राजनीति

दलित मुसलमानों और ईसाइयों के आरक्षण पर सरकार सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रही है- शाहनवाज़ आलम

हिंगोली, महाराष्ट्र. संविधान में आरक्षण का आधार सामाजिक बताया गया है. धर्म के आधार पर किसी को भी आरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. मोदी सरकार का दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति की श्रेणि के अंतर्गत नहीं लाने के समर्थन में दिया गया सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा संविधान की धारा 14 जो कानून के समक्ष समानता की बात करता है के खिलाफ है. ये बातें उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक कांग्रेस के अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम ने स्पीक अप कार्यक्रम की 71 वीं कड़ी में कहीं.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बने केजी बालकृष्णन कमिशन के समक्ष मोदी सरकार का यह कहना कि उसके पास दलित मुस्लिम और दलित ईसाइयों के साथ भेदभाव का कोई रिपोर्ट या शोध दस्तावेज़ नहीं है, हद दर्जे का गैरज़िम्मेदाराना तर्क है. राजिंदर सच्चर कमेटी, रंगनाथ मिश्र कमीशन, काका कालेलकर कमीशन, बीपी मण्डल कमीशन और मुंगेरीलाल कमीशन सभी ने जाति के आधार पर मुस्लिम और ईसाई समुदायों में भेदभाव का अध्ययन प्रस्तुत किया है. सतीश देशपांडे की रिपोर्ट तो विशेष तौर पर दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों की स्थिति पर केंद्रित है जिसे 2008 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को सौंपा गया था. इन रिपोर्टों में दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को हिंदू दलितों की तरह ही आरक्षण देने की सिफारिश की गयी थी.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सरकार का दूसरा तर्क कि इस्लाम और ईसाई धर्म में दलितों ने धर्मांतरण ही इसलिए किया था कि इन धर्मों में जातिगत भेदभाव नहीं है, इसलिए वे आरक्षण के हकदार नहीं हैं, भी न्यायसंगत नहीं है. क्योंकि इस आधार पर तो सिख और बौद्ध बने हिंदू दलितों का भी आरक्षण खतरे में पड़ जाएगा क्योंकि वे सिख और बौद्ध बने ही इसलिए थे कि वहाँ जातिगत भेदभाव नहीं होगा. लेकिन बावजूद इसके उन्हें जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ता है. इसीलिए 1956 और 1990 में सिख दलितों और नव बौद्धों को अनुसूचित वर्ग के दायरे में लाया गया था.

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि बसपा, आरपीआई, समाजवादी पार्टी जैसी कथित सामाजिक न्याय की बात करने वाली पार्टियां दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों के आरक्षण का विरोध करती हैं. इस मुद्दे पर ये भाजपा और आरएसएस के साथ खड़ी हो जाती हैं.