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शुक्रिया कांग्रेस सदर
श्रीमती सोनिया गांधी जी !

कांग्रेस फिर एक और परीक्षा में पास होकर, अपना ही पुराना कीर्तिमान क़ायम रखा। आज 28 जुलाई 2022 को संसद के ग़लिआरे में जो कुछ भी घटा है, वह अपने आपमें एक वाक़या दर्ज होगा, क़ि किस तरह सत्ता में बैठे लोग भी, कई बार इस कदर बेबस, असहाय और अपराध बोध से ग्रसित हो जाते हैं क़ि हिंसक सोच की हद तक उनकी बौखलाहट चली जाती है। और वे अपने को क़ाबू में नही रख पाते।

आइए इस घटना को देखें – वाक़या इतना भर हुआ है क़ि सदन में कांग्रेस नेता अधीर रंजन मुखर्जी ने नव निर्वाचित महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति की जगह राष्ट्रपत्नी बोल गये। गो कि जब किसी ने उनको यह याद दिलाया तो उन्होंने अपनी गलती स्वीकारी और राष्ट्रपति से माफ़ी मागने की पेशकश की। अधीर रंजन ने यह भी कहा की वे बंगाली हैं इसलिए उनकी हिंदी में कई बार गलत हो ज़ाया करती है।

यह सवाल संसद में गया तो अधीर रंजन जी ने स्पीकर को चिट्ठी लिखकर अपनी इस बात के लिए सदन में माफ़ी मागने के लिए समय माँगा, अधीर रंजन का कहना है – स्पीकर ने उन्हें बारह बजे का समय दे भी दिया, लेकिन किसी वजह से स्पीकर साहब बारह बजे खुद न आ कर अपनी जगह सांसद रमा जी को नामित कर दिया, सदन चलाने के लिए। “आधी गड़बड़ी“ यहाँ से शुरू हुई। अधीर रंजन अपनी बात रखें, उसके पहले ही कैबिनेट मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी बोलने के लिए खड़ी हो गयी। उस उत्तेजित मन और तीखी भाषा में वे बोलीं वह सदन की कार्यवाही में है और अब तो पब्लिक डोमेन में भी आ गया है। जब स्मृति ईरानी बोल रही थीं, उस समय सदन में कांग्रेस नेता श्रीमती सोनिया गांधी मौजूद थी, श्रीमती स्मृति ईरानी जी मुतवातिर सोनिया गांधी को टार्गेट कर रहीं थी और उन्हें माफ़ी माँगने की बात कह रही थी। सदन बाधित हुआ और एक घंटे के लिए सदन की कार्यवाही रोक दी गयी। सदन कक्ष से बाहर निकलते समय श्रीमती सोनिया गांधी पहले निकल चुकी थी, अचानक उन्होंने देखा सांसद रमा जी, जो उस समय स्पीकर सीट पर थी, को देखा और वे दो तीन कदम पीछे आ गयी और रमा जी से कहा की अधीर रंजन ने माफ़ी माँग लिया है। अभी यह बात पूरी भी नही हुई थी कि इस बीच स्मृति ईरानी जी, कई अन्य भाजपा सांसदों के साथ आयी और सोनिया जी से उलझ गयी। सोनिया जी ने कहा- “हमसे बात मत करो ।” यह बात अंग्रेज़ी में कही गयी , इसलिए भी यह बात ज़्यादा वज़नी लगने लगी ।

संसद की कार्यवाही रुकी हुयी है लेकिन परिंदे चहक रहे हैं। संसद अचंभित है – संसद की पंचाइत में ही “फ्रिज“ हो ज़ाया करती थी, स्पीकर के एक ऐलान से – हाउस एडजर्न और गलीयारे में पहुँचते ही पक्ष प्रतिपक्ष गलबहियाँ डाले, केंद्रीय कक्ष की तरफ़ बढ़ जाते थे, मतभेद वही सदन की मेज़ पर छूट ज़ाया करता रहा है। इस बार ऐसा क्या हो गया ? स्मृति ईरानी के मन का मर्म, विमर्श का विषय बन गया।

स्मृति ईरानी जितनी कटु होती जायेगी, उनकी उलझन उतनी ही बढ़ती जायगी, यह सोचना है स्मृति ईरानी के शुभेक्षुओं का। रायबरेली और अमेठी ने आज की इस घटना पर बहुत तीखी प्रतिक्रिया दी है। गाँवों तक में यह चर्चा चली गयी है क़ि- “इंदिरा गांधी की बहू के साथ“ अब “ज़्यादती” हो रही है।

उत्तर प्रदेश का गाँव भारत के अन्य गाँवों की तरह ही संवेदनशील है, वह खुद पर सारी आफ़त विपत झेल लेता है लेकिन “घर के बहू-बेटी“ पर थोड़ा सा भी अत्याचार हो, वह उसे बर्दाश्त नही करता, कुछ कर पाए या न करपाए, “बददुआ“ तो देता ही है। इस बददुआ की तासीर कबीर बता गये हैं- “मरी खाल की साँस से सार भस्म होय जाय।” गाँव अब क़िस्से में चला गया है- “75 साल की बेवा, एक बेटा और एक बेटी को पालने- पोसने में अक्खा ज़िंदगी लगा दी। सास को गोली मारी गई, कितनी उम्र रही होगी राहुल की, जब इंदिरा गांधी को गोली मारी गयी ? राजीव गांधी को बम से उड़ाया गया। सोनिया गांधी अपना दर्द अपने में समेटे बैठी रह गयी। कब तक चलेगा ?

देर है, अंधेर नही है !
“अमेठी-रायबरेली का मर्म दहक़ रहा है।“

प्रतिक्रिया होती है, सुनाई पड़े या न सुनाई पड़े। जन मन की ताक़त बिलक्षण होती है। हुकूमत बे खबर है इस फ़लसफ़े से। लेकिन इतिहास बाख़बर है- लोकतंत्र को अधिनायकवादी ताक़तों के पास पराजित करने का दीर्घकालीन माद्दा नही होता। जीतता लोक तंत्र ही है।

मुसाफ़िरखाना के चौराहे पर खड़े हनुमंत सिंह से मोहब्बत अली और बलदेव एक ही सवाल पूछ रहे हैं- का फलाने ! कांग्रेस एत्ती कमजोर होय गयी बा का ?

यह छोटा सवाल नही है। 77 में जब श्रीमती इंदिरा गांधी को गिरफ़्तार कर हरियाणा ले ज़ाया जा रहा था, सामने रेलवे का फाटक था, ट्रेन आने वाली थी, फाटक बंद था। इंदिरा गांधी वहीं पुलिया पर बैठ गयी। आने जाने वालों की भीड़ लग गयी- भीड़ ने यही सवाल पूछा था- कांग्रेस इतनी कमजोर तो ना है चौधरी !

जनता अपने सवालों का जवाब खुद देती है।