अन्य

प्रीमेच्योर नवजात शिशुओं के सफल उपचार ने रचा इतिहास

6 से 8 माह के बीच जन्में शिशुओं में 100 वें शिशु ने 76 दिन में जीता जीवन
नियोनेटोलॉजिस्ट, गायनोकोलॉजिस्ट एवं शिशु रोग विशेषज्ञ दे रहे उपचार

 

संवाद ,मो नज़ीर क़ादरी

अजमेर । अजमेर के किशनगढ़ उपखण्ड की रहने वाली लीला देवी द्वारा जोखिमपूर्ण परिस्थितियों में जन्में प्रीमेच्योर शिशु को 76 दिन बाद मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर से छुटृटी दे दी गई। प्रसूतावस्था में अत्यधिक उच्च रक्तचाप रहने के कारण लीला देवी का प्रसव मात्र 26 सप्ताह में ही कराना पड़ा था। सामान्य रूप से पूर्ण प्रसव में 37 से 40 सप्ताह का समय लगता है। समय पूर्व प्रसव से नवजात का वजन भी मात्र 950 ग्राम था, लिहाजा उसकी रक्षा चिकित्सकों के लिए बड़ी चुनौती हो गई। मित्तल हॉस्पिटल में प्री टर्म डिलीवरी के साथ, लो बर्थ वेट (एलबीडब्ल्यू) नवजात का जीवन रक्षित बनाए रखने का विगत एक साल में यह एक सौ वां मामला है।
मित्तल हॉस्पिटल के नवजात एवं शिशु रोग विशेेषज्ञों का कहना है कि यह सब मित्तल हॉस्पिटल के नियोनेटोलॉजिस्ट, गायनोकोलॉजिस्ट, शिशु रोग विशेषज्ञ और मेटरनिटी एवं एनआईसीयू नर्सिंग स्टाफ की टीम भावना और मेहनत के साथ हॉस्पिटल में एक ही छत के नीचे उपलब्ध सभी सुपरस्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधा व अत्याधुनिक संसाधनों और माकूल वातावरण का नतीजा है।
नवजात रहा 35 दिन तक नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन…………………………………
डॉ रोमेश नियोनेटोलॉजिस्ट ने बताया कि लीला देवी को प्रारम्भ में विषम अवस्था में मित्तल हॉस्पिटल की गायनोकोलॉजिस्ट डॉ प्रीतम कोठारी ने संभाला और प्रसव कराया। प्रसव के समय नवजात रोया नहीं था, उसे श्वास लेने में तकलीफ थी, फेफड़े कमजोर थे, शिशु को जन्म के तुरंत बाद से ही ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया बाद में वह करीब 35 दिन नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन पर रहा। उन्होंने कहा कि यह नवजात के साथ उनकी भी कठिन परीक्षा होने जैसा केस था। हॉस्पिटल में भर्ती रहने के दौरान नवजात के जीवन में बहुत उतार -चढ़ाव रहे। हर दिन के पूर्ण होने पर अगले दिन के लिए नहीं कहा जा सकता था कि क्या होगा। ऐसे में परिवारजन ने बहुत धैर्य रखा यह बड़ी बात रही। डिस्चार्ज के समय शिशु का वजन 1 किलो 850 ग्राम है और शिशु के सभी अंग दिल, आँख, मस्तिष्क, फेफड़े सामान्य कार्य कर रहे हैं।
शिशु के वजन से ज्यादा हो गया डिस्चार्ज फाइल का वजन………………..
एनआईसीयू की डॉ श्वेता कोठारी और प्रभारी नर्स सिस्टर स्वर्णलता ने बताया कि लीला देवी के बच्चे को स्वस्थ घर भेजते हुए उन्हें बेइंतहा खुशी महसूस हो रही है, ईश्वर ने उनके कर्म का मान रखा। उन्होंने बताया कि 76 दिनों तक एनआईसीयू में रहते लीला देवी के शिशु की डिस्चार्ज फाइल का वजन 2 किलो से ज्यादा का हो गया है, जबकि शिशु का वजन इससे कम है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जीवन को जीतने में नवजात को कितना संघर्ष करना पड़ा।
शिशु के जन्म के एक माह पहले ही भर्ती हो गई थी प्रसूता…………..
श्रीमती लीला देवी ने बताया कि शादी के दस साल हो गए थे। गर्भवती होने के कुछ माह बाद से ही उन्हें उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना पड़ रहा था। इसका वह उपचार भी ले रही थीं किन्तु नियंत्रण में नहीं आ रहा था। गायनोकोलॉजिस्ट डॉ प्रीतम कोठारी की सलाह पर वे साढ़े पांच माह की गर्भावस्था में ही मित्तल हॉस्पिटल में भर्ती हो गईं थी। किन्तु उस समय प्रसव कराने में नवजात को सुरक्षित रख पाने का बड़ा जोखिम था इसलिए उसे मित्तल हॉस्पिटल के चिकित्सकों की देखरेख में रहते हुए गर्भ में पल रहे शिशु का पोषण करना पड़ा। लीला देवी ने बताया कि उनके पति सुरेन्द्र भादु केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में सेवारत हैं।
लो बर्थ वेट शिशुओं का हुआ शतक…………………
अजमेर के मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में पिछले एक साल में जन्में लो बर्थ वेट शिशुओं का शतक हो गया। प्रीमेच्योर शिशुओं का शत-प्रतिशत सफल उपचार करने में हॉस्पिटल ने इतिहास बनाया है। देष में प्रीमेच्योर शिशुओं की मृत्यु दर (मोर्टेलिटी रेट) लगभग 30 प्रतिशत तक है। मित्तल हॉस्पिटल में जिन प्रीमेच्योर शिशुओं का इलाज कर जान के जोखिम से बाहर किया गया उनमें अधिकांश 6 से 8 माह की गर्भावस्था में पैदा हुए थे। इन प्रीमेच्योर शिशुओं का औसत वजन 750 -1500 सौ ग्राम था। सामान्य तौर पर स्वस्थ जन्में शिशुओं का वजन ढाई से चार किलो तक होता है।
प्रसूता और नवजात को मिलता है उपयुक्त वातावरण……………
निदेशक डॉ दिलीप मित्तल ने बताया कि प्रीमेच्योर शिशुओं को संक्रमण रहित वार्म वातावरण में रखना, नवजात पर निरंतर नजर बनाए रखना, बीमारी को पकड़ कर उसका तुरंत उपचार शुरू करना, शिशु के वजन और विकास में अपेक्षित वृद्धि पर बराबर निगरानी रखना प्रमुख होता है। मित्तल हॉस्पिटल में संसाधनों की दृष्टि से नवजात शिशुओं के लिए अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं, जिससे नवजात शिशु के श्वास, आँख, ब्रेन, हार्ट, कान आदि से संबंधित किसी भी परेशानी की जाँच व उपचार तुरंत संभव हो पाता है। उन्होंने मित्तल हॉस्पिटल में प्रीमेच्योर शिशुओं के उपचार में नए आयाम स्थापित किए जाने का श्रेय चिकित्सकों व स्टाफ की टीम भावना को देते हुए सभी को बधाई दी।
ज्ञातव्य है कि मित्तल हॉस्पिटल केंद्र (सीजीएचएस), राज्य सरकार (आरजीएचएस) व रेलवे कर्मचारियों एवं पेंशनर्स, भूतपूर्व सैनिकों (ईसीएचएस), ईएसआईसी द्वारा बीमित कर्मचारियों, मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना एवं सभी टीपीए द्वारा उपचार के लिए अधिकृत है।