आगरा। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ में सात दिवसीय शिक्षक उन्नययन कार्यक्रम की शुरुआत हो गई है। इसमें भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर सात दिन तक विभिन्न विषयों के अंतर्गत विशेषज्ञ वक्ता आकर व्याख्यान देंगे और विचार-विमर्श के साथ परिचर्चा करेंगे।
इसमें नौ विषयों भाषाविज्ञान, दर्शन, चिकित्सा, वास्तुकला, भूगोल, साहित्य, संस्कृत, गणित एवं पत्रकारिता विषय के विशेषज्ञ आएंगे।
पहले दिन उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता पूर्वांचल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. संदरलाल ने की। मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. उषा यादव थीं। बीज वक्ता के रूप में सतना के प्रो. सुद्युम्र आचार्य थे। प्रतिकुलपति प्रो. अजय तनेजा, निदेशक केएमआई प्रो. यूसी शर्मा, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. प्रदीप श्रीधर, आयोजन समन्वयक डा. नीलम यादव, सहसमन्वयक डॉ. रणजीत भारती व डॉ. वर्षा रानी मौजूद रहे। संचालन डॉ. केशव देव शर्मा ने किया।
बीज वक्ता निदेशक, वेदवाणी वितान प्राच्य विद्या शोध संस्थान के प्रो. सुद्युम्र आचार्य ने कहा की भारत की भाषा सदैव से वैज्ञानिक रही है। भारतीय भाषा विज्ञान में जो काम हुए वह महत्वपूर्ण हैं, जरूरत सिर्फ उन्हें सार्वजनिक करने की है। जर्मनी में जर्मन और संस्कृत भाषा के हजारों शब्दों पर शोध के बाद उन्हें काफी करीब पाया गया है।
प्रतिकुलपति प्रो. अजय तनेजा ने अपने संबोधन में कहा की भारतीय ज्ञान परंपरा स्वयं में बहुत विशालता व गहराई समेटे हुए हैं। यहां परमाणु और शून्य की खोज हुई। हमें पुराने ज्ञान को नए रूप में संजोकर विद्यार्थियों तक पहुंचाना होगा। मुख्य अतिथि पद्मश्री ऊषा यादव का कहना था कि भारतीय ज्ञान परंपरा में ज्ञान का अर्थ है बोध, जानना, पहचानना, विद्या और आात्म साक्षात्कार। यह बहुत विशाल क्षेत्र है, जिसकी मजबूर करने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी शिक्षकों के कंधों पर है। हमारे ऋषि-मुनियों ने जो कमाया, वह हम 300 साल पहले से भूलने लगे हं।
शिक्षा का उन्नयन उसे बढ़ाना है। कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. सुंदर लाल का कहना था कि हमारा ज्ञान ज्यादा है, यह सिर्फ कहने से काम नहीं चलेगा। कभी-कभी यह हमारी हीन भावना से को भी उत्पन्न करता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने एकात्म ध्यान से जो ज्ञान प्राप्त किया, विदेशों में उन्होंने अपनी क्षमता के अनुसार प्राप्त किया। हमें भी उनसे सीखने की जरूरत है।
उन्होंने शोधार्थियों और शिक्षकों को होमवर्क दिया कि पता करें कि हिंदी में जीरो से 99 तक गिनती के अंक बने हैं, जबकि अंग्रेजी में एक से 20 तक अंकों के नाम है, उसके बाद दोहराव शुरू हो जाता है। ऐसा क्यों, उसके कारण हमें खोजने होंगे।
साथ ही उन्होंने संस्कृत के उन्नयन के लिए अंग्रेजी की तर्ज पर एक ऐसी आसान कुंजी तैयार करने की अपील की, जिससे सभी साधारण जीवन में संस्कृत सीखकर बोल सकें। प्रो. विनीता सिंह, प्रो. अचला गक्खर, प्रांत मंत्री संस्कृत भारती गौरव गौतम, डॉ, आरके भारती, डॉ राजकुमार, डॉ, आदित्य, डॉ, प्रदीप वर्मा, डॉ. राजेंद्र, अमित गुप्ता आदि कार्यक्रम में मौजूद रहे।