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वैश्विक फलक पर हिंदी का साम्राज्य


किसी समाज या देश में संप्रेषण प्रक्रिया को व्यापक सशक्त और सुदृढ़ बनाने का माध्यम भाषा है । यह वास्तविकता है कि व्यक्ति अपने भाषाई समाज के अनेक सामाजिक संदर्भों से जुड़ता है अर्थात अपने समाज की संस्कृति से रूबरू होता है क्योंकि भाषा ही संस्कार और संस्कृति का संवाहन करती है। भाषा ही है जो व्यक्ति की सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहचान के साथ-साथ उसकी सामाजिक संवेदना और अनुभूतियों को भी व्यक्त करती है। भारत एक बहुभाषी देश है जिसकी अनेक भाषाओं और बोलियों को मातृभाषा कहा जाता है।
भारत में सर्वाधिक हिंदी भाषी जनसंख्या है और विदेशों में रहने वाले भारतीयों में भी हिंदी भाषी ही अधिक है आता है देश और विदेश में बसे भारतीयों को भावनात्मक रूप में एक साथ, एक सूत्र में कि पिरोने वाली भाषा भी हिंदी ही है।
वर्ष 1918 में गांधी जी ने हिंदी साहित्य सम्मेलन में हिंदी भाषा को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा था
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया था कि केंद्र सरकार की अधिकारिक भाषा हिंदी होगी क्योंकि भारत में अधिकतर क्षेत्रों में हिंदी भाषा बोली जाती थी इसीलिए हिंदी को राजभाषा देवनागरी को लिपि बनाने का निर्णय भी लिया गया इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने और हिंदी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस के रुप में मनाया जाता है।
75 वर्षों की आजादी के बाद भी हिंदी अभी तक राजभाषा बनी हुई है साहित्यकारों के अनेकों प्रयास धरना प्रदर्शन के बाद भी हिंदी को अभी तक राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है प्रश्न यह उठता है कि पहले हिंदी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिपादित हो फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिकाधिक प्रचारित-प्रसारित की जाए। हिंदी को विश्व फलक पर पहुंचाने के लिए निम्न बातें विचारणीय है —

  1. केंद्र सरकार के संस्थानों जैसे रेलवे, एयरपोर्ट अथॉरिटी, बैंक मैं हिंदी में कार्यों को अनिवार्य किया जाए वही शिक्षण संस्थानों जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय, केंद्रीय विद्यालय ,देशभर में संचालित नवोदय विद्यालय मैं हिंदी विषय को अनिवार्य बनाया जाए।
  2. उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम सभी राजमार्गों, रेलवे स्टेशनों, बैंकों, आम सूचना पट्टिकाओ को स्थानीय भाषा के साथ-साथ हिंदी की देवनागरी लिपि में भी तैयार कराया जाए।
  3. केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से निर्गत शासनादेशों को हिंदी में भी निर्गत किया जाए।
  4. प्रत्येक विभाग की वार्षिक प्रगति आख्या एक पत्रिका के रूप में हिंदी में प्रकाशित की जाए। 5, हिंदी को बढ़ावा देने के लिए यह आवश्यक है इसे रोजगार की भाषा बनाया जाए अर्थात हिंदी से रोजगार प्राप्त करने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया जाए।
    संचार क्रांति के साथ-साथ भाषा में भी परिवर्तन दिखाई दे रहा है विशेष रूप से हिंदी भाषा का स्वरूप भी बदला है हिंदी के क्षेत्र में भी विस्तार हुआ है। सूचना और प्रौद्योगिकी के प्रचार प्रसार ने हिंदी का भी प्रचार प्रसार किया है और रोजगार के नए नए अवसर प्रदान किए हैं।
  5. प्रौद्योगिकी का माध्यम भी यदि हिंदी बनाया जाए तो जनसाधारण तक हिंदी की पहुंच और अधिक बढ़ेगी फलस्वरूप दैनिक क्रियाकलापों में भी सूचना और प्रौद्योगिकी का उपयोग कर रोजगार और हिंदी के प्रचार को बढ़ाया जा सकता है।
  6. आज रोजगार के संदर्भ में सूचना और प्रौद्योगिकी तथा हिंदी एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं इन दोनों के संयुक्त प्रयोग से रोजगार का क्षेत्र अत्यंत व्यापक हो गया है।
    आकाशवाणी अर्थात संचार का श्रव्य माध्यम जिसमें 100 व्यक्तियों को रोजगार प्राप्त होता है चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से लेकर अधिकारी स्तर तक पद होते हैं ।उद्घोषक आकाशवाणी केंद्र का सर्वाधिक और ख्याति वाला पद है। स्थानीय स्तर पर अनेक कार्यक्रम आयोजित कर स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है साथ ही अधिक से अधिक जनसंख्या तक हिंदी भाषा को पहुंचाया जा सकता है।
  7. संचार के दृश्य माध्यम के रूप में टेलीविजन फिल्म इंडस्ट्री वीडियो अत्यंत महत्वपूर्ण मध्य में जिनमें श्रव्य अर्थात ध्वनि तरंगों का भी समायोजन किया जाता है। दूरदर्शन में अनेक सीरियल अनेक सूचनाएं अनेक विज्ञापन और विभिन्न प्रकार की फिल्में प्रसारित की जाती है जिन सभी में अपार मान सम्मान और धन होता है। विज्ञापन जगत का अपना असीम कारोबार है जिससे लाखों लोगों को रोजगार तो प्राप्त होता ही है तथा उत्पादों और हिंदी का प्रचार-प्रसार भी भली-भांति होता है।
  8. हिंदी और गैर हिंदी राज्यों में अंतर्राज्यीय गतिविधियों जैसे सांस्कृतिक गतिविधियां खेल गतिविधियां को बढ़ावा देने से गैर हिंदी राज्यों में हिंदी का प्रचार प्रसार होगा और दोनों राज्यों की सांस्कृतिक परंपराओं का भी आदान-प्रदान होगा।
  9. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत त्रिभाषा फार्मूले का क्रियान्वयन भी गैर हिंदी राज्यों में हिंदी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा और गैर हिंदी राज्यों में भी हिंदी के पद सृजित होंगे और रोजगार बढ़ेगा।
    11 . अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी का प्रचार – प्रसार कई प्रकार से किया जा सकता है यथा- विदेशों में भारतीय दूतावासों द्वारा विभिन्न शिक्षण संस्थानों, औद्योगिक इकाइयों तथा सार्वजनिक स्थानों पर हिंदी में कार्यक्रम आयोजित किए जाएं और प्रतियोगिताओं के आधार पर पुरस्कार प्रदान कर वहां के नागरिकों को प्रोत्साहित किया जाए ।भारत आने के लिए उन्हें वीजा देने की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए।
    12.भारतीय विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों को प्रवेश में वरीयता के साथ-साथ फीस में भी रियायत दी जाए। इसी प्रकार भारतीय छात्रों को विदेशों में अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया जाए इससे भारतीय संस्कृति और भाषा दोनों का प्रचार प्रसार होगा।

प्रोफेसर मीना यादव
विभागाध्यक्ष (हिंदी )
बरेली कॉलेज ,बरेली