आरोपी द्वारा टीवी चैनल पर अपराध स्वीकार करने को संज्ञान में नहीं लिया जाना दुखद
लखनऊ। मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ़ भड़काऊ भाषण मामले में कार्यवाई से इनकार करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने मायूस करने वाला बताया है।
कांग्रेस मुख्यालय से जारी बयान में उन्होंने कहा कि आम तौर पर यह धारणा रही है कि अदालत के सामने सभी लोग बराबर होते हैं। कमज़ोर लोग इसी आस्था से प्रेरित हो कर ताक़तवर लोगों के खिलाफ़ भी अदालत जाने का साहस दिखा पाते हैं। यह धारणा ऐसे फैसलों से कमज़ोर होती है। उन्होंने कहा कि यह और भी दुखद है कि फैसला आने से पहले ही आम लोगों में चर्चा थी कि ऐसा ही फैसला आयेगा। यह स्थिति न्यायपालिका की गरिमा और लोकतंत्र दोनों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि अदालत में भले ही योगी आदित्यनाथ ने भड़काऊ भाषण देने के अपराध को न क़बूला हो लेकिन उन्होंने 30 अगस्त 2014 को पत्रकार रजत शर्मा की आप की अदालत कार्यक्रम में उस भाषण का क्लिप दिखाये जाने के बाद स्वीकार किया था कि यह उन्हीं का भाषण है। अदालत से वादी पक्ष के वकीलों ने कोर्ट के बाहर सार्वजनिक तौर पर अपराध की स्वीकारोक्ति को बतौर साक्ष्य संज्ञान में लेने की अपील की थी। लेकिन अदालत ने इसे संज्ञान नहीं लिया। जबकि यह एक महत्वपूर्ण साक्ष्य था।
शाहनवाज़ आलम ने अखिलेश यादव की सपा सरकार पर भी इस मामले में योगी आदित्यनाथ को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए कहा कि 2015 से 2017 तक इस मामले की जाँच ही रोक दी गयी थी। जबकि 2017 में सत्ता में आते ही योगी आदित्यनाथ ने अपने खिलाफ़ दर्ज सारे मामलों को निरस्त कर दिया था। उन्होंने कहा कि मुसल्मानों को सपा और भाजपा की इस मिलीभगत को समझना चाहिए।