है। मैंने कल ही मीडिया कर्मियों से कहा था कि मैंने गलती से यह शब्द कह दिया था. अधीर रंजन चौधरी के बयान को लेकर बीजेपी की ओर से सोनिया गांधी से भी जवाब मांगा जा रहा था, कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा है कि अधीर रंजन चौधरी ने अपने बयान के लिए माफी मांग ली है। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने अधीर रंजन चौधरी के बयान पर कहा कि उन्होंने व्याकरण की गलती की है, इरादतान नहीं कहा. अगर उनकी भाषा में कोई गलती हो तो इतने बड़े स्तर पर हंगामा करना गलत है। अभी तक राष्ट्रपति शब्द पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान रूप से इस्तेमाल होता आया है।
आपको शायद यह जानकारी होना चाहिए कि भारतीय सेना और पुलिस में उच्चाधिकारी पद पर आसीन महिला को ‘सर’ कहकर मान देते हैं। उन्होंने कभी भी इस पर विरोध नहीं जताया कि उन्हें ‘मेडम’
कहा जाए। अब चूंकि महिलाओं का हर क्षेत्र में दख़ल बढ़ा है इसलिए यह ज़रुरी होता जा रहा है कि नये शब्द हिंदी में आएं। सर और प्रेसीडेंट दोनों अंग्रेजों की देन है। सर का हिंदी तर्जुमा तो महोदय और मेडम का महोदया तो ठीक है किन्तु प्रेसीडेंट का गलत अनुवाद हुआ है। राष्ट्रपति इसलिए वह राष्ट्रपत्नि हुआ। इस गलती को सुधारा जाना जरुरी है।
कुल मिलाकर, वस्तुत: राष्ट्रपति शब्द ही ग़लत है। इस पर बहस मुबाहिसा होना चाहिए।विद्वतजन इस पद के लिए किसी उम्दा गरिमामय शब्द का निर्माण कर संसद को भेजें। इसे संविधान संशोधन कर बदलवाएं। वरना इस तरह देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद की गरिमा यूं ही खंडित होती रहेगी। आज़ादी के अमृत काल में इस शब्द से मुक्ति हो जाए तो इस सरकार का नाम संवेधानिक इतिहास में दर्ज हो जायेगा।