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अस्पतालों के नाम हिंदी के अलावा उर्दू में भी लिखने का आदेश क़ानून सम्मत है- शाहनवाज़ आलम

अधिकारी का निलंबन योगी सरकार की कुंठित मानसिकता का ताज़ा उदाहरण

मुख्यमन्त्री के क़रीबी अधिकारियों को उन्हें प्रशासनिक आदेशों की जानकारी देनी चाहिए

लखनऊ, । अल्पसंख्यक कांग्रेस अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का नाम हिंदी के अलावा उर्दू में भी लिखने का निर्देश देने वाली अधिकारी डॉ तबस्सुम खान के निलंबन को योगी सरकार की वैचारिक कुंठा की परिकाष्ठा बताया है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि योगी जी को प्रदेश की दूसरी राजभाषा के वैधानिक स्थिति की जानकारी नहीं है। यह उनकी अज्ञानता का ताज़ा उदाहरण है।

शाहनवाज़ आलम ने जारी बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस आर एम लोढ़ा ने 2014 में हिंदी साहित्य सम्मेलन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में फैसला दिया था कि उर्दू प्रदेश की दूसरी राज भाषा है। जिसके बाद 21 अप्रैल 2015 को प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश शासन ने सभी सरकारी कार्यालयों और उपक्रमों के संकेत पट्टीयों पर उर्दू के प्रयोग का निर्देश दिया था।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और प्रमुख सचिव के निर्देशों का पालन करने वाले अधिकारी को तो अपने कर्तव्य पालन के लिए इनाम मिलना चाहिए था।लेकिन सांप्रदायिक कुंठा में डूबी योगी सरकार ऐसा करने वालों को काम में लापरवाही के आरोप में निलंबित कर रही है। शाहनवाज़ आलम ने कहा कि योगी सरकार को शायद उर्दू से इसलिए नफरत है कि इसे कांग्रेस की नारायण दत्त सरकार ने 8 अक्टूबर 1989 को दूसरे राज भाषा का दर्जा दिया था।

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि मुख्यमन्त्री जी के इर्द गिर्द रहने वाले काबिल अधिकारियों को चाहिए कि वो उन्हें अदालतों के फैसलों और पूर्व प्रशासनिक आदेशों की जानकारी दें ताकि उनमें प्रशासनिक क्षमता विकसित हो सके और सरकार की बदनामी न हो।