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सुप्रीम कोर्ट में एक भी मुस्लिम जज न होना संयोग नहीं, राजनीति है- शाहनवाज़ आलम

कॉलेजियम व्यवस्था को बदले बिना सभी को न्याय नहीं मिल सकता

कॉलेजियम व्यवस्था सरकार के प्रभाव में काम कर रही है

लखनऊ, । उत्तर प्रदेश कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने तमिलनाडू के मुख्यमन्त्री एमके स्टैलिन के उस बयान का समर्थन किया है जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में सभी वर्गों के उचित प्रतिनिधित्व की मांग की है।

शाहनवाज़ आलम ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि यह सिर्फ़ संयोग नहीं है कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कुल 31 जजों में देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी मुस्लिम वर्ग से एक भी जज नहीं है। यह जानबूझकर अल्पसंख्यक समुदाय के साथ किया जाने वाला न्यायिक अन्याय है। जिसका मकसद इस समुदाय का न्यायपालिका पर से भरोसा कमज़ोर करना है। उन्होंने दलित, आदिवासी और अतिपिछड़े वर्गों की सुप्रीम कोर्ट में उनके अनुपात में भागीदारी नहीं होने को भी गंभीर समस्या बताया।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि 2012 में नियुक्त दो मुस्लिम जजों जस्टिस एमवाई इक़बाल और फकीर मोहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला के 2016 में सेवा निवृत्त हो जाने के बाद से एक भी मुसलमान जज को सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम व्ययवस्था ने नामित नहीं किया जो कॉलेजियम व्यवस्था के सांप्रदायिक चरित्र को उजागर करता है। जबकि त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अकील क़ुरैशी वरिष्ठता क्रम में देश के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश थे। लेकिन मोदी सरकार के दबाव में कॉलेजियम ने उनका नाम नहीं भेजा।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कॉलेजियम किस कदर मोदी सरकार के सामने नतमस्तक है इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है कि जस्टिस कुरैशी जब गुजरात हाईकोर्ट में
कार्यरत थे तब हाई कोर्ट में मुख्यन्यायाधीश का पद खाली था लेकिन कॉलेजियम ने उन्हें मुख्यन्यायाधीश नियुक्त करने के बजाए उन्हें मुंबई हाईकोर्ट का मुख्यन्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया। इसके एक साल बाद कॉलेजियम ने उन्हें मध्यप्रदेश हाई कोर्ट का मुख्यन्यायाधीश नियुक्त करने के लिए उनका नाम केंद्र सरकार को भेजा लेकिन सरकार ने नाम स्वीकार नहीं किया। लेकिन सरकार से अपनी लिस्ट पर अधिकार के तहत अड जाने के बजाए कॉलेजियम ने नतमस्तक होने का विकल्प चुना। जिसके बाद उन्हें देश के सबसे छोटे हाईकोर्ट त्रिपुरा का मुख्यन्यायाधीश बना दिया गया जो एक तरह से उनका डिमोशन था।

उन्होंने कहा कि जस्टिस कुरैशी की गलती सिर्फ़ यही थी कि उन्होंने सोहरबुद्दीन शेख फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में आरोपी अमित शाह को विधि के अनुसार सीबीआई की हिरासत में भेजा था।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कॉलेजियम व्ययवस्था के पूरी तरह सरकार के आगे झुक जाने का ही परिणाम है कि बिना हाई कोर्ट में कभी जज रहे लोग भी सीधे सुप्रीम कोर्ट की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठ जा रहे हैं।