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मनःकामेश्वर मठ में रामलीला के मंचन के आठवें दिन

हनुमान की पूंछ में आग लगा देने के बाद इधर उधर कूदकर पूरी लंका में आग लगा देते हैं

आगरा , मनःकामेश्वर मठ में रामलीला के मंचन के आठवें दिन की रामलीला का प्रारंभ श्रीमहन्त जी के साथ राजीव जैसवाल जी ने सपत्नीक ने आरती से किया।
इस अवसर पर राजीव जैसवाल जी को मठ प्रशासक हरिहर पुरी जी द्वारा सपत्नीक पटका धारण कराकर सम्मानित किया।
मंचन में प्रभु श्रीराम जी द्वारा पंचवटी गमन शूर्पणखा का आना और लक्ष्मण जी द्वारा नाक कान का काटना , खर दूषण व त्रसिरा का वध, आदि दृश्यों का मंचन हुआ।
राम-लक्ष्मण को मोहित करने की लीला, रावण का साधु वेश में आकर सीता का हरण, जटायु का रावण के विमान पर आक्रमण, राम-जटायु का संवाद और जटायु के निधन के दृश्यों का मंचन किया। इन दृश्यों को देख श्रद्धालु भावुक हो गए।

रामलीला मंचन के दौरान पहले दृश्य में रावण दरबार लगा हुआ है, जिसमें रावण अपने दरबारियों के साथ मंत्रणा कर रहा है। इतने में नाक कटी सूर्पणखा विलाप करती हुई दरबार में पहुंचती हैं और रावण को अपनी दुर्दशा का कारण बताती है। सूर्पणखा की कटी नाक देखकर रावण क्रोधित हो जाता है।

दूसरे दृश्य में रावण मारीच की कुटिया में पहुंच कर उसे स्वर्ण मृग का रूप धारण करने के लिए कहता है। मारीच और रावण संवाद के बाद दृश्य समाप्त होता है।

तीसरे दृश्य में प्रभु श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण पंचवटी में बैठे हैं। दूर सोने का मृग विचरण कर रहा है, जिस पर माता सीता मोहित हो जाती हैं और प्रभु श्रीराम से मृग छाल लाने के लिए कहती हैं। श्रीराम स्वर्ण मृग की छाल प्राप्त करने के लिए उसके पीछे जाते हैं। मारीच के राम की आवाज में विलाप करने पर सीता की आज्ञा से लक्ष्मण उनकी सहायता के लिए जाते हैं, इतने में रावण साधु का वेष धारण कर सीता का हरण कर उसे आकाश मार्ग से लंका की ओर ले जाता है।

जटायु सीता को बचाने के लिए संघर्ष करता है और घायल हो जाता है।

प्रभु श्री राम के सीता की खोज में निकलने पर जटायु सारा वृतांत सुनाकर प्राण त्याग देता है और प्रभु उसे मोक्ष दिलाते हैं।

अपने गुरु मतंग ऋषि के कहानुसार वर्षो से भगवान श्रीराम के दर्शन की प्रतिक्षा कर रही शबरी प्रतिदिन मार्ग में फूल बिछाती थी। आज भी वह मीठे बेरों को अपनी टोकरी में सजाएं हुए थी कि तभी अचानक श्रीराम अपने छोटे भाई लक्ष्मण के आश्रम में पहुंचे तो शबरी फूली नहीं समाई। उसने घर में आए भगवान का सत्कार किया और उन्हें मीठे बेर खिलाए। श्रीराम ने शबरी के बेरों को चाव से खाया। जब भगवान श्रीराम जाने लगे तो शबरी ने उन्हें वानर राज सुग्रीव का पता बताते हुए कहा कि सीता की खोज में वह उनकी पूरी मदद करेंगे।

माता शबरी से विदा लेकर राम लक्ष्मण आगे को रवाना होते हैं। अगले दृश्य में माता सीता की खोज में भटक रहे राम और लक्ष्मण की भेंट बानर राजा सुग्रीव से होती है।

मुलाकात के पूर्व वानर राज सुग्रीव के प्रिय हनुमान ब्राह्मण वेश में राम से मुलाकात करते हैं और प्रयोजन जानते हैं। इसके बाद राम की भेंट सुग्रीव से कराते हैं।

उधर सुग्रीव भगवान राम से सहायता मांगते हैं। राम के बताए अनुसार भाई बाली से युद्ध करते हैं और राम बाली का वध कर देते हैं।

कथानक आगे बढ़ता है। सुग्रीव का राज्याभिषेक किया जाता है। प्रखंड में लक्ष्मण कुपित होते हैं और सुग्रीव दरबार में जाने से मना कर देते हैं।

प्रसंग आगे बढ़ता है और वानर राज सुग्रीव माता सीता की खोज के लिए अपनी बानरो की सेना रवाना करते हैं। इसी प्रसंग में आगे सम्माती से भेंट होती है।

सरयू के तट पर सजे मंच का परिदृश्य बदलता है। हनुमान जी राम की ओर से दी गई अंगूठी लेकर माता सीता की खोज में लंका पहुंचते हैं और वहां उनकी विभीषण से मुलाकात होती है।

दृश्य में बदलाव होता है और मंच पर अशोक वाटिका का नजारा दिखता है। मंच पर लंकाधिपति रावण और माता सीता नजर आती हैं रावण विभिन्न प्रकार से सीता को समझाता और मनाता है। अगले दृश्य में अक्षय कुमार के बध का कलाकार मंचन करते हैं।

घड़ी की सुईयों के आगे बढ़ने के साथ एक बार फिर मंच के परिदृश्य में बदलाव होता है और मंच पर रावण का दरबार सजा नजर आता है। अगले प्रसंग में मेघनाथ और हनुमान का युद्ध होता है फिर कथानक रावण दरबार पर ही लौट आता है। दरबार में रावण और हनुमान दोनों मौजूद हैं और दोनों के बीच संवाद चल रहा है। रावण अपने सत्य का बखान करता है तो हनुमान प्रभु श्रीराम का गुणगान करते हैं और रावण को माता सीता को वापस लौटाने के लिए कहते हैं लेकिन रावण इसके लिए तैयार नहीं होता है।

कुपित रावण की ओर से हनुमान को दंड दिए जाने का आदेश होता है। लंका के लोग हनुमान की पूंछ में कपड़ा लपेटते हैं और हनुमान अपना आकार बढ़ाते जाते हैं। पूंछ में आग लगा देने के बाद इधर उधर कूदकर पूरी लंका में आग लगा देते हैं। लंका दहन के साथ ही लीला के मंचन का समापन होता है और आरती शुरू हो जाती है।
आज श्री अनूप यादव जी द्वारा प्रभ राम जी की आरती कर विश्राम दिया गया।