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उर्दू मजहबी भाषा नहीं, ये हमारी भाषा है: स्वामी मुरारी दास

लखनऊ ,उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के तत्वाधान से उर्दू अकादमी के ऑडोटोरियम में “एक शाम बेगम हजरत महल के नाम” विषय पर मुशायरा का आयोजन किया गया। मुशायरा का आगाज सैयद इरफान किछौछवी ने कुरआन की तिलावत करके की। कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष स्वामी मुरारी दास जी ने कहा कि उर्दू भाषा का कोई एक मजहब नहीं है बल्कि ये सभी भारतवासियों की भाषा है। उर्दू को आमजन की भाषा रहने देना चाहिए।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में स्वामी मुरारी दास जी ने कहा कि शहीदों को नमन करना, हमारे दिलों में जज्बा पैदा करता है। अवध के नवाब ने एक मौलाना के कहने पर अयोध्या में हमला करने के लिए एक फौज भेज दी थी, लेकिन बेगम हजरत महल के सही जानकारी देने पर नवाब साहब ने जंग रोक दी थी। मुरारी दास जी का कहना है कि राजा का कोई मजहब नहीं होता बल्कि उनका मजहब वतन की मोहब्बत, इंसाफ और तरक्की है। बेगम हजरत महल ने हिंदू राजाओं के साथ गठजोड़ कर देश बचाने की कोशिश की थी।

उन्होंने बताया कि पैगंबर ए इस्लाम का फरमान है कि बेटियों की इज्जत की जाए। हमारे समाज में भी बेटियों को सम्मान दिया जा रहा है। बेगम हजरत महल का कहना था कि मेरे जीवित रहते कभी भी अंग्रेज पकड़ नहीं पाएंगे और उन्होंने अपने जीवन के आखिरी समय तंगहाली में नेपाल में गुजार दिया। मुरारी दास जी ने कहा कि उर्दू भारत की भाषा है, उर्दू यूपी की जननी भाषा है। उन्होंने बताया कि उर्दू को आमजन की भाषा रहने देना चाहिए। उर्दू मजहबी भाषा नहीं, ये हमारी भाषा है। उर्दू को “देवनागरी लिपि” में भी लिखा जाना चाहिए।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि शहर की महापौर संयुक्ता भाटिया ने कहा कि मुशायरा बेगम हजरत महल के नाम से हो रहा है, वो ऐसी महिला थीं, जिन्होंने क्रांतिकारी कदम उठाकर बड़ा काम किया। उन्होंने हमारे समाज को दिशा देने का काम किया, खासकर महिलाओं के लिए। समाज में जब भी महिलाओं को मौका मिला उन्होंने अपना परचम लहराया है। बेगम हजरत महल अपने समय की पहली महिला थीं जिन्होंने आवाम के लिए कुर्बानी दी। मैं आयोजकों का और सभी श्रोताओं का भी धन्यवाद अर्पित करती हूं।

यूपी अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अशफाक सैफी ने संबोधन में कहा कि हजरत महल एक क्रांतिकारी थीं, वो पहली महिला थी जो पर्दादार होते हुए भी आजादी के लिए हथियार उठाकर अंग्रेजों से लोहा लिया। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार बनाने में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है। हमें ऐसी महिलाओं को कमजोर नहीं समझना चाहिए। महिलाएं देश के विकास में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

उर्दू है मिरा नाम मैं ‘ख़ुसरव’ की पहेली
मैं ‘मीर’ की हमराज़ हूं ‘ग़ालिब’ की सहेली।
दक्कन के ‘वली’ ने मुझे गोदी में खेलाया
‘सौदा’ के क़सीदों ने मिरा हुस्न बढ़ाया।
है ‘मीर’ की अज़्मत कि मुझे चलना सिखाया
मैं दाग़ के आंगन में खिली बन के चमेली।

सैयद इरफान किछौछवी ने पैगंबर ए इस्लाम की मोहब्बत में कलाम कुछ यूं अंदाज में पेश किया।

जिंदा है जिनके दिल में मोहब्बत रसूल की,
जाने ना देगी याद में मोहब्बत रसूल की।
बेटी गरीब बाप की बेमौत मर गई,
कुछ लोग भूल बैठे हैं सुन्नत रसूल की।

अंजना सिंह सेंगर:

सआदत का शुजाअत,
मैं झंडा लेकर चलती हूं।
मैं इलाहाबादी हूं,
सांसों में गंगा लेकर चलती हूं।
वतन से प्यार करने का जज्बा निराला है,
मैं अपने दिल की धड़कन में तिरंगा लेकर चलती हूं।।

गुले सबा फतेहपुरी ने अपने अशआर में कहा कि…
हम नशीं कोई नहीं और दिलरुबा कोई नहीं,
सांस क्या ठहरी नहीं कि अब पहचानता कोई नहीं,
जाने कैसा कैफ तारी है तुम्हारे शहर,
मुस्कुराते हैं सभी और बोलता कोई नहीं।।

आदिल लखनवी ने मौजूदा हालात पर कलाम पढ़ते हुए कहा कि दस्त में गुल खिलाओ तो जानें,
दर्द में मुस्कुराओ तो जानें,
जिसका नशा उतर ना पाए कभी,
जाम ऐसा पिलाओ तो जानें,
बाप के दम पर ऐश करते हो,
चार पैसे कमाओ तो जाने।।

फलक सुल्तानपुरी ने अपने शायराना अंदाज में नज्म पेश करते हुए कहा कि
अपनी तकदीर खुद बनाऊंगी,
और देश भी नाज बेटियों पर करे,
काम कुछ ऐसा कर दिखाऊंगी।
इल्म ओ अदब के सांचे में ढली हूं,
तहजीब के गुलशन की मैं नायाब कली हूं।

“एक शाम बेगम हजरत महल के नाम ” की कनवीनर डॉ रिजवाना ने बेगम हजरत महल के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने जंगे आजादी में अहम भूमिका निभाई, जिसके कारण अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया कि बेगम हजरत महल आखिरी समय तक अंग्रेजों के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ती रहीं लेकिन पराजय का सामना करने के बाद मजबूरी में देश छोड़ना पड़ा। आज भी बेगम हजरत महल की तरह दृढ़ निश्चय वाली महिलाओं की जरूरत है जो समाज को नई दिशा दिखा सकें।

कार्यक्रम का सफल संचालन हिलाल बदायूंनी ने किया। मुशायरा में शहर की विशिष्ट अतिथियों में तूरज जैदी (फखरुद्दीन अली अहमद चेयरमैन), डा०शादाब आलम (सदस्य ऊर्दू अकादमी लखनऊ),कम्बर कैसर (सदस्य ऊर्दू अकादमी लखनऊ) रजा क़ासिम (सदस्य ऊर्दू अकादमी लखनऊ) मौजूद रहें। इसके साथ ही शालिनी सिंह, ज्ञानेन्द्र सिंह, शमशेर अली, पत्रकार सईद हाशमी, पत्रकार अतीक असलम, शोअरा इकराम में डॉ अंजना सिंह, रिजवान फारुकी, मुंतजिर कायमी, अली बाराबंकवी, जफर अंसारी, सईद सांदेलवी, मखमूर काकोरवी, नाजिम बरेलवी, शहर के सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता जमालुद्दीन खान, अब्दुल हलीम, डॉ शमशेर खान, मोहम्मद वसीम खान, मोहम्मद अजहरुद्दीन खान, मोहम्मद अशरफ, अली अब्बास मेहंदी और श्रोतागण मौजूद रहें