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कैसे बना आईएनएस विक्रांत?


गौर कीजियेगा की इसके पीछे 70 साल देश के विकाश की कौन कौन सी मशीनरी लगी हुई थी
सबसे पहली और गौर करने वाली बात यह है कि भारत में बने आईएनएस विक्रांत में इस्तेमाल सभी चीजें स्वदेशी नहीं हैं। यानी कुछ कलपुर्जे विदेशों से भी मंगाए गए हैं। हालांकि, नौसेना के मुताबिक, पूरे प्रोजेक्ट का 76 फीसदी हिस्सा देश में मौजूद संसाधनों से ही बना है।

विक्रांत के निर्माण के लिए जरूरी युद्धपोत स्तर की स्टील को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAIL) से तैयार करवाया गया। इस स्टील को तैयार करने में भारतीय नौसेना और रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला (DRDL) की भी मदद ली गई। बताया गया है कि SAIL के पास अब युद्धपोत स्तर की स्टील बनाने की जो क्षमता है, वह आगे भी देश में काफी मदद करेगी।

नौसेना के मुताबिक, इस युद्धपोत की जो चीजें स्वदेशी हैं, उनमें 23 हजार टन स्टील, 2.5 हजार टन स्टील, 2500 किलोमीटर इलेक्ट्रिक केबल, 150 किमी के बराबर पाइप और 2000 वॉल्व शामिल हैं। इसके अलावा एयरक्राफ्ट कैरियर में शामिल हल बोट्स, एयर कंडीशनिंग से लेकर रेफ्रिजरेशन प्लांट्स और स्टेयरिंग से जुड़े कलपुर्जे भी देश में ही बने हैं।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, भारत के कई बड़े औद्योगिक निर्माता इस एयरक्राफ्ट कैरियर के निर्माण से जुड़े रहे। इनमें भारत इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BEL), भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL), किर्लोस्कर, एलएंडटी (L&T), केल्ट्रॉन, जीआरएसई, वार्टसिला इंडिया और अन्य शामिल रहे। इसके अलावा 100 से ज्यादा मध्यम और लघु उद्योगों ने भी इस पोत पर लगे स्वदेशी उपकरणों और मशीनरी के निर्माण में मदद की।

नौसेना का कहना है कि इस युद्धपोत को बनाने में 50 भारतीय उत्पादक शामिल रहे। इसके निर्माण के दौरान हर दिन दो हजार भारतीयों को सीधे तौर पर रोजगार मिला, जबकि 40,000 अन्य को परोक्ष तरीके से इस प्रोजेक्ट में काम करने का मौका मिला। नौसेना का कहना है कि इस पोत को बनाने में लगी कुल 23 हजार करोड़ रुपये की लागत का 80-85 फीसदी वापस भारतीय अर्थव्यवस्था में ही लगा दिया गया।

अब जानें- विक्रांत की खासियत क्या-क्या?

  1. कोचिन शिपयार्ड में बने आईएनएस विक्रांत की लंबाई 262 मीटर है। वहीं, इसकी चौड़ाई भी करीब 62 मीटर है। यह 59 मीटर ऊंचा है और इसकी बीम 62 मीटर की है। युद्धपोत में 14 डेक हैं और 1700 से ज्यादा क्रू को रखने के लिए 2300 कंपार्टमेंट्स हैं। इनमें महिला अधिकारियों के लिए अलग से केबिन बनाए गए हैं। इसके अलावा इसमें आईसीयू से लेकर चिकित्सा से जुड़ी सभी सेवाएं और वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं भी हैं। आईएनएस विक्रांत का वजन करीब 40 हजार टन है, जो इसे भारत में बने किसी अन्य एयरक्राफ्ट से भारी और विशाल बनाता है।
  2. आईएनएस विक्रांत की असली ताकत सामने आती है समुद्र में, जहां इसकी अधिकतम स्पीड 28 नॉट्स तक है। यानी करीब 51 किमी प्रतिघंटा। इसकी सामान्य गति 18 नॉट्स यानी 33 किमी प्रतिघंटा तक है। यह एयरक्राफ्ट कैरियर एक बार में 7500 नॉटिकल मील यानी 13,000+ किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है।
  3. इस एयरक्राफ्ट कैरियर की विमानों को ले जाने की क्षमता और इसमें लगे हथियार इसे दुनिया के कुछ खतरनाक पोतों में शामिल करते हैं। नौसेना के मुताबिक, यह युद्धपोत एक बार में 30 एयरक्राफ्ट ले जा सकता है। इनमें मिग-29के फाइटर जेट्स के साथ-साथ कामोव-31 अर्ली वॉर्निंग हेलिकॉप्टर्स, एमएच-60आर सीहॉक मल्टीरोल हेलिकॉप्टर और एचएएल द्वारा निर्मित एडवांस्ड लाइट हेलिकॉप्टर भी शामिल हैं। नौसेना के लिए भारत में निर्मित लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट- एलसीए तेजस भी इस एयरक्राफ्ट कैरियर से आसानी से उड़ान भर सकते हैं।

माना जा रहा है कि विदेश में बने बोइंग और लॉकहीड मार्टिन के अन्य एयरक्राफ्ट्स की लैंडिंग और टेकऑफ को लेकर भी विक्रांत पर जल्द ही परीक्षण किए जाएंगे। कैरियर में स्थापित हथियारों की बात करें तो इसमें एंटी सबमरीन वॉरफेयर से लेकर एंटी सर्फेस, एंटी एयर वॉरफेयर और अत्याधुनिक वॉर्निंग सिस्टम तक लगा है, जो आसपास आने वाले किसी भी खतरे से निपटने में सक्षम हैं।
स्वदेशी विमानवाहक पोत होने से भारत की नौसैनिक क्षमताओं में कितना फर्क?
मौजूदा समय में सिर्फ पांच से छह देशों के पास ही एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की क्षमता है। अब भारत भी इस श्रेणी में शामिल हो गया है। जानकारों का कहना है कि भारत का एक एयरक्राफ्ट कैरियर बनाना नौसैनिक क्षेत्र में उसकी क्षमताओं को दिखाता है।

दरअसल, भारत के पास पहले भी एयरक्राफ्ट कैरियर रहे हैं। लेकिन वे ब्रिटिश या रूसी थे। जहां इससे पहले भारत के दो विमानवाहक पोत- आईएनएस विक्रांत-1 और आईएनएस विराट ब्रिटेन से खरीदे गए ‘एचएमएस हरक्यूलीस’ और ‘एचएमएस हर्मीस’ थे। तो वहीं भारतीय नौसेना का मौजूदा इकलौता एयरक्राफ्ट कैरियर- आईएनएस विक्रमादित्य सोवियत काल का युद्धपोत- ‘एडमिरल गोर्शकोव’ है, जिसे भारत ने रूस से खरीदा है। यानी आईएनएस विक्रांत के नौसेना में शामिल होने के साथ भारत अब एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने में एक सक्षम देश हो गया है।
मजेदार बात यह है कि भारत में बने पहले एयरक्राफ्ट कैरियर का नाम आईएनएस विक्रांत रखा गया है। जबकि इससे पहले ब्रिटेन से खरीदे गए भारत के पहले विमानवाहक पोत- एचएमएस हरक्यूलीस का नाम भी आईएनएस विक्रांत ही रखा गया था। बताया जाता है कि इसके पीछे भारत का पहले एयरक्राफ्ट कैरियर के प्रति प्यार और गौरव की भावना है। 1997 में सेवा से बाहर किए जाने से पहले आईएनएस विक्रांत ने पाकिस्तान के खिलाफ अलग-अलग मौकों पर भारतीय नौसेना को मजबूत रखने में अहम भूमिका निभाई थी।