मुगलों ने इसे जश्न ए चिराग़ां नाम दिया.
लाल किले में दिवाली का बहुत शानदार एहतमाम किया जाता था.
छोटी दिवाली के दिन एक बहुत ऊंचा दिया कोई चालीस यार्ड ऊंचा जिसे “आतिश दिया” कहते थे रौशन कर दिया जाता था.
लाल किले के चारों कोनों में गन्ने लगा दिए जाते थे.
तीन चार दिन तक किले के अंदर सब्जी लाने पर पाबंदी लग जाती थी क्यूंकि इनसे जादू टोने का ख़तरा रहता था.
किले में काम करने वाले माली, धोबी और दूसरे काम करने वालों को चार दिन पहले ही बाहर जाने की इजाज़त नहीं थी ताकि वो किसी जादू टोने का शिकार ना हो जाएं
बड़ी दिवाली के दिन बादशाह को सोने और चांदी के सिक्कों में तौला जाता था और फिर वो सारे सिक्के गरीबों में बांट दिए जाते थे.
शाम होते ही नौबत बजा दी जाती कि किले में जश्न शुरू कर होने वाला है. शाम को पूरा किला सजा दिया जाता था.
आखिरी मुग़ल बादशाह के ज़माने पूजा का एहतेमाम भी होता था. इस पूजा में बादशाह की तरफ से हुक्म था कि सब इस पूजा के वक़्त वहां हाज़िर रहें.
मुग़ल बेगमात, शहज़ादे और शहज़ादियां दिवाली का सब से ज़्यादा आनंद लेते थे. हरम में खूब आतिश बाज़ी होती. मिट्टी के घर और बर्तन बनाए जाते और उनमें खीलें बताशे रखी जातीं . तरह तरह के पकवान बनाए जाते. और गाने बजाने का भी बंदोबस्त होता था. और फिर सुबह को ये सब खाने पीने की चीज़ें काम करने वालों को बांट दी जाती थीं.
मुग़ल दरबार में होना वाले दिवाली के भव्य समारोह को उसी ज़माने के कई चित्रकारों ने पेंटिंग पर उतारा है जो अलग म्युजियम में मौजूद हैं.