संवाद -विनोद मिश्रा
बांदा। डीएम दीपा मेडिकल कालेज के प्राचार्य मुकेश यादव के कथित भ्रष्टाचार का अनोखा धमाल है। यह विधायक ,मंत्री से लेकर मुख्य मंत्री योगी के लिये भी किसी चुनौती से कम नहीं है? मेडिकल कालेज में विभिन्न पदों पर आउट सोर्सिंग नौकरी की भर्ती के लिये एक टेंडर डालने वाली कंपनी “आईटी वर्ड” कंपनी नें जो अर्नेस्ट मनी के कागजात सम्मलित किये वह यहां बैंक द्वारा सत्यापित पर फ्राड साबित हुआ। जमा करने पर “मुकेश यादव का मेहरबानी भरा याराना क्यों है”? कंपनी की तीस लाख की फर्जी अर्नेस्ट मनी के आधार पर उसे ब्लेक लिस्टिड कर उसके विरुद्ध चारसौबीसी का मुकदमा कायम करने की कार्यवाई क्यों नहीं की जाती। कुछ न कुछ तो आपस में गुफ्तगू का खेल है। फर्जीवाड़ा करने वाली पर यह मेहर बानी क्यों ?
हम खबर के माध्यम से डीएम दीपा रंजन के साथ ही जिले के मंत्री,सांसद,विधायकों स्वास्थ एवं चिकित्सा मंत्री बृजेश पाठक के अलावा मुख्यमंत्री योगी को अवगत कराना चाहते हैं कि जिले के दुर्गावती मेडिकल कालेज के प्राचार्य मुकेश यादव की जुर्रत तो देखिये कि चारसौबीसी करने वाली “आईटी वर्ड कंपनी” को तैतीस लाख का अर्नेस्ट मनी जमा करने के लिये एक – एक सप्ताह का लगातार मौका देते जा रहें हैं!कोशिश यह की जा रही हैं कि अर्नेस्ट मनी के कागजात को बैंक के हेड मुख्यालय से किसी तरह लें -देकर सत्यापित करा लिया जायें। यदि ऐसा हो गया तो यह सरेआम भ्रष्टाचार को बढ़ावा तथा डीएम से लेकर मुख्यमंत्री तक को किसी चुनौती से कम नहीं हैं?
मेडिकल कालेज में यहां कार्यरत एक वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी नें अपना नाम न छापने की शर्त पर फ्राड कंपनी को टेंडर देने के कूटरचित दुस्साहस का खुलासा किया! सारे फर्जीबाड़ा को प्रामाणिक तथ्यों सहित अवगत कराया!
दरअसल यहां मेडिकल कालेज में अन्य पदों के साथ ही वार्ड ब्वाय,फार्मासिस्ट, लिपिक, स्टाफ नर्स के काफी संख्या में भर्तीयों के लिये आउट सोर्सिंग कंपनियों से अक्टूबर – नवंबर 22 टेंडर आमंत्रित किये गये। जिस कंपनी को टेंडर स्वीकृत हुआ ! औऱ जब अभि लेखों की जांच हुई तो इस कंपनी नें जो एक करोड़ 40 की अर्नेस्ट मनी जमा करने के लिये वर्ष 21 का कागजात लगाया जबकि अर्नेस्ट मनी 33 लाख की लगनी थी। औऱ अर्नेस्ट मनी उस दिनांक या बाद की बनती है जिस तिथि को टेंडर प्रकाशित होता है। फिर अर्नेस्ट मनी यहां बैंक से सत्यापन पर फर्जी पाया गया। इस स्थिति में प्राचार्य के स्तर से कंपनी के निदेशक की “खास गुफ्तगू हुई”! फिर क्या था प्राचार्य की कृपा कंपनी पर बरसने लगी।उसे दूसरी अर्नेस्ट मनी या उसे बैंक के हेड आफिस से सत्यपित कराने का पहले पंद्रह दिन का मौका दिया। यह समय पूरा होने के बाद उसके अनुरोध पर फिर क्रमशः एक – एक सप्ताह का मौका दें दिया गया है। आखिर शासकीय नियम विरुद्ध ऐसा क्यों किया जा रहा है? जबकि फ्राड करने वाली कंपनी का टेंडर निरस्त कर जिस कंपनी का टेंडर मानक अनुसार एवं वरीयता क्रम में था उसके पक्ष में टेंडर स्वीकृत कर देना चाहिये था।
देखना अब यह होगा की इस दुस्साहस भरे कथित भ्रष्टाचार के खेल का “द इंड” डीएम से लेकर विधायक ,मंत्रीगण एवं मुख्य मंत्री महाराज योगी आदित्य नाथ कब करते है! या प्राचार्य मुकेश यादव की कथित चुनौती के सामने नत मस्तक होते हैं! प्राचार्य मुकेश यादव इस संदर्भ में कुछ स्पष्ट बताने से आना -कानी कर जाते हैं।