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इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022 : भेदभाव के कारण दलितों-आदिवासियों की कमाई हो रही है कम, कोविड के कारण सबसे अधिक बेरोजगार हुए मुसलमान

  • देश में महिलाओं और पुरुषों में रोजगार असमानता 100% तक, मुस्लिमों में 17% बेरोजगारी बढ़ी

नई दिल्ली।हालाँकि भारत अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना चुका है लेकिन भेदभाव से मुक्ति के लिए अब तक कोई तारीख तय नहीं हुई है। ऑक्सफैम इंडिया की ताजा रिपोर्ट बताती है मुल्क में आज भी धर्म, जाति और लिंग की वजह से लोग सताए जा रहे हैं। लोगों की कमाई तक धर्म, जाति और लिंग से तय हो रही है।

‘इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट 2022’ शीर्षक से प्रकाशित ऑक्सफैम इंडिया की नई रिपोर्ट में बताया गया है कि सामान्य वर्ग की तुलना में देश के दलित और आदिवासी हर महीने पांच हजार रुपये कम कमा रहे हैं। वहीं गैर-मुस्लिमों की तुलना में मुस्लिम हर माह सात हजार कम कमा रहे हैं। महिलाएं पुरुषों की तुलना में चार हजार रुपये कम कमा रही हैं।

ज्ञात हो कि ऑक्सफैम की इस रिपोर्ट को शोधकर्ताओं ने 16 साल के सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण के बाद तैयार किया है। शोधकर्ताओं ने 2004 से 2020 के बीच अलग-अलग वर्ग की नौकरियों, उनका वेतन, स्वास्थ्य, कर्ज आदि का अध्ययन किया है।

रिपोर्ट में आकस्मिक वेतन श्रमिकों को लेकर अलग से आंकड़ा दिया गया है। मोटे तौर पर दिहाड़ी मजदूरों को आकस्मिक वेतन श्रमिक कहा जाता है। रिपोर्ट में मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, ऐसे दलित और आदिवासी जो दिहाड़ी मजदूरी करते हैं, उनकी आय और गैर-दलित-आदिवासी दिहाड़ी मजदूरों की आय से कम है। कमाई में अंतर के लिए 79% भेदभाव जिम्मेदार है। यह पिछले साल की तुलना में 10 प्रतिशत ज्यादा है।

2020 से शुरू हुई कोरोना महामारी के पहले क्वार्टर में ही मुस्लिमों के बीच बेरोजगारी 17% तक बढ़ गई। 2019-20 में 15 साल या उससे ज्यादा उम्र की शहरी मुस्लिम आबादी में से 15.6% के पास नियमित वेतनभोगी नौकरियां थीं। ठीक इसी वक्त गैर-मुसलमानों में 23.3% लोग नियमित वेतनभोगी नौकरी कर रहे थे। शहरी मुसलमानों को 68% मामलों में सांप्रदायिक भेदभाव की वजह से रोजगार कम मिला है।

कमाई की बात की जाए तो शहरी इलाकों में गैर-मुसलमान हर महीने 20,346 रुपए कमाते हैं, लेकिन मुसलमान 13,672 रुपए ही कमा पाते हैं। खुद का बिजनेस करने वाले गैर-मुस्लिम हर महीने औसत 15,878 रुपए कमा रहे हैं, तो वहीं मुस्लिम 11,421 रुपए ही कमाते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक जैसी शिक्षा और अनुभव के बावजूद पुरुष महिलाओं से 2.5 गुना ज्यादा कमाते हैं। इससे दोनों लिंग के वेतन में 93% का अंतर आ जाता है। गांवों में रोज कमाने वाले पुरुष हर महीने महिलाओं की तुलना में औसत 3,000 रुपए ज्यादा कमाते हैं। पुरुषों और महिलाओं के बीच कमाई में अंतर का 91.1% क्रेडिट भेदभाव को जाता है। उधर, मासिक वेतन पाने वाली औरतों की कम कमाई का 66% कारण जेंडर डिस्क्रिमिनेशन है।

घर के मुखिया की शिक्षा, उम्र और श्रमिक की शिक्षा जैसे कारक कमाई को प्रभावित करते हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि एससी और एसटी समुदायों के सदस्यों की शिक्षा का स्तर सामान्य वर्ग के समान होने के बावजूद उनकी कमाई कम रही है। ज्यादातर मामलों में भेदभाव के कारण वेतन में 41% का अंतर रहा है।
[9/16, 8:45 PM] Akram Etah: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर मामले में पत्रकार का दावा- चौकी में मृतका की मां-बाप को पुलिस ने पीटा था

जनपद में दो दलित बहनों से रेप और हत्या के मामले में एक और वीडियो सामने आया है. यह वीडियो बुधवार देर शाम का बताया जा रहा है, जिसमें एक पत्रकार को पुलिस के आला अधिकारी पकड़े हुए पुलिस चौकी से बाहर निकाल रहे हैं. पत्रकार का दावा है कि पुलिसवालों ने मृतका के मां को मारा-पीटा था, जिसका वह वीडियो बनाने जा रहा था, तभी पुलिसवाले भड़क गए और उसे घसीटते हुए पुलिस चौकी से बाहर ले आए.

दोनों सगी बहनों की हत्या के कुछ घंटों बाद एक वीडियो सामने आया, जिसमें एक लोकल पत्रकार नंद किशोर को पुलिस गला पकड़कर खींचती हुई बाहर ला रही है. देश का एक खबरिया चैनल उस पत्रकार तक पहुंचा. उसने बताया कि वह उस वक्त चौकी पर मौजूद था, जब पीड़िता की मां शिकायत लिखवाने वहां पहुंची थी, उसने देखा कि मां को पुलिसकर्मियों ने काफी देर मारा, उसके बाल पकड़ के खींचा, कुछ गांव वालों ने बीच में आकर उसकी वहां से बाहर निकाला.

पत्रकार नंद किशोर ने आगे कहा, ‘जब पुलिस ने देखा कि वह वहां खड़ा उसका वीडियो बनाने को कोशिश कर रहा है तो वहां के सीओ और एसएचओ उसे वहां से घसीटने लगे और बोले कि यहां पत्रकारिता करोगे तुम..’ वीडियो बुधवार शाम 7 बजे का है. इससे पहले दोनों लड़कियों की मां ने आरोप लगाया कि पुलिस चौकी में उसको आधे घंटे तक मारा गया था और उसके साथ महिला पुलिसकर्मी ने बदसलूकी की थी. मां के आरोपों को पत्रकार ने पुख्ता कर दिया है.

अब देखना ये है कि इन पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रवाई होती है या नहीं? लखमीपुर खीरी प्रशासन ने परिवारवालों को समझाया बुझाया और फैस्ट ट्रैक कोर्ट में मुकदमा चलाने का भरोसा दिया. तब जाकर वो अंतिम संस्कार के लिए तैयार हुए. दोनों बहनों के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि हुई है कि बड़ी बहन के साथ दरिंदगी की गई थी.