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डरपोक और हिंसक व्यक्ति भक्त नहीं हो सकता: जैन मुनि डॉ.मणिभद्र महाराज

संवाद , दानिश उमरी
आगरा । नेपाल केसरी और मानव मिलन संस्थापक जैन मुनि डॉ. मणिभद्र महाराज ने कहा है कि भक्त के आगे मदमस्त हाथी भी आ जाए तो वह भयभीत नहीं होता। जो हिंसक और डरपोक होता है, वह कभी भक्त नहीं हो सकता।
जैन भवन, राजामंडी में आयोजित भक्तामर स्रोत के तहत शनिवार को विशेष प्रवचन सभा हुई, जिसमें आचार्य सुमति प्रकाश जी के तप, त्याग का उल्लेख करते हुए नमन किया गया। भक्तामर स्रोत के 38 वें श्लोक की आराधना करते हुए मुनिवर ने कहा कि इस श्लोक में आचार्य मांगतुंग ने बताया है कि भक्त का प्रमुख गुण नि़र्भयता और अहिंसक है।
उन्होंने कहा कि जो भगवान महावीर की शऱण में आता है, वह निर्भय हो जाता है। व्यक्ति को सबसे बड़ा भय मृत्यु से होता है। भगवान महावीर की शरण में आकर भक्त मृत्यु पर विजय पा लेता है। तब उसके सभी डर जीवन में खत्म हो जाते हैं। ऐसे भक्त के आगे यदि मदमस्त हाथी भी आ जाए तो उसे डर नहीं लगता। ये तभी संभव है , जब व्यक्ति में अहिंसा, संयम और तप होता है।
उदयपुर के तपस्वी रोड़ीदास महाराज की चर्चा करते हुए जैन मुनि ने कहा कि उन्होंने संकल्प लिया था कि जब कोई हाथी उनके गोचरी के लिए निकलने पर भिक्षा पात्र में लड्डू डाल देगा, तभी वह कुछ ग्रहण करेंगे। वे प्रतिदिन गोचरी
को निकलते, लेकिन ऐसा अवसर मिला ही नहीं। बहुत कठिन संकल्प था। एक दिन उदयपुर के राजा का हाथी उनके राजमहल से अचानक निकल गया और मदस्त हो कर सडक़ पर विचरण करने लगा। पूरे क्षेत्र में हलचल मच गई। लोग इधर से उधर भागने लगे। लोगों का मानना था कि यह हाथी पागल तो नहीं हो गया। वहीं से रोड़ीदास महाराज गुजर रहे थे। लोगों ने उन्हें भी वहां से चले जाने को कहा। लेकिन वे तो निर्भय थे। तभी लोगों ने देखा कि हाथी ने एक हलवाई की दुकान से लड्डुओं का थाल लिया और उसमें से कुछ लड्डू महाराज के भिक्षा पात्र में डाल दिए। इस प्रकार महाराज का संकल्प 45 दिन बाद पूरा हो पाया था।
जैन मुनि ने कहा कि ऐसे ही एक मुनि सुमति प्रकाश को एक देवता ने औषधि देते हुए संकेत किया कि उन्हें क्षय रोग हो गया है, इसलिए एक ही अन्न का भोजन करें। उन्होंने ऐसा ही किया और वे 5० वर्ष तक तपस्या में लीन रहे थे। तपस्या में जिसको रस आने लगे तो वह उसी में मग्न रहता है।
इस दौरान आचार्य सुमति प्रकाश महाराज का गुणगान किया गया। उन पर लिखे भक्ति गीतों का गायन किया है।
जैन मुनि ने कहा कि सुमति प्रकाश महाराज बहुत सरल, सहज थे। चातुर्मास में चारों महीने तप करते थे। ऐसी सीधी- सच्ची आत्माओं को देवता भी पसंद करते हैं। इसलिए हम सबको उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए। शनिवार को आचार्य सुमति प्रकाश जयंती पर पर 15० से अधिक श्रद्धालुओं ने आयंबिल तपस्या की, जिनको लक्की ड्रा द्वारा एवम प्रथम बार आयंबिल करने वालों को सम्मानित किया गया।
37 दिवसीय श्री भक्तामर स्तोत्र की संपुट महासाधना में शनिवार को 38 वीं गाथा का जाप बालकिशन जैन,मयंक मधु जैन परिवार ने लिया। नवकार मंत्र जाप की आराधना माया सुरेंद्र चप्लावत परिवार ने की। शनिवार की धर्मसभा में नरेंद्र सिंह , अजय जैन, विवेक कुमार जैन, प्रेमचंद जैन, वैभव जैन,धु्रव जैन सहित अनेक धर्मप्रेमी उपस्थित थे। संचालन राजेश सकलेचा ने किया।