न्यायपालिका के राजनीतिक दुरूपयोग के खिलाफ़ सबको बोलना होगा
भ्रष्टाचार के आरोपी जस्टिस हेमन्त गुप्ता कैसे पहुँच गए सुप्रीम कोर्ट
थिरुवनंतपुरम। उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने कहा है कि हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जिस टोन में मुस्लिम पक्ष से सवाल पूछ रहे हैं, उससे लगता है कि उन्होंने फैसला पहले ही तय कर लिया है। या यह भी हो सकता है कि कुछ ऐसे निर्णयों के लिए ही उन्हें भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम द्वारा नियुक्त करवाया गया हो। ये बातें उन्होंने स्पीक अप कार्यक्रम की 62 वीं कड़ी में कहीं।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक वर्गों के आंतरिक धार्मिक सांस्कृतिक मामलों में दखल देना नया चलन बनता जा रहा है। जिसमें हिंदुत्ववादी पृष्ठभूमि के जजों की भूमिका संदिग्ध रह रही है।
उन्होंने कहा कि हिजाब मामले में सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस हेमंत गुप्ता की पृष्ठभूमि आम लोगों के संज्ञान में होनी चाहिए कि उनके पिता जस्टिस जितेंद्र वीर गुप्ता पंजाब और हरियाणा के न्यायाधीश थे और सेवानिवृति के बाद आरएसएस के उत्तरी जोन के अध्यक्ष थे।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि जस्टिस हेमंत गुप्ता पर मनी लॉन्ड्रिंग, अवैध तरीकों से संपत्ति इकट्ठा करना, आय से अधिक संपत्ति, मामलों की जाँच कर रहे इडी अधिकारी को प्रभावित करने जैसे संगीन आरोप रहे हैं। जस्टिस हेमंत गुप्ता पर आरोप है कि अपनी पत्नी और चंडीगढ़ मनी लॉन्ड्रिंग केस 2015 की मुख्य आरोपी अलका गुप्ता के ज़रिये मनी लॉन्ड्रिंग करते थे। लेकिन इन संगीन आरोपों पर सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस ने कोई आंतरिक जांच तक नहीं कराई। उल्टे उन्हें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त कर दिया गया।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि हेमंत गुप्ता पर भ्रष्टाचार के इतने संगीन आरोप थे कि कैंपेन फॉर जुडिशियल एकाउंटिबिलिटी एंड रिफॉर्म नाम के संगठन ने उनको मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से हटाने के लिए महाभियोग तक की मांग की थी।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि एक मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस हेमन्त गुप्ता ने अपने गरीब विरोधी मानसिकता का परिचय यह कहते हुए दिया था कि सिर्फ़ 4 प्रतिशत लोग ही टैक्स देते हैं। क्या उन्हें यह नहीं पता कि आम आदमी से सरकार दिन भर में दूध, दही से ले कर रेलवे स्टेशन के शौचालय में पिशाब करने तक पर टैक्स ले रही है। उन्होंने कहा कि और और अन्य मामले की सुनवाई में वो कह चुके हैं कि संविधान के मूल प्रस्तावना में सेकुलर शब्द नहीं था। गौरतलब है कि मोदी सरकार सेकुलर और समाजवाद शब्द को संविधान की प्रस्तावना से हटाने के लिए राज्य सभा में अपने सांसदों से प्राइवेट मेंबर बिल पेश करवाती रही है और सुप्रीम कोर्ट खुद ऐसी अर्जी पर सुनवाई करने वाला है।
शाहनवाज़ आलम ने कहा कि कॉलेजियम ने संगीन आरोपों से घिरे ऐसे व्यक्ति को किस मानदंड पर सर्वोच्च न्यायायल का जज बनाया है उसे बताना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार भ्रष्ट और संविधान की मूल भावनाओं की अवहेलना करने वालों को सुप्रीम कोर्ट में जज बनवा रही है ताकि लोगों का सर्वोच्च न्यायालय पर से ही भरोसा उठ जाए। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है की राजनीतिक दल और नागरिक समाज न्यायालयों की गरिमा की रक्षा के लिए ऐसे जजों की नियुक्तियों पर सवाल उठाये।