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बाह्य नहीं, आत्मिक सुंदरता से होगा कल्याण: जैनमुनि डॉक्टर मणिभद्र

आगरा । नेपाल केसरी व जैन मुनि डॉ.मणिभद्र महाराज ने कहा कि बाह्य सुदंरता जीवन का कल्याण नहीं कर सकती, उसके लिए आंतरिक सुंदरता जरूरी है। उसी के प्रयास करने चाहिए। राजा मंडी के जैन स्थानक में हो रहे भक्तामर स्रोत अनुष्ठान के दौरान प्रवचन करते हुए जैन मुनि ने कहा कि लोग अपने शरीर को रोज सुंदर बनाते हैं। उसके लिए तरह-तरह के यत्न करते हैं। मेकअप भी किया जाता है। बाहरी सुंदरता से किसी को आकर्षित तो किया जा सकता है, लेकिन आत्मिक स्तर पर प्रभाव नहीं पड़ सकता। इसलिए अपनी आत्मा को सुंदर और विचारों को पवित्र बनाओ, तभी समाज का व अपना भला हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब हमारे भीतर किसी के प्रति भक्ति जाग्रत होती है तो हम उसके केवल गुणों के ही दर्शन करते हैं।
आचार्य मांगतुंग ने भगवान आदिनाथ की आराधना करते समय भी उनके गुणों को ही उल्लेख किया। उन्होंने तरह- तरह की उपमा देते हुए कहा कि कोई गुण ऐसा नहीं जो आप में नहीं हो। मुनिवर ने कहा कि जब कोई कवि या भक्त अपनी रचना लिखता है तो वह पूर्ण रूप से उनकी श्रेष्ठता का ही गान करता है। वैसे ही जो व्यक्ति सर्वगुण संपन्न हो,उसी में सर्वोत्कृष्ट रूप सज्जा कहते हैं। उन्होंने बताया कि बल्देव 63 शलाका पुरुष रूप में सौंदर्यशाली थे। बल्देव से सुंदर वासुदेव, वासुदेव से सुंदर चक्रवर्ती, उनसे सुंदर भवनपति, उनसे सुंदर गणधर और उनसे सुंदर तीर्थंकर होते हैं। यानि तीर्थंकरों से सुंदर कोई नहीं हो सकता। उनके आगे सभी उपमाएं समाप्त हो जाती हैं। उसका कारण यह भी है कि तीर्थंकर बाह्य और आत्मिक रूप से सुंदर होते हैं। आंतरिक रूप से निश्छल, निष्कपट, निर्मल मन वाले होते हैं।
जैन मुनि ने कहा कि अरिहंतों ने ही तीर्थ चलाये हैं। उन्होंने ही मुक्ति का मार्ग बताया है। हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि लोग अपने माता-पिता को भी याद नहीं करते। वह तो अच्छा कि पूर्वजों ने श्राद्ध पक्ष चला दिया है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों को याद कर लेते हैं, वरना सभी भूल जाएं। जैन मुनि ने प्रसंग सुनाया, कहा कि एक आदमी अपने बेटे के साथ बाजार जा रहा था। तभी देखा कि कुछ लोग एक आदमी को कंधे पर ले जा रहे हैं। सभी लोग रामनाम सत्य बोलते जा रहे थे। बेटे ने पूछा कि यह क्या है। तो पिता ने बताया कि ये अर्थी जा रही है। बेटे ने फिर पूछा कि सारे लोग राम नाम सत्य बोल रहे है। जो अर्थी पर लेटा है, वह क्यों नहीं बोल रहा। पिता ने समझाया कि जो मर गया वही नहीं बोलता, बाकी सब बोल सकते हैं। जैन मुनि का आशय था कि जिसकी आत्मा जागृत है, वही धर्म, संस्कृति और सभ्यता के लिए बोल सकता है। जिंदा आदमी वही कहलाता है, जिसमें भक्ति हो। कृष्ण भक्त मीरा बाई की चर्चा करते हुए जैन मुनि ने कह कि यह तो बहुत पुरानी घटना भी नहीं है। सात सौ साल
पहले भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन मीरा ने भगवान का प्रसाद पाकर जहर पी लिया, लेकिन उसका उस पर कोई असर नहीं हुआ, जिस प्याले को भर कर जहर पीया, उसमें बची दो बूंद पीकर जहर बनाने वाला व्यक्ति तुरंत मर गया। मीरा की तो भक्ति निराली थी। वैसे ही भक्ति अपने जीवन में धारण करिए, तभी जीवन का उद्धार हो सकेगा। नेपाल केसरी , मानव मिलन संस्थापक डॉक्टर मणिभद्र मुनि, बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में शनिवार को बारहवीं एवम तेरहवीं गाथा एवम नवकार मंत्र जाप का लाभ नरेंद्र कुमार एवम तेजबहादुर गादिया परिवार ने लिया। धर्म प्रभावना के अंतर्गत नीतू जैन, दयालबाग की 27 उपवास , बालकिशन जैन, लोहामंडी की 31, मधु जी बुरड़ की 19 आयंबिल की तपस्या निरंतर जारी है।