देश में धार्मिक विभाजन की गहराती लकीर के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल का कहना है कि धार्मिक वैमनस्यता का मुकाबला करने के लिए धर्मगुरुओं को मिलकर काम करना होगा। पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में ऑल इंडिया सूफी सज्जादानशीन काउंसिल के एक कार्यक्रम में विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु एक मंच पर एकत्रित हुए। इस मौके पर संस्था के संस्थापक हजरत सैय्यद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा कि सर तन से जुदा स्लोगन इस्लाम विरोधी है। यह तालिबानी सोच है, इसका मुकाबला करने के लिए बंद कमरों की जगह खुले में आकर लड़ाई की जरूरत है। इस सम्मेलन में धार्मिक नेताओं ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) जैसे संगठनों और ऐसे अन्य मोर्चों पर प्रतिबंध लगाने का एक प्रस्ताव पारित किया जो राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लिप्त रहे हैं।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि किसी के द्वारा चर्चा या बहस के दौरान किसी भी देवी, देवता या पैगंबर को निशाना बनाने की निंदा की जानी चाहिए और इससे कानून के अनुसार निपटा जाना चाहिए। प्रस्ताव में कही गई ये बातें संविधान सम्मत है और देश में सांप्रदायिक सद्भाव का माहौल बनाए रखने के लिए जरूरी भी हैं। लेकिन सवाल यही है कि इस प्रस्ताव की बातें अमल में लाने के लिए जो इच्छाशक्ति चाहिए, क्या उसका परिचय आज दिया जा रहा है। इस सम्मेलन में एनएसए अजित डोभाल ने कहा कि कुछ लोग धर्म और विचारधारा के नाम पर वैमनस्यता पैदा करते हैं जो पूरे देश को प्रभावित करता है और इसका मुकाबला करने के लिए धर्मगुरुओं को मिलकर काम करना होगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के तौर पर श्री डोभाल के पास आम लोगों से कहीं अधिक जानकारी होगी कि देश का माहौल किस नीयत से और किन साजिशों के तहत खराब किया जा रहा है। टीवी चैनल हों या सोशल मीडिया, संचार के तमाम आघुनिक साधनों का इस्तेमाल फर्जी खबरें फैलाने और सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाने के लिए धड़ल्ले से किया जा रहा है। टीवी चैनल जिस अंदाज में, भड़काऊ शीर्षकों के साथ प्रायोजित बहसें कराते हैं, उससे जनता के बीच सही संदेश नहीं पहुंच रहा है। इस बात पर कुछ महीने पहले सरकार की ओर से भी चिंता व्यक्त करते हुए नसीहत दी गई थी। लेकिन उसका कोई खास असर नहीं दिख रहा। एक या दूसरे बहाने से दो धर्मों के बीच अदावत दिखाने की कोशिशें जारी हैं, जिसका असर शांतिप्रिय समाज पर गलत पड़ रहा है।
इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का यह कहना तो ठीक है कि धार्मिक वैमनस्यता से पूरा देश प्रभावित होता है। लेकिन इसका मुकाबला केवल धर्मगुरु नहीं कर सकते। श्री डोभाल चाहें तो देश की आंतरिक सुरक्षा और माहौल को सुधार करने के लिए कुछ सुझाव जनता के बीच भी रख सकते हैं ताकि कोई भी धर्म के नाम पर उसे गुमराह न करे, उसे हिंसा के लिए न उकसाए। वे अलग- अलग नागरिक संगठनों से इस बारे में विमर्श कर सकते हैं कि सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने की दिशा में उनका योगदान किस तरह मिल सकता है।
अजीत डोभाल इसके साथ-साथ टीवी चैनलों के मालिकों और संपादकों से भी इस बारे में चर्चा कर सकते हैं कि उनके मंच से जो कार्यक्रम प्रसारित हों, उनकी विषय वस्तु और प्रस्तुति ऐसी हो, जिससे माहौल संभले, बिगड़ी चीजें दुरुस्त हो सकें, न कि और खराब हों। जब राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे पद पर आसीन व्यक्ति ऐसी चर्चा की पहल करेगा, तो उसके नतीजे बेहतर ही आएंगे। अन्यथा किसी एक मंच पर कही गई ऐसी नसीहत भरी बात खबरों का हिस्सा बन कर कुछ समय बाद भुला दी जाएगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के सुझावों के बाद रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन की ओर से भी सांप्रदायिक सद्भाव और उदार लोकतंत्र को लेकर कुछ महत्वपूर्ण बातें एक अन्य कार्यक्रम में कही गईं। ‘अखिल भारतीय प्रोफेशल कांग्रेस’ के पांचवें सम्मेलन में रघुराम राजन ने कहा कि अल्पसंख्यकों को ‘दोयम दर्ज के नागरिक’ में तब्दील करने का कोई भी प्रयास देश को विभाजित करेगा। आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा, ‘हमारा भविष्य हमारे उदार लोकतंत्र और उसके संस्थानों को मजबूत करने में है, न कि उन्हें कमजोर करने में और यह वास्तव में हमारे विकास के लिए आवश्यक है।’ भले ही यह बातें कांग्रेस के मंच से कही गई हैं, लेकिन इसमें सत्तारुढ़ दल समेत तमाम राजनैतिक दलों के लिए एक जरूरी संदेश है।
लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत रही, तभी भारत ने आजादी मिलने के सात दशकों में वैश्विक मानचित्र पर अपनी खास जगह बनाई है। राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता के लिए भले ही यह कहा जाए कि 70 सालों में कुछ नहीं हुआ या हमें आजादी 2014 के बाद मिली है, लेकिन ऐसा दावा करने वाले भी ये जानते हैं कि इस देश के असंख्य वंचित, शोषित तबके के लोगों को जो अधिकार हासिल हुए हैं, वह आजादी के बाद बने संविधान और उदार लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चल रही प्रक्रिया की ही देन है। और यह प्रक्रिया जारी न रही, तो देश फिर से गुलामी के दौर की सामाजिक बुराइयों में जकड़ जाएगा।
अजीत डोभाल और रघुराम राजन की बातें देश को मजबूत करने के लिए बहुत जरूरी हैं, इन पर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विचार करना चाहिए।