आगरा ,श्री रामलीला मनःकामेश्वर मठ की रामलीला में आज के मंचन में कुछ इस तरह के लीला हुई,
गुरु विश्वामित्र की आज्ञा लेकर राम -लक्ष्मण जनकपुर में नगर दर्शन व पुष्प वाटिका देखने जाते हैं।
नगर भ्रमण के दौरान जनकपुर के वासी राम लक्ष्मण को देखकर मोहित हो जाते हैं तथा सीता के लिए उचित वर कहते हैं।
तभी गिरिजा पूजन के लिए सीता का पुष्प वाटिका में आगमन होता है।
सीता जी राम को देखती हैं तथा रामचंद जी सीता जी को देखते हैं।
तभी राम और सीता एक दूसरे के दर्शन कर मन ही मन हर्षित होते हैं।
सीता जी गिरिजा पूजन करती हैं और माँ गिरिजा से भगवान राम को वर रूप में कामना करती है। गिरिजा जी का आशीर्वाद उन्हें मिलता है और आकाशवाणी होती है कि सीता तुम्हारी हर मनोकामना पूरी होगी।
इसके बाद राजा जनक ने सीता स्वयंवर में शर्त रखी कि जो भी शिव धनुष तोड़ेगा उसी के साथ सीता का विवाह किया जाएगा। स्वयंवर में अनेक राजाओं को आमंत्रित किया जाता है।
स्वयंवर में कोई भी राजा शिव धनुष को उठा भी नहीं पाता। राजा जनक निराश होकर कहने लगे कि लगता है कि यह धरती वीरों से खाली हो गयी है। यह सुन लक्ष्मण क्रोधित होते हैं। हालांकि, प्रभु श्रीराम उन्हें शांत रहने का इशारा करते हैं।
कुछ देर बाद गुरु विश्वामित्र की आज्ञा प्राप्त कर श्रीराम शिव धनुष को उठाने जाते हैं तथा धनुष तोड़ देते हैं।
तत्पश्चात जानकी जी प्रभु श्री राम के गले में वरमाला डाल देती हैं तथा पूरा पंडाल प्रभु श्री राम तथा श्री जानकी के जयकारों से गूंज उठता है।
धनुष टूटने पर हुई घनघोर गर्जना सुन तपस्या में लीन महर्षि परशुराम की तंद्रा भंग हो गई और वह मिथिलापुरी जा पहुंचे और राजा जनक से धनुष तोड़ने वाले के बारे में पूछते हुए कहा ‘कहु जड़ जनक धनुष कै तोरा।’
राजा जनक को मौन देख परशुराम जी क्रोधित हो जाते हैं और कहते हैं कि धनुष तोड़ने वाले का नाम बताओ वर्ना अभी अनर्थ हो जाएगा।
राम परशुराम को शांत करने का प्रयास करते हैं और कहते हैं कि ‘नाथ शंभु धनु भंजनि हारा, हुइहै कोऊ एक दास तुम्हारा।’
यह कार्य वहीं कर सकता है, जिस पर आशीष ऋषि-मुनियों का होगा।
फिर भी शांत न होने पर लक्ष्मण ने कहा कि बचपन में हमने न जाने कितनी धनुही तोड़ दीं तब ऐसा क्रोध किसी ने नहीं दिखाया। इस धनुष में कौन सी विशेषता है जो इतना गुस्सा दिखा रहे हो।
लक्ष्मण के शब्द सुनकर परशुराम का क्रोध अधिक बढ़ जाता है और लक्ष्मण को मारने के लिए दौड़ते हैं।
श्रीराम बीच में आ जाते हैं और परशुराम से क्षमा मांगते हैं और कहते हैं कि इनका कोई दोष नहीं है अपराधी तो मैं हूँ ।
दोनों भाइयों के स्वभाव में इतना अंतर देख परशुराम सोच में पड़ जाते हैं और श्रीविष्णु भगवान का दिया सारंग धनुष उन्हें थमाते हुए उसकी प्रत्यंचा चढ़ाने को कहते हैं। सारंग धनुष अपने आप श्रीराम के पास चला जाता है और उसकी प्रत्यंचा चढ़ जाती है। भ्रम दूर होने पर महर्षि परशुराम उनसे क्षमा याचना करते हुए तपस्या करने के लिए चले जाते हैं।
पूरे नगर में हर्षोल्लास छा जाता है और विवाह की तैयारियाँ प्रारंभ होने लगती है। साथ ही माँ सीता के साथ चारों भाइयों को मेहंदी लगना प्रारंभ हो जाती है।
आज की लीला में स्वरूपों को मेहंदी लगाने में दीप्ति के मार्गदर्शन में विमला, कुमकुम, अनुभा, रेखा , भावना, विजय, शिमला,रितु, बबीता ,श्रुति आदि मातृ शक्ति ने सहयोग प्रदान किया ।
आज की लीला में प्रिय अमर, निशांत, पवन, भोला आदि भक्तों ने सेवाएँ प्रदान की।
लीला के अंत में माँ स्वरूप में अवनी का श्रृंगार कर आरती उतारी गई।
कल सायंकाल 6:30 प्रभु श्रीराम की वरयात्रा बाबा मनःकामेश्वरनाथ जी के मुख्यद्वार से प्रारंभ होकर परिक्रमा कर वापस लीला स्थान पर आएगी ।