आगरा 16 सितंबर । नेपाल केसरी और मानव मिलन संस्थापक जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने कहा है कि जीवन में सम्यक भाव रखने चाहिए। तभी जीवन सुखदायक रहेगा। वरना इस जीवन में कष्टों की कमी नहीं है। राजामंडी के स्थानक में हो रहे भक्तामर स्रोत अनुष्ठान का शुक्रवार को 19 वां भक्ति पुष्प अर्पित किया गया। पाठ में आदिनाथ भगवान के गुणों का विस्तृत वर्णन किया जा रहा है। आचार्य मांगतुंग कहते हैं कि भगवान आदिनाथ के आगे सैकड़ों सूर्य और चंद्रमा भी फीके हैं। भगवान आदिनाथ का मन चंद्रमा से भी अधिक निर्मल है, लेकिन हमारी अज्ञानता है कि हम कुछ समझ नहीं पाते। ठीक उसी तरह जिस तरह एक मछुआरा, मछली को फंसाने के लिए अपने कांटे में आटा लगा देता है। भूखी मछली आटा खाने आती है, लेकिन मछुआरा द्वारा फैंके हुए जाल में उसका मुंह फंस जाता है और मछुआरा की शिकार बन जाती है।
जैन मुनि ने कहा कि हमारी जिदंगी भी कुछ ऐसी ही है। सुख के दिन आते ही हम जिदंगी के भंवरजाल में फंस जाते हैं और निकलना मुश्किल हो जाता है। सुख में अधिक प्रसन्न होने से दुख सहन करने की क्षमता खत्म हो जाती है। जिस व्यक्ति के मन में कुछ पाने की लालसा हो उसे अपने कत्र्तव्य पूरे करने होते हैं। जैन मुनि ने कहा कि सपना दो तरह के लोग देखते हैं। कुछ लोग सोते में सपना देखते हैं कुछ अपना लक्ष्य पाने के लिए स्वप्न देखते हैं। भगवान महावीर साढ़े बारह साल में केवल 48 घंटे ही सोए थे। बाकी दिनों में वे मोक्ष प्राप्ति के देखे गए सपने को पूरा करने में लगे रहे। जैन मुनि ने कहा कि जीवन में जो भी लक्ष्य निर्धारित कर लेता है, उसे सफलता अवश्य मिलती है, लेकिन जीवन के सुख में लोग इतने वशीभूत हैं कि वे मोक्ष की कल्पना तक नहीं करते। आचार्य मांगतुंग ने अंधेरी कोठरी में रहते हुए ,अपने जीवन को प्रकाशमान कर लिया था। वे भगवान आदिनाथ को अपने मन सामहित कर चुके थे। यही वजह थी कि असंख्य सूर्य और चंद्रमा जैसा प्रकाश उनके जीवन में समा चुका था। यही जीवन का शाश्वत प्रकाश है। प्रकृति का या फिर व्यक्ति द्वारा तैयार किया गया प्रकाश शाश्वत नहीं होता, वह तो क्षणिक होता है। साधना के बाद जो कैवल्य ज्ञान प्राप्त होता है, वही जीवन को शाश्वत प्रकाश देता है। जैन मुनि ने कहा कि हंसने और रोने से ऊपर की जो प्रवृति है, वही जीवन की अनंत साधना है। जिसने अपने जीवन में नियंत्रण कर लिया, वही व्यक्ति सच्चा सुख पा सकता है। नेपाल केसरी , मानव मिलन संस्थापक डॉक्टर मणिभद्र मुनि, बाल संस्कारक पुनीत मुनि जी एवं स्वाध्याय प्रेमी विराग मुनि के पावन सान्निध्य में 37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में शुक्रवार को उन्नीसवीं गाथा का लाभ हरी सिंह सकलेचा परिवार ने लिया। नवकार मंत्र जाप की आराधना सुनीता-दिलीप सुराना परिवार ने की। धर्म प्रभावना के अंतर्गत नीतू जैन, दयालबाग ने 31 उपवास उपवास के बाद पारणा कर लिया। मधु जी बुरड़ की 24 आयंबिल एवमं बालकिशन जैन, लोहामंडी की 31आयम्बिल के बाद 5 एकासने उषा रानी लोढ़ा की एक वर्ष से निरंतर एकासाने की तपस्या निरंतर जारी है। शुक्रवार की धर्मसभा में चेन्नई , नागपुर से आए श्रद्धालु उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन सचिव राजेश सकलेचा ने किया।श्वेतांबर स्थानकवासी जैन ट्रस्ट के अध्यक्ष अशोक जैन ओसवाल, वैभव जैन , संजय जैन, विवेक कुमार जैन, राजीव जैन , सुलेखा सुराना, अशोक जैन गुल्लू आदि गणमान्य लोग कार्यक्रम में उपस्थित थे।